tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post8088575157740854434..comments2024-03-05T05:42:44.426+05:30Comments on रिजेक्ट माल: हैप्पी न्यू इयर का बाजार और संस्कृतिदिलीप मंडलhttp://www.blogger.com/profile/05235621483389626810noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-71046469521005957342008-01-02T22:40:00.000+05:302008-01-02T22:40:00.000+05:30त्यौहार मनाना एक बात है और मनाने का तरीका चुनना (य...त्यौहार मनाना एक बात है और मनाने का तरीका चुनना (या व्यावसायीरकण) दूसरी। फिर यह तो हमारे देसी त्यौहारों पर भी उतना ही लागू होता है। किसी ने मुझे कहा- "हमें दिवाली पर कहा जाता है कि पटाखे मत फोड़ो, होली पर रंग-गुलाल (दरअसल कीचड़-पेंट कहना चाहिए था उन्हें। रंग-गुलाल को भी शांतिनिकेतन के स्तर तक पहुंचा सकें तो आपत्ति ही क्यों हो।) न लगाओ और फिर सारे विदेशी त्यौहार मनाने में कोई गुरेज़ नहीं करता।" मुद्दा दरअसल मनाने के तरीके का है और अगर यह व्यावसायिकता के बीच फलफूल रहा है तो क्या यह हमारे बस में नहीं है कि हम इसे मनाने का लोकतांत्रिक ढ़ंग से, अपना तरीका चलन में ला दें। क्या जरूरी है कि कीमती तोहफे ही, खरीदे ही जाएं। किसी कलालार की छोटी सी कलाकारी बड़ा तोहफा हो सकती है। और प्यार के दो मीठे बोलों से बड़ा तोहफा कोई हो सकता है? मदर्स डे पर, साल में कम से कम उस एक दिन आप अपनी मां के पास थोड़ी देर पूरे मन से बैठें और कहें कि आज उन्हें घर-परिवार की कोई फिक्र नहीं करनी पड़ेगी तो क्या इसमें कोई रुकावट है? डॉटर्स डे पर बेटी को पूरा दिन अपनी इच्छा से बिताने की इजाजत मिल जाए तो इसमें कोई व्यावसायिकता आड़े आती है? वैसे व्यावसायिकता तो हमारे जीवन में हर कदम पर, हर दिन है। उसे सिर्फ त्यौहारों से नहीं, अपनी जिंदगियों से भी उसी शिद्दत से हटाने की कोशिश करनी चाहिए। और जो चाहते हैं, वो यह कर भी रहे है। क्या घर के बड़े-बुजुर्गों, वृद्धाश्रमों, अनाथालयों, झुग्गी-बस्तियों, कैंसर और एड्स के मरीजों के बीच जाकर लोगों ने त्यौहार मनाने बंद कर दिए है? नहीं न, तो इन विदेशी त्यौहारों को भी तो उसी तरह मनाया जा सकता है, और मनाया जा रहा है। यह तो आप पर है कि आप त्यौहार मनाने का तरीका कौनसा चुनते है। <BR/>और इसके आगे विरोध का एक और तर्क होता है कि क्या इन सबके लिए दिन तय करके मनाना जरूरी है? इस पर तो एक पूरी बहस की गुंजाइश है मेरे दोस्त। वैसे, एक लाइन में मेरा जवाब- बिना दिन तय हुए, या दिनों को नजरअंदाज करते हुए आपने साल में कितनी बार दूसरों के लिए, बिना किसी रिटर्न की उम्मीद किए कुछ किया है?Anonymousnoreply@blogger.com