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Friday, September 28, 2007

उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारंभ होगा

(सच है कि शहीदे आजम भगत सिंह को याद करने के लिए किसी बहाने की जरूरत नही, मगर यह याद कर लेना भी गुनाह नहीं कि आज भगत सिंह के जन्म को १०० साल पूरे हो रहे हैं. २८ सितंबर १९०७ को भगत सिंह ने इस देश की मिट्टी को गौरवान्वित किया था. प्रस्तुत है भगत सिंह के एक लेख का अंश जिसका एक-एक शब्द घोल कर पी जाने लायक है.)

भगत सिंह

इस संसार को मिथ्या नहीं मानता. मेरा देश, न परछाई है, न ही कोई मायाजाल. ये एक जीती-जागती हकीकत है. हसीन हकीकत और मैं इससे प्यार करता हूं. मेरे लिए इस धरती के अलावा न तो कोई और दुनिया है और न कोई स्वर्ग. यह सही है कि आज थोड़े से व्यक्तियों ने अपने स्वार्थ के लिए इस धरती को नर्क बना दिया है. लेकिन इसके साथ ही इसे काल्पनिक कह कर भागने से काम नहीं चलेगा. लुटेरों और दुनिया को गुलाम बनानेवालों को खत्म करके हमें इस पवित्र धरती पर वापिस स्वर्ग की स्थापना करनी होगी.

पूछता हूं कि सर्वशक्तिमान होकर भी आपका भगवान अन्याय, अत्याचार, भूख, गरीबी, लूट-पाट, ऊंच-नीच, गुलामी, हिंसा, महामारी और युद्ध का अंत क्यों नहीं करता? इन सबकों खत्म करने की ताकत होते हुए भी वह मनुष्यों को इन शापों से मुक्त नहीं करता, तो निश्चय ही उसे अच्छा भगवान नहीं कहा जा सकता और अगर उसमें इन सब बुराइयों को खत्म करने की शक्ति नहीं है, तो वह सर्व शक्तिमान नहीं है.

वह ये सारे खेल अपनी लीला दिखाने के लिए कर रहा है, तो निश्चय ही यह कहना पड़ेगा कि वह बेसहारा व्यक्तियों को तड़पा कर सजा देनेवाली एक निर्दयी और क्रूर सत्ता है और जनता के हित से उसका जल्द-से-जल्द खत्म हो जाना ही बेहतर है.

मायावाद, किस्मतवाद, ईश्वरवाद आदि को मैं चंद लुटेरों द्वारा साधारण जनता को बहलाने-फुसलाने के लिए खोजी गयी जहरीली घुट्टी से ज्यादा कुछ नहीं समझता. दुनिया में अभी तक जितना भी खून-खराबा धर्म के नाम पर धर्म के ठेकेदारों ने किया है, उतना शायद ही किसी और ने किया होगा. जो धर्म इनसान को इनसान से अलग करे, मोहब्बत की जगह एक-दूसरे के प्रति नफरत करना सिखाना, अंधविश्वास को उत्साहित करके लोगों के बौद्धिक विकास को रोक कर उनके दिमाग को विवेकहीन बनाना, वह कभी भी मेरा धर्म नहीं बन सकता.

हम भगवान, पुनर्जन्म, स्वर्ग, घमंड और भगवान द्वारा बनाये गये जीवन के हिसाब-किताब पर कोई विश्वास नहीं रखते. इन सब जीवन-मौत के बारे में हमें हमेशा पदार्थवादी ढंग से ही सोचना चाहिए. जिस दिन हमें भगवान के ऊपर विश्वास न करनेवाले बहुत सारे स्त्री-पुरुष मिल जायें जो केवल अपना जीवन मनुष्यता की सेवा और पीड़ित मनुष्य की भलाई के सिवाय और कहीं समर्पित कर ही नहीं सकते. उसी दिन से मुक्ति के युग का शुभ आरंभ होगा.

मैंने अराजकतावादी, कम्युनिज़्म के पितामह कार्ल मार्क्स, लेनिन, ट्राटस्की और अन्य के लिखे साहित्य को पढ़ा है. वो सारे नास्तिक थे. सन 1922 के आखिर तक मुझे इस बात पर विश्वास हो गया कि सर्वशक्तिमान परमात्मा की बात, जिसने ब्रह्मांड की संरचना की है, संचालन किया है, एक कोरी बकवास है.


जैसे लडोगे, वैसे लड़ेंगे
(इसके साथ ही हम यहाँ वरिष्ठ और प्रतिबद्ध पत्रकार अनिल चमड़िया की यह उक्ति भी प्रस्तुत करना चाहेंगे जो हमे भगत सिंह के ऊपर दिए गए लेखांश के साथ ई मेल से मिला)

हम भगत सिंह को हरियाणा के उस दलित नौजवान की तरह समझते हैं जो कहता है कि जैसे लड़ोगे, वैसे लड़ेंगे. दरअसल जो लोग संघर्ष के बारे में यह प्रश्न उठाते है कि वह हिंसात्मक होगा या अहिंसात्मक वे लोग सत्ता के साथ खड़े होते है. भगत सिंह का पूरा दर्शन कहीं भी और कभी भी नहीं कहता है कि हिंसा ही एक रास्ता है. उन्होंने बम भी फेंका और अनशन भी किये. बुनियादी परिवर्तन करनेवाले सूत्र भगत सिंह के दर्शन में मिलते हैं.
-अनिल चमड़िया

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