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Saturday, July 26, 2008

कबाड़खाना मना रहा है इब्ने सफी बी.ए. का जन्मदिन

बोकारो स्टील सिटी में हमारे घर में पुरानी किताबों का एक कमरा हुआ करता था। दिनमान-धर्मयुग-इलस्ट्रेटेड विकली के बाइंड किए अंकों के बीच उस कमरे में वो किताबें भी थीं, जो हमारे पिताजी कभी पढ़ा करते थे। उसी कमरे में मेरा परिचय हुआ इब्ने सफी बी.ए. साहेब से।

उपमहाद्वीप में जासूसी उपन्यास लेखन के दिग्गज इब्ने सफी साहेब की आज जयंती है। उनका निधन भी इसी दिन हुआ था। अधपकी उम्र में मौत से पहले तक सफी साहेब लिखने में जुटे रहे। कबाड़खाना पहुंचें इस लिंक पर क्लिक करके

Wednesday, July 16, 2008

गंगा तट पर परंपरा से टकराती/जुगलबंदी करती आधुनिकता और कुछ अबूझ पहेली

पहाड़ों से दोस्ती है और गंगा से अपनापा है, सो साल में एक से ज्यादा बार गंगा दर्शन करने जरूर जाता हूं। पिछले दिनों भी गया था। हरिद्वार के पास राजाजी नेशनल पार्क के चिल्ला जीएमवीएन गेस्ट हाउस में एक बार फिर ठहरना हुआ। भीमागौड़ा बराज से इन दिनों पानी उफन रहा है, मानो गंगा को किसी बात से शिकायत है या फिर नाराजगी! कौन बताएगा? गंगा के गुस्से में शोर है, पर उसे शब्द कौन देगा। भाई राजेन टोडरिया जी का टिहरी विस्थापन पर उपन्यास जब आए, तो सबको पढना चाहिए।

बहरहाल इस बार की गंगा यात्रा में बाकी सबकुछ तो सामान्य ही था। गंगा का शीतल पानी, देश भर के लोगों को अद्भुत जमावड़ा। कहीं कहीं परंपरा से टकराती आधुनिकता और ज्यादातर मामलों में परंपरा और आधुनिकता की जुगलबंदी। गलबहियां डाले घूमती आधुनिकता और पंरपरा और हर बाबा के हाथ में मोबाइल। वक्त बदल रहा है और बहुत तेजी से बदल रहा है। कुछ तो समझ में आता है और बहुत सारा अबूझ रह जाता है। ऐसी ही एक अबूझ बात के बारे में आप सबका मार्गदर्शन चाहिए।

उस दिन (रविवार) हर की पैड़ी (पौड़ी कहने वाले कम नहीं हैं) में स्नान कर रहे हजारों पुरुषों के खाली बदन में से सिर्फ एक जनेऊधारी मुझे क्यों दिखा? कई घंटे तक वहां रहने के बाद में मुझे साफ दिख रहा था स्नान करने वालों में जनेऊ धारण करने वाले लोग नदारद हैं।

इसकी क्या व्याख्याएं हो सकती हैं।
क्या अवर्ण लोगों में आस्था के प्रति रुझान बढ़ा है?
क्या इस युग में आस्था और परंपरा के वाहक सवर्ण नहीं बल्कि अवर्ण हैं?
क्या आस्था का सवर्ण प्रभुत्व वाला व्यवसाय अवर्ण जनसमुदाय के बूते चल रहा है?
क्या अवर्ण लोगों के लिए ये समृद्धि का दौर है और तीर्थ यात्रा या तफरीह के लिए वो ज्यादा संख्या में घरों से बाहर निकल रहे हैं?
क्या आधुनिकता को अपनाने में सवर्ण आगे हैं और पुरानी परंपराओं का ढोने का जिम्मा अब अवर्णों का है।

सबसे पहले तो हरिद्वार का कोई पत्रकार/ब्लॉगर/साहित्यकार/फोटोग्राफर ये बताए कि जो मुझे दिखा वो तथ्य है या नजरों का फेर या वो है जो मैं देखना चाहता था। अगर तथ्य वो नहीं हैं जो उस खास दिन और खास घंटों में मुझे दिखा, तो फिर इस प्रकरण को बंद समझा जा सकता है। लेकिन अगर वो सच है तो समाज में कुछ तो बदल गया है और कुछ और है जो बदल रहा है। - दिलीप मंडल

Tuesday, July 8, 2008

मुमकिन है कैंसर के साथ जीना !

कैंसर का खौफ अब पहले से कम हो रहा है। कैंसर के बावजूद अब कई लोग उसी तरह लंबी जिंदगी जी रहे हैं जैसे कि हार्ट की बीमारी या डायबिटीज के मरीज जीते हैं। बीमारी का इलाज न हो तो भी उसका मैनेजमेंट कई बार मुमकिन हो पाता है। कैंसर का मतलब जीवन का अंत नहीं है, इस बात को रेखांकित करता एक लेख आज नवभारत टाइम्स के संपादकीय पन्ने पर मुख्य लेख के रूप में छपा है। लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

ये लेख आर अनुराधा ने लिखा है, जिनकी राजकमल-राधाकृष्ण से छपी किताब इंद्रधनुष के पीछे -पीछे, एक कैंसर विजेता की डायरी बेस्टसेलर रही है। अनुराधा के ब्लॉग का नाम है इंद्रधनुष

Monday, July 7, 2008

बंद करो ये तुष्टीकरण!

