tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post5272819958622582030..comments2024-03-05T05:42:44.426+05:30Comments on रिजेक्ट माल: एस पी सिंह की रचनाओं का पहला संकलनदिलीप मंडलhttp://www.blogger.com/profile/05235621483389626810noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-84818539399216683942012-03-28T18:47:24.386+05:302012-03-28T18:47:24.386+05:30Zindagi ke raho mein bahut se dost milenge,
Ham ky...Zindagi ke raho mein bahut se dost milenge,<br />Ham kya ham se bhi achhe hazar milenge,<br />En aacho ki bhid mein hame na bhula dena,<br />Ham kaha tumhe bar bar milenge.Neha Sharmahttp://hindisms.orgnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-62254840329113758712011-07-20T21:25:52.628+05:302011-07-20T21:25:52.628+05:30एसपी पर हो रही बात मुझ पर केन्द्रित हो गाई है तो ज...एसपी पर हो रही बात मुझ पर केन्द्रित हो गाई है तो जानिए, मैं शुभ-अशुभ, नैतिक-अनैतिक जैसी कई कामनाओं के बाहर विचरने वाला जीव हूँ. बावजूद इसके शुक्रिया ! हाँ, मैं घर जैसी और भी कई चीजों के संभलने का नहीं बिखरने का हिमायती भी हूँ. वैसे दुनिया भर के महानायकों और मसीहाओं ने जितना अन्याय अपने जीते जी समाज के साथ किया है उससे कहीं ज्यादा मरने के बाद तक किया है, इसके मुक़ाबले छोटे नायकों के हिस्से में कम गुनाह आते हैं.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14756541566873146051noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-31522200513485811242011-07-19T21:57:43.329+05:302011-07-19T21:57:43.329+05:30घर के गुंडों से लड़ रहे हैं, तब तो शुभकामनाएं दूंग...घर के गुंडों से लड़ रहे हैं, तब तो शुभकामनाएं दूंगी कि पहले अपना घर संभाल लें, फिर बाहर निकलें, देखें।आर. अनुराधाhttps://www.blogger.com/profile/16394670775058734814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-91252906654348040002011-07-19T15:51:34.622+05:302011-07-19T15:51:34.622+05:30फिलहाल मैं मूर्तियाँ तोड़ रहा हूँ और घर के गुंडों ...फिलहाल मैं मूर्तियाँ तोड़ रहा हूँ और घर के गुंडों से लड़ रहा हूँ...लगातार लड़ रहा हूँ!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14756541566873146051noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-87799029790758278192011-07-19T15:39:24.630+05:302011-07-19T15:39:24.630+05:30@Bharats- तो आपका क्या विचार है क्रांति के बारे मे...@Bharats- तो आपका क्या विचार है क्रांति के बारे में? आप कैसे कर रहे हैं? अगर इतने लोगों की ताकत है आपके पास कि कुछ मिलकर कर पाएं, तब तो जरूर कर सकते हैं, वरना मोहल्ले के गुंडों से अकेले लड़े हैं कभी? अपने अनुभव शेयर कीजिएगा।आर. अनुराधाhttps://www.blogger.com/profile/16394670775058734814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-60874526487021548942011-07-19T14:43:14.102+05:302011-07-19T14:43:14.102+05:30हे हे हे, इसका मतलब मज़दूरों को अपना मज़बूत संगठन ...हे हे हे, इसका मतलब मज़दूरों को अपना मज़बूत संगठन खड़ा करने, अपनी मांगें मनवाने, श्रम का उचित मूल्य लेने के लिए पहले एक कारखाना खोलना होगा. इसके बाद इसमें तमाम शोषित मज़दूरों की भर्ती करनी होगी. इसमें बना हुआ माल खपाने का भी उन्हें खुद से इंतजाम करना होगा. जो एसा नहीं कर पायेगा उसे मालिकों या उनके ठेकेदारों के खिलाफ बोलने का कोई हक़ नहीं है. कहीं एसपी ये भी तो नहीं कहते थे कि क्रांति के लिए दूसरा जन्म लेना होगा, दूसरे का घर ढूंढना होगा और दूसरे कारखाने का शिकार करना होगा. क्या क्रांति कभी सरल-समतल रास्तों पर चलकर और पूंजीपतियों से दोस्ती गांठकर मिली है...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14756541566873146051noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-63741415188919680872011-07-18T23:06:33.016+05:302011-07-18T23:06:33.016+05:30एस पी ने दो अलग-अलग इंटरव्यू में दो संबंधित सवालों...एस पी ने दो अलग-अलग इंटरव्यू में दो संबंधित सवालों के जो जवाब दिए, उनके हिस्से इधर दे रही हूं। उम्मीद है उनमें आपको कोई जवाब ढ़ूंढने का रास्ता मिले-<br /><br />"क्रांति के लिए निकालना चाहते हैं तो क्रांति का अखबार निकालिए। लेकिन अपने क्रांतिकारी ढंग से उसकी पूंजी जुटाएं। लेकिन आप कोशिश करें कि नहीं, हमारा अखबार तो सेठ निकालें, सारे खर्चे सेठ बर्दाश्त करें और उसमें बैठकर क्रांति मैं करूं तो मैं समझता हूं कि यह अनुचित मांग है।" <br /><br />"आप अपने मुहल्ले के गुंडे से खुलकर लड़ पाती हैं?<br />वहीं नुक्कड़ पर उनका अखाड़ा है, वहीं से वे फब्तियां कसते हैं, दंड पेलते हैं, आप में<br />क्या हिम्मत है कि उनको मना करें? तो ये (विज्ञापनदाता) हमारे मुहल्ले के गुंडे हैं।<br />आपको अपनी प्राथमिकताएं तय करनी पड़ती हैं। आप लड़ने बैठें भी तो यह तो<br />नहीं है कि दसों से एक साथ लड़ने बैठ जाएंगे। नौ से लड़िए, सात से लड़िए, दसों से<br />एक साथ लड़ने बैठे तो पिटकर घर बैठ जाएंगे। जैसी आपकी सामर्थ्र्य है उतना ही<br />लड़िए।<br />"आर. अनुराधाhttps://www.blogger.com/profile/16394670775058734814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8572692232380351295.post-36647888982657703282011-07-18T22:24:00.177+05:302011-07-18T22:24:00.177+05:30एसपी सिंह को तमाम दावों और तथ्यों से बेहतरीन पत्रक...एसपी सिंह को तमाम दावों और तथ्यों से बेहतरीन पत्रकार घोषित करने के बावजूद एक दुविधा है. एसपी सिंह और प्रभाष जोशी ऐसे संपादक/पत्रकारों में से रहे हैं जिनके दौर से ही पत्रकारों को ठेके पर रखने की प्रथा शुरू हुयी. ब्राहमण, पोंगापंथी और सामंतवादी प्रभाष जोशी से तो नहीं लेकिन समाज की तमाम बुराइयों पर बेलौस लिखने वाले और पत्रकारिता में तथाकथित खोजी और स्पॉट रिपोर्टिंग की शुरुआत करने के साथ उसे नए आयाम देने वाले एसपी सिंह ने इसके खिलाफ कभी कुछ क्यूँ नहीं किया...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14756541566873146051noreply@blogger.com