बहरहाल, जो सूचनाएं ब्लॉगेतर माध्यमों से आई, उससे मेरे लिए इस घटना के सच-झूठ के बारे में कोई राय बना पाना संभव नहीं है। कोई भी आदमी कोई भी हरकत कर सकता है, और किसी बुरी हरकत के लिए किसी आदमी का घोषित या ज्ञात रूप से बुरा होना जरूरी नहीं है, ऐसा मेरा अनुभव है। इस बात को मैं तथ्य से साबित नहीं करना चाहूंगा। हर आदमी का जीवन अनुभव उसे सिखाता है और राय बनाने में मदद करता है।
अविनाश प्रसंग में अगर किसी महिला या लड़की ने जबर्दस्ती का आरोप लगाया है, तो आरोप गलत साबित होने तक अविनाश दोषी हैं। कानून की नजर में भी और समाज की नजर में भी। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो भी अविनाश के बारे में किसी को अपनी राय बनाने का अधिकार है। अविनाश अगर मेरे मित्र न होते तो भी इस मामले में कदाचित मेरी राय यही होती।
यौन शुचिता और नैतिकता के नियम समय के साथ बदलते रहते हैं। नैतिकता की परिभाषा, अलग अलग समाजों, वर्गों और यहां तक की शहरों और गांवों और कस्बों तक में बदल जाती हैं। भोपाल और मेरठ की नैतिकता गुड़गांव, पार्कस्ट्रीट और कफ परेड की नैतिकता से अलग है। एक ही शहर में पॉश मोहल्ले और स्लम की नैतिकता अलग होती है। उसी तरह एक ही परिवार में गरीब और अमीर भाई के माइक्रो परिवार की नैतिकता अलग होती है। अखिल भारतीयता की तलाश इस मामले में आपको कहीं नहीं पहुंचाएगी।
इस मामले में हर व्यक्ति की दृष्टि अलग हो सकती है। मेरे लिए वो शारीरिक संबंध वैध हैं, जो वयस्क लोगों के बीच आपसी सहमति से कायम किए जाते हैं। जबर्दस्ती हुई तो ये कानूनी अपराध है। लालच (जॉब, प्रमोशन, पैसा, इंक्रिमेंट से लेकर चुनाव टिकट समेत इसके हजारों चेहरे हो सकते हैं) का पहलू अगर संबंधों के बीच आया तो ये अनैतिक ( या कम से कम अनुचित) माना जाएगा। रिश्तेदारियों की कुछ सीमाएं इसमें हैं और इसका वैज्ञानिक आधार भी हैं। जबर्दस्ती हुई तो पीड़ित पक्ष को सामने आना चाहिए। हालांकि ये कई बार संभव नहीं हो पाता। लालच संबंधों का आधार नहीं होना चाहिए। लेकिन है तो कोई इसमें बाधा कैसे खड़ा कर सकता है? ये चुनाव तो उसी को करना है, जिसका इससे वास्ता है।
लेकिन सिर्फ चर्चाओं के आधार पर किसी को दोषी करार देने की किसी की इच्छा का आदर करने के लिए मैं तैयार नहीं हूं। किसी व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर मैं खारिज करने को भी तैयार नहीं हूं, कि कुछ लोग ऐसा कह रहे हैं। आप ये नहीं भूल सकते कि देश में बाढ़ की रिपोर्टिंग की चर्चा हो तो जिस एक शख्स का नाम आप नहीं भूला सकते, वो नाम अविनाश का है। अविनाश पर आरोप लगे तो, साबित न होने तक उन्हें दोषी करार दीजिए। लेकिन उससे पहले उन्हें खारिज मत कीजिए। कोई दमदार व्यक्ति इतने भर से खारिज होता भी नहीं है। आपका जीवन अनुभव क्या कहता है इस बारे में? -दिलीप मंडल