- दिलीप मंडल

कश्मीर से शुरू होकर इंदौर और देश के कई हिस्से में मचे फसाद के दौरान ये बात कहना खास तौर पर जरूरी है। आप न जानते हों, ऐसा भी नहीं है। पिछले दो दशक में देश की राजनीति में जिस एक शब्द का शायद सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ है वो है - तुष्टीकरण।

सारे तथ्य इस बात के खिलाफ हैं कि मुसलमानों पर देश की संपदा लुटाई जा रही है। कोई ये नहीं कहता कि मुसलमान देश के सबसे संपन्न समुदाय हैं। कोई ये भी नहीं कहता कि उन्हें सरकारी नौकरियों में या शिक्षा संस्थानों में या फौज में ज्यादा जगह मिल रही है। या कि बैंक लोन देते समय मुसलमानों का खास ख्याल रखते हैं। या कि पुलिस मुसलमानों पर मेहरबान होती है। बल्कि हालात उलट हैं। फिर भी बिना किसी हिचक के ये बात कह दी जाती है कि मुसलमानों का तुष्टीकरण हो रहा है ।

देश में मुसलमानों का तुष्टीकरण अगर हो रहा है तो बंद होना चाहिए। लोकतंत्र में हर किसी को आगे बढ़ने का समान हक मिलना चाहिए। धर्म के आधार पर अवसर में असमानता क्यों होनी चाहिए? लेकिन क्या देश में मुसलमानों की जो हालत है उसे देखकर, जानकर कोई भी ये कह सकता है कि उनका तुष्टीकरण हो रहा है। दरअसल भारत में तुष्टीकरण की बात इतनी बार और इतने तरीके से कही गई है और कही जा रही है कि कोई भी आदमी अगर वो बेहद चौकन्ना और सचेत नहीं है, तो ये मान बैठेगा कि मुसलमानों पर देश की संपदा लुटाई जा रही है।

आइए देखते हैं कि देश की संपदा में किसका कितना हिस्सा है। ये आंकड़े नेशनल सैंपल सर्वे यानी एनएसएसओ के हैं। ये संस्था भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के तहत काम करती है और सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की या समाजवादी दलों की, इस संस्था के आंकड़े राजकाज से जुड़े फैसलों में निर्णायक महत्व के होते हैं। आंकड़ों को छोड़ भी दें तो इससे मिलती-जुलती तस्वीर आपको अपने शहर-कस्बों और गांवों में दिख जाएगी।

1. हिंदू (सवर्ण)

उच्च आय - 17.2%
मध्यम आय - 73.9
निम्न आय - 8.9%

2. हिंदू (एससी-एसटी)

उच्च आय - 6.3%
मध्यम आय - 65.1%
निम्न आय - 28.6%

3. हिंदू (ओबीसी)

उच्च आय - 1.5%
मध्यम आय - 72.6%
निम्न आय - 25.9%

4. मुसलमान(जनरल+ओबीसी)

उच्च आय - 4.2%
मध्यम आय - 65.0%
निम्न आय - 30.8%

इन आंकड़ों में गरीबी रेखा से नीचे यानी शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति 567 और ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति 361 रुपए की मासिक आमदनी से कम वालों को निम्न आय में रखा गया है। जबकि एक लाख रुपए से ज्यादा की आय वाले परिवारों को उच्च आय वाला माना गया है। एनएसएसओ परिवार का औसत आकार 5.59 मानता है। इस लिहाज से प्रति व्यक्ति उच्च आय की परिभाषा है शहरी इलाकों में प्रति माह 1491 रुपए और ग्रामीण इलाकों में 1368 रुपए। इन दोनों (निम्न और उच्च) आय वर्गों के बीच में जो भी है उसे मध्यम आय वाला माना गया है।)

इन आंकड़ों को आप जस्टिस रजिंदर सच्चर की रिपोर्ट के 381 नंबर पेज पर भी देख सकते हैं

Thursday, July 3, 2008

एक राजनीतिक संवाददाता ने ख्वाब में जो देखा

दिल्ली, 15 जुलाई 2008

- सरकार समाजवादी पार्टी, अजित सिंह और देवेगौड़ा जी समेत कुछ खुदरा दलों के समर्थन से चल रही है। सरकार पुरानी है, प्रधानमंत्री पुराने हैं, लेकिन कैबिनेट में कुछ चेहरे नए हैं।
- समाजवादी पार्टी न्यूक्लियर डील के देशहित में होने के एपीजे अब्दुल कलाम के सर्टिफिकेट को मेडल की तरह पहनकर मुसलमानों को समझाने की कोशिश में जुटी है कि सांप्रदायिकता को रोकने के लिए उसने ये सब किया है।
- समाजवादी पार्टी सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है। इसके लिए वो सरकार से पूरी कीमत वसूल रही है।
- अनिल अंबानी के रुके हुए काम सरकार पूरे कर रही है। केजी बेसिन के गैस बंटवारे पर फैसला अनिल अंबानी के हित में होगा।
- समाजवादी पार्टी और अमर सिंह के करीबी उद्योगपतियों के अच्छे दिन लौट आए हैं। सहारा को अब कोई कष्ट नहीं है।
- मायावती के खिलाफ सीबीआई की जांच की फाइल फिर से खुल गई है।
- लेफ्ट पार्टियां मनमोहन सिंह के पुतले जला रही है और महंगाई के खिलाफ देशव्यापी अभियान चला रही है, जिसका पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में असर हो रहा है।
- लालू और मुलायम अब अक्सर साथ साथ डिनर करते हैं।
- मीडिया आम राय से मनमोहन सिंह को देश का सबसे महान, प्रभावशाली, दमदार और मर्द प्रधानमंत्री बता रहा है।

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