tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post3088057365566739964..comments2024-03-05T05:42:44.426+05:30Comments on रिजेक्ट माल: ब्लॉगर बड़ा या साहित्यकार?दिलीप मंडलhttp://www.blogger.com/profile/05235621483389626810noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-58933546306420365722007-12-16T22:25:00.000+05:302007-12-16T22:25:00.000+05:30Kathgodam ke station par AH wheeler walse se baat ...Kathgodam ke station par AH wheeler walse se baat kar raha tha. usne kaha ki yahan to hindi kitabein khoob bikti hai lekin prakashak kitabein hi nahi bhejte hain. agar aapko hindi prakashan ke baare mein jaankari hai to batayein ki iska kya karan hai?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-30584800729595230672007-12-16T20:05:00.000+05:302007-12-16T20:05:00.000+05:30मैं आपकी इस बात से शब्दशः सहमत हूँ कि 'ब्लॉग की दु...मैं आपकी इस बात से शब्दशः सहमत हूँ कि 'ब्लॉग की दुनिया में ज्यादा लोकतंत्र है।' लेकिन यह बयान पूरी तरह सच नहीं है कि 'किसी मठ में सिर झुकाए बिना जम पाना मुश्किल है" (साहित्य में)| वैसे भी जमने की चिंता में खपने वालों को असली साहित्य से क्या प्रयोजन है? वे तो साहित्य के कैरियरिस्ट होते हैं. लेकिन जिन्हें अपने लक्ष्यित समाज के साहित्य से लगाव है, वे 'अहो रूपम, अहो ध्वनिः' के जंजाल में वैसे भी नहीं पड़ते. <BR/><BR/>आपका यह कहना भी फिलहाल आंशिक तौर पर ही सच है कि 'ब्लॉग में जातिवाद, क्षेत्रवाद, रिश्तेदारवाद, प्रेयसीवाद आदि की गुंजाइश नहीं है।' शायद आपने दीगर हिन्दी ब्लॉग की खुर्दबीन नहीं की. मैं कई बार वहाँ जाता हूँ. वह दिन दूर नहीं जब प्रेयसीवाद इतना बढ़ेगा कि ब्लॉग के चलते ब्लॉगवीरों के तलाक होने लगेंगे.<BR/><BR/>लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं ऐसा होते देखना चाहता हूँ. मैं तो चाहता हूँ कि ब्लॉग एक ऐसा मंच बने जहाँ सच्चे कद्रदान मिलें. कविता, कहानी, राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर व्यापक बहस-मुबाहिसा हो. सतही समझ रसातल में चली जाए और कोई भी फैसला लेने से पहले लोग वैज्ञानिक सोच से काम लेने लगें.<BR/><BR/>आपने हिन्दी के तथाकथित 'बेस्ट सेलरों' की भी अच्छी कलाई उतारी है और इस पूरे तंत्र का पर्दाफाश किया है.विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-1704859806568966292007-12-16T13:49:00.000+05:302007-12-16T13:49:00.000+05:30aapki baat se bilkul sahmat, hindi me likhne se jy...aapki baat se bilkul sahmat, hindi me likhne se jyada khapne me taakat jhoki jaati hai,aur bikne ke liyae sirf lekhak nahi,saath me kuch aur hona hoga.blog apne aukaat aur haisiat se chalta hai.विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-2130010563550729012007-12-16T12:37:00.000+05:302007-12-16T12:37:00.000+05:30हाल-फिलहाल हिन्दी की एक बेस्टसेलर किताब दिखती है ज...हाल-फिलहाल हिन्दी की एक बेस्टसेलर किताब दिखती है जो एक लाख से ऊपर छप चुकी है और उसका नाम है आज भी खरे हैं तालाब. सौभाग्य से वह किसी प्रकाशक ने नहीं छापी है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-25414094608778639862007-12-16T12:12:00.000+05:302007-12-16T12:12:00.000+05:30मुझे आज तक ये समझ में नहीं आया कि हि्न्दी ब्लॉग जग...मुझे आज तक ये समझ में नहीं आया कि हि्न्दी ब्लॉग जगत् में गैंग, माफिया या गला-काट जैसी बातें कहां, किधर, कैसी, क्यों हो रही हैं और कौन कर रहा है गैंग बाजी. किसके दिमाग की उपज है यह? <BR/><BR/>बंधु, यदि उम्दा लिखोगे, नियमित, सारगर्भित लिखोगे तो आपके लेखन को किसी गैंग किसी माफिया की कोई आवश्यकता नहीं होगी. मनीष,रवीश, यूनुस ज्ञानदत्त जैसे लोग आए और आते ही हिन्दी ब्लॉग जगत् में छा गए. क्या उनके लेखन को गैंग की संज्ञा दी जा सकती है? इस तरह आप भी लिखें तो हो सकता है कि आपका भी गैंग बन जाए.