tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post6162079417204651707..comments2024-03-05T05:42:44.426+05:30Comments on रिजेक्ट माल: जनगणना: ओबीसी की गिनती से असहमतिदिलीप मंडलhttp://www.blogger.com/profile/05235621483389626810noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-31224919640454516642010-07-19T18:45:15.881+05:302010-07-19T18:45:15.881+05:30जो जातियां सदियों से तर माल उड़ा रही हैं. मेहनतक...जो जातियां सदियों से तर माल उड़ा रही हैं. मेहनतकश जनता को लूट रही हैं. उनमे बहुसंख्यक लोग अमीर हैं..वे अपने गरीब जाति भाइयों का ख्याल रखने में सक्षम नहीं हैं क्या ? प्राइवेट कालेज के मालिक दलित/वंचित वर्ग के लोग नहीं हैं. प्राइवेट कालेज के मालिकों से ऐसी भावुक अपील की जानी चाहिए,कि वे आईआईटी परीक्षा में 145 अंक लेने वाली लड़की की फीस माफ़ करें,तथा वजीफा भी दे.. <br />Arun KumarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-20612468401709133892010-06-03T03:02:34.820+05:302010-06-03T03:02:34.820+05:30"लोकतंत्र में राजनीति करना कोई अपराध नहीं है ..."लोकतंत्र में राजनीति करना कोई अपराध नहीं है और संख्या बल के आधार पर कोई अगर राजनीति में आगे बढ़ता है या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो इस पर किसी को एतराज क्यों होना चाहिए?"<br />... चाहे वो संख्या बल कैसे भी जुटाया जाय... वाह !!!<br />"जातिगत जनगणना जाति भेद के पहलुओं को समझने का प्रामाणिक उपकरण साबित हो सकती है।"... इस जनगणना के बाद तो जाति भेद बस खत्म हुआ ही समझो. <br />"अगर ओबीसी की संख्या अब तक की मान्यताओं से कम हो सकती है, तो ये अपने आप में पर्याप्त वजह है जिसके आधार पर जातिगत जनगणना की जानी चाहिए। अगर देश की कुल आबादी में ओबसी की संख्या 27 फीसदी से कम है, तो उन्हें नौकरियों और शिक्षा में 27 फीसदी आरक्षण क्यों दिया जाना चाहिए?" .. रिजर्वेशन पर बहस के समय भी आपके यही तर्क थे क्या? ये गिनती रिजर्वेशन के पहले करनी चाहिए थी न? या फिर रिजर्वेशन के लिए गिनती का इंतज़ार ही कर लेते.. जब जेसन तब तैसन.. वाह!<br /><br />"किसी में ये साहस नहीं है कि इस सवाल पर देश में जनमत सर्वेक्षण करा ले।" -- काहे करवाएं जी? नीचे तो रिजल्ट आप पहले ही दे ही चुके हैं.. काफी पैसे बचाए सरकार के.. "यह साबित हो चुका है कि इस देश की लोकसभा में बहुमत जाति आधारित जनगणना के पक्ष में है। ये एकमात्र तथ्य जातीय जनगणना के तमाम तर्कों को खारिज करता है।"<br /><br />और अंत में ये भी खूब रही :<br />रिजेक्ट माल -- जो कहीं नहीं छ्पा वो यहाँ छपेगा ... <br />और नीचे -- (यह आलेख 1 जून के जनसत्ता में छपा है।)Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-20083534612865213132010-06-01T14:16:20.495+05:302010-06-01T14:16:20.495+05:30मण्डल साहब आप बहुत विद्वान हैं, और आपका विश्लेषण भ...मण्डल साहब आप बहुत विद्वान हैं, और आपका विश्लेषण भी उम्दा होता है, कृपया मेरी एक समस्या हल कीजिये -<br /><br />मेरे पड़ोस में एक ब्राह्मण परिवार है, लड़की ने हाल ही में AIEEE और IIT की परीक्षा दी, उसके पिता गुजर चुके हैं, परिवार का गुज़ारा कामचलाऊ तरीके से चल रहा है। उस लड़की को IIT की परीक्षा में 145 अंक मिले और वह प्रतियोगिता से बाहर हो गई (क्योंकि सामान्य वर्ग का कट-ऑफ़ 165 के आसपास खत्म हो गया)। वह बड़ी निराश है, आत्महत्या का विचार भी कर चुकी है, क्योंकि उसी की सहेली जो कि SC है उसे 80 अंक मिले हैं और उसे बढ़िया कॉलेज और ब्रांच मिलने वाला है। <br /><br />मुझे सिर्फ़ इतना बताईये कि इस "परिस्थिति" को मैं इस लड़की को कैसे समझाऊं ताकि वह आत्महत्या जैसा कोई भयानक कदम न उठा ले और भविष्य में हीनभावना से ग्रस्त ना हो? और आरक्षण के कारण जो "सामाजिक समरसता"(?) का प्रसार हो रहा है उसे भी आत्मसात कर ले। <br /><br />उसकी विधवा माँ जिसने उसे अपना पेट काटकर पढ़ाया है उसके भी सपने टूटकर बिखर गये हैं, वह तो खैर अपनी आयु और अनुभव के कारण इस धक्के को सहन कर लेगी, परन्तु उस युवा लड़की का क्या? <br /><br />अब उसे किसी महंगे प्रायवेट कॉलेज में 55,000 रुपये सालाना फ़ीस देकर एडमिशन लेना पड़ेगा, जहाँ "फ़िर से" वह देखेगी, कि उससे बहुत-बहुत कम प्रतिशत पाने वाली SC लड़की को 30,000 सालाना की "आर्थिक सहायता" मिल रही है… <br /><br />क्या इस देश में गरीब-निम्नमध्यम ब्राह्मण होना गुनाह है? या फ़िर प्रतिभाओं के साथ ऐसे ही खिलवाड़ होता रहेगा? और क्या वाकई इससे सामाजिक समरसता बढ़ेगी?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.com