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Wednesday, August 18, 2010

बायोमैट्रिक फेज में जाति गणना का मतलब

बायोमैट्रिक क्या है: बायोमैट्रिक का मतलब शरीर के खास अंगों के जरिए किसी इंसान की पहचान करना है। केंद्र सरकार ने देश के लोगों को विशिष्ट पहचान नंबर यानी यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर देने की योजना बनाई है। सरकार का इरादा देश के नागरिकों की पहरेदारी करने का है। बायोमैट्रिक आंकड़े इसी नंबर के लिए जुटाए जाएंगे। इसके तहत आपके हाथ की सभी उंगलियों और आंख की पुतलियों के निशान लिए जाएंगे। ठीक उसी तरह जैसा कि अपराधियों के साथ किया जाता है।
बायोमैट्रिक आंकड़े के साथ जाति गणना को जोड़ने के साजिश यह है कि जाति की गिनती न हो पाए। इसमें मुख्य रूप से ये दिक्कतें हैं:

 जाति की गिनती में कम से कम पांच साल लगेंगे क्योंकि सरकार कह रही है कि बायोमैट्रिक डाटा कलेक्शन का काम पांच साल में पूरा होगा। बायोमैट्रिक डाटा इकट्ठा करने वाली एजेंसी यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट - http://uidai.gov.in/ में बायोमैट्रिक डाटा कलेक्शन की यही टाइम लाइन है। इस सरकारी वेबसाइट के होम पेज पर लिखा है कि पांच साल में 60 करोड़ लोगों का बायोमैट्रिक डाटा इकट्ठा कर लिया जाएगा। (Over five years, the Authority plans to issue 600 million UIDs. The numbers will be issued through various ‘registrar’ agencies across the country.) हालांकि मतदाता पहचान पत्र का काम 25 साल में पूरा नहीं हो पाया है, जिसे देखते हुए बायोमैट्रिक जैसे जटिल काम के पूरा होने में सौ साल भी लग सकते हैं।

 जाति गणना ऑप्शनल यानी लोगों के चाहने या न चाहने पर निर्भर हो जाएगी क्योंकि बायोमैट्रिक डाटा ( उंगलियों और आंख की पुतली के निशान) देना ऑप्शनल है। यानी आप चाहें तो डाटा देंगे, नहीं चाहेंगे तो नहीं देंगे। (देखिए यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट का अंश - Will getting a UID be compulsory? No, it will not be compulsory to get a UID, it is voluntary. However in time, certain service providers may require a person to have a UID to deliver services.) यानी जो लोग बायोमैट्रिक डाटा देने के लिए डाटा सेंटर तक नहीं पहुंचेंगे/ नहीं पहुंच पाएंगे, उनकी जाति नहीं गिनी जाएगी।

 सेंसस एक्ट 1948 के तहत आप सेंसस अधिकारी को जानकारी देने से इनकार नहीं कर सकते और गलत जानकारी देने पर जुर्माने की सजा है।

 15 साल से छोटी उम्र वालों का बायोमैट्रिक डाटा भी इकट्ठा नहीं किया जाएगा।

 जाति की गिनती का काम प्राइवेट कंपनियों को – बायोमैट्रिक डाटाकलेक्शन का इंस्टिट्यूशनल फ्रेमवर्क ऐसा ही है। जिन्हें रजिस्ट्रार एजेंसी बनाया गया है उनमें सरकारी और निजी दोनों तरह की कंपनियां हैं। ( देखिए यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी की सरकारी वेबसाइट का अंश - The Registrars would include both Government and Private Sector Agencies which already have the infrastructure in place to interface with the public to provide specified services for e.g. Insurance companies, LPG marketing companies, RSBY, NREGA etc.) आप अंदाजा लगा सकते हैं कि निजी कंपनियों और एनजीओ के जुटाए आंकड़ें कितने भरोसेमंद माने जाएंगे।

 बायोमैट्रिक फॉर्म में जो जानकारियां ली जाएंगी वे इस प्रकार हैं – नाम, जन्म की तारीख, लिंग, पिता/माता, पति/पत्नी या अभिभावक का नाम, पता, आपकी तस्वीर, दसों अंगुलियों के निशान और आंख की पुतली का डिजिटल ब्यौरा। यानी न आपको जातियों की शिक्षा के स्तर का पता चलेगा न आर्थिक स्तर का। किसी समूह की किसी और समूह से तुलना नहीं हो पाएगी।

 जिस यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ने अभी अपना काम ठीक से शुरू नहीं किया है और जिसके क्षेत्रीय दफ्तर अभी तक बने नहीं हैं, बैंगलोर दफ्तर का डिजाइन बनाने के लिए आर्किटेक्ट ढूंढने का टेंडर अभी-अभी आया है, उसे जाति गणना का काम सौंपा जा रहा है। इसका दिल्ली का डाटा सेंटर तक अभी तैयार नहीं है।

 यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी न तो संवैधानिक संस्था है न ही इसे संसद के एक्ट के जरिए बनाया गया है। इसका अपना भविष्य ही संदिग्ध है और इस पर कभी भी ताला लग सकता है। इस अथॉरिटी को इतने बड़े पैमाने पर लोगों की गिनती का अनुभव भी नहीं है, जबकि जनगणना विभाग यह काम करता रहा है।

-दिलीप मंडल
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