<BR/><BR/>सवाल ये है कि महीने में चार कबाड़ा पोस्ट ठेल देने के बाद ये बातें की जाएँ कि पाठक पढ़ते नहीं टिप्पणी करते नहीं और गैंग बना लिया गया है तो यह तो पूरा का पूरा कुतर्क ही है.<BR/><BR/>फिर, ब्लॉगरों से किसने कहा कि कालजयी रचनाएँ मत लिखो. धुँआधार, मजेदार, शानदार मत लिखो. ऐसा लिखो कि आज का पाठक भले ही तवज्जो न दे, यह दस और सौ वर्षों बाद गर्व से पढ़ा जाए. पर, क्या तब भी गैंग और माफ़िया की बातें की जाएंगी?रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-68180883732274575272007-12-16T11:57:00.000+05:302007-12-16T11:57:00.000+05:30मैं आपकी बात से सहमत हूँ "हिंदी साहित्य के मुकाबले...मैं आपकी बात से सहमत हूँ "हिंदी साहित्य के मुकाबले ब्लॉग की दुनिया में ज्यादा ट्रांसपेरेंसी है।" क्योंकि पढ़ने लिखने की दृष्टि से यह काफ़ी सुविधाजनक और आसान है। लेखक और पाठक के बीच में प्रकाशक या संपादक जैसे समीकरण नहीं आते। - आनंदआनंदhttps://www.blogger.com/profile/08860991601743144950noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-11937237181140644312007-12-16T11:26:00.000+05:302007-12-16T11:26:00.000+05:30बंधु साधुवाद वाली टिप्पणी तो मै जबरदस्ती दे रहा हू...बंधु साधुवाद वाली टिप्पणी तो मै जबरदस्ती दे रहा हूं आपकी मर्जी हो तो न लेना,बाकी ये फॉंट समस्या के लिअ आपने दो तीन बार लिख दिया कुछ बताइये कहां मिलेगी जानकारीdrdhabhaihttps://www.blogger.com/profile/07424070182163913220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-5553522009449093902007-12-16T10:27:00.000+05:302007-12-16T10:27:00.000+05:30आज ब्लाग भी एक परिधि में बंध कर रह गया है। कुछ सी...आज ब्लाग भी एक परिधि में बंध कर रह गया है। कुछ सीमित लोगों तक, शायद बड़े नामो तक। अक्सर देखने में आता है कि हिन्दी ब्लाग को कुछ लोगों अपने तक ही सीमित करना चाहते है। ब्लाग एक विधा तो जरूर है किन्तु अभी इसे भविष्य में काफी कुछ करना है। अभी शैशवास्था में भी एक दूसरे की गला काटी जा रही है। अभी आये तो काफी रास्ते तय करने है। <BR/><BR/>आपके ब्लाग पर आकर काफी अच्छा पढ़ने को मिला, आप बधाई के पात्र है।Pramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-20438798058080467772007-12-16T10:18:00.000+05:302007-12-16T10:18:00.000+05:30अरे वाह भाई, मन की बात आज कह दी है आपने । हमारी तो...अरे वाह भाई, मन की बात आज कह दी है आपने । हमारी तो हिम्मत ही नही होती थी यह बात कहने की, बरसों से आस्था के कील को हमारे पिलपिले दिमाग में गाडने का प्रयास हमारे मनीषी कर रहे हैं पर कबखत बार बार निकल ही जाती थी । आज आपने कहा है पिलपिले दिमाग में गडे आस्था के कीलों की कहानी । <BR/>बडा चाहे जो भी जो सहज व सुलभ होगा वही जन मन में बसेगा । धन्यवाद ।<BR/><BR/><A HREF="http://aarambha.blogspot.com/" REL="nofollow">आरंभ</A>36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-29396845462779389612007-12-16T04:13:00.000+05:302007-12-16T04:13:00.000+05:30अनुराधाजी की इस पुस्तक की दूसरी आवृत्ति आ गई और मु...अनुराधाजी की इस पुस्तक की दूसरी आवृत्ति आ गई और मुझे खबर तक नहीं...यूं मैं किताबों की दुकानों पर अक्सर मंडराया करता हूं। मेरे शहर में तो शर्तिया किसी जगह यह नही है। स्मिता (मेरी पत्नी) ने एक बार, जब मैं दिल्ली मे ही था , उनके किसी संस्मरण को पढ़ा था महिलाओं की पत्रिका में । वे उनके अनुभवों और परिजनों की भावना से काफी प्रभावित थीं। <BR/>चलिए , जानकारी मिली। अब उन्हें गिफ्ट करता हूं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com