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Monday, February 23, 2009

अविनाश और नीति-नैतिकता पर कुछ फुटकर विचार

भोपाल में काम कर रहे पत्रकार, ब्लॉगर और मित्र अविनाश के हाल के प्रकरण से जुड़ी घटनाओं और चर्चाओं से मैं लगभग अछूता रहा। ब्लॉग ही शायद वो जगह थी, जहां इसकी सबसे ज्यादा चर्चा हुई और निजी कारणों से पिछले लगभग छह महीने से इस नए उभरते और प्रिय शिशु माध्यम से अपना जुड़ाव नहीं था। 

बहरहाल, जो सूचनाएं ब्लॉगेतर माध्यमों से आई, उससे मेरे लिए इस घटना के सच-झूठ के बारे में कोई राय बना पाना संभव नहीं है। कोई भी आदमी कोई भी हरकत कर सकता है, और किसी बुरी हरकत के लिए किसी आदमी का घोषित या ज्ञात रूप से बुरा होना जरूरी नहीं है, ऐसा मेरा अनुभव है। इस बात को मैं तथ्य से साबित नहीं करना चाहूंगा। हर आदमी का जीवन अनुभव उसे सिखाता है और राय बनाने में मदद करता है।

अविनाश प्रसंग में अगर किसी महिला या लड़की ने जबर्दस्ती का आरोप लगाया है, तो आरोप गलत साबित होने तक अविनाश दोषी हैं। कानून की नजर में भी और समाज की नजर में भी। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो भी अविनाश के बारे में किसी को अपनी राय बनाने का अधिकार है। अविनाश अगर मेरे मित्र न होते तो भी इस मामले में कदाचित मेरी राय यही होती। 

यौन शुचिता और नैतिकता के नियम समय के साथ बदलते रहते हैं। नैतिकता की परिभाषा, अलग अलग समाजों, वर्गों और यहां तक की शहरों और गांवों और कस्बों तक में बदल जाती हैं। भोपाल और मेरठ की नैतिकता गुड़गांव, पार्कस्ट्रीट और कफ परेड की नैतिकता से अलग है। एक ही शहर में पॉश मोहल्ले और स्लम की नैतिकता अलग होती है। उसी तरह एक ही परिवार में गरीब और अमीर भाई के माइक्रो परिवार की नैतिकता अलग होती है। अखिल भारतीयता की तलाश इस मामले में आपको कहीं नहीं पहुंचाएगी। 

इस मामले में हर व्यक्ति की दृष्टि अलग हो सकती है। मेरे लिए वो शारीरिक संबंध वैध हैं, जो वयस्क लोगों के बीच आपसी सहमति से कायम किए जाते हैं। जबर्दस्ती हुई तो ये कानूनी अपराध है। लालच (जॉब, प्रमोशन, पैसा, इंक्रिमेंट से लेकर चुनाव टिकट समेत इसके हजारों चेहरे हो सकते हैं) का पहलू अगर संबंधों के बीच आया तो ये अनैतिक ( या कम से कम अनुचित) माना जाएगा।  रिश्तेदारियों की कुछ सीमाएं इसमें हैं और इसका वैज्ञानिक आधार भी हैं। जबर्दस्ती हुई तो पीड़ित पक्ष को सामने आना चाहिए। हालांकि ये कई बार संभव नहीं हो पाता। लालच संबंधों का आधार नहीं होना चाहिए। लेकिन है तो कोई इसमें बाधा कैसे खड़ा कर सकता है? ये चुनाव तो उसी को करना है, जिसका इससे वास्ता है। 

लेकिन सिर्फ चर्चाओं के आधार पर किसी को दोषी करार देने की किसी की इच्छा का आदर करने के लिए मैं तैयार नहीं हूं। किसी व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर मैं खारिज करने को भी तैयार नहीं हूं, कि कुछ लोग ऐसा कह रहे हैं। आप ये नहीं भूल सकते कि देश में बाढ़ की रिपोर्टिंग की चर्चा हो तो जिस एक शख्स का नाम आप नहीं भूला सकते, वो नाम अविनाश का है। अविनाश पर  आरोप लगे तो, साबित न होने तक उन्हें दोषी करार दीजिए। लेकिन उससे पहले उन्हें खारिज मत कीजिए। कोई दमदार व्यक्ति इतने भर से खारिज होता भी नहीं है। आपका जीवन अनुभव क्या कहता है इस बारे में? -दिलीप मंडल

Sunday, February 22, 2009

जेड गुडी के बहाने

आज के दिन हर जगह जेड गुडी की चर्चा है। आज का दिन उसके लिए खास है- उसने आज शादी कर ली है। उसकी शादी के पहले इंग्लैंड और वेल्स के रोमन कैथोलिक चर्च ने जेड को शुभकामनाएं दीं और उनके लिए प्रार्थना की। पर दुनिया के लिए 27 वर्षीय जेड गुडी की शादी इतनी खास क्यों है? इसका जवाब पाने के लिए उसकी पूरी कहानी जाननी पड़ेगी।

जेड के जिक्र/ परिचय का सिरा जोड़ने के लिए याद दिला दूं कि हिंदुस्तानी मीडिया में जेड की चर्चा पहली बार जनवरी 2007 में हुई जब इंगलैंड के रियलिटी टीवी शो 'सेलेब्रिटी बिग ब्रदर' में शिल्पा शेट्टी पर रेसिस्ट टिप्पणियां करने का इल्जाम उस पर लगा। इसके बाद वे शो से बाहर हो गईं और आखिरकार शिल्पा जीत गईं। हालांकि इसके लिए बाद में जेड ने कई बार माफी मांगी और सफाई दी कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था।

दिलचस्प बात यह है कि फिर अगस्त 2008 में भारत में 'बिग ब्रदर' की ही तर्ज पर शिल्पा के कार्यक्रम 'बिग बॉस' में जेड शामिल हुईं। बिग बॉस के घर में अपने दूसरे ही दिन जेड को फोन पर पता चला कि उन्हें बच्चेदानी के मुंह का कैंसर है जो काफी विकसित अवस्था में है जिसका फौरन इलाज जरूरी है। जाहिर है, जेड कार्यक्रम छोड़ कर चली गईं और तब से लगातार कैंसर से लड़ रही हैं। ताजा समाचार यह है कि डॉक्टरों का कहना है कि “उसके पास इस दुनिया में ज्यादा समय नहीं है”।

कोई भी किसी के इस दुनिया में रहने या न रहने के समय को कैसे तय कर सकता है, जब तक कि व्यक्ति के दिल-दिमाग ने काम करना बंद न कर दिया हो? खास तौर पर कैंसर के मरीजों के बारे में ऐसी ‘भविष्यवाणियां’ मैंने भी कई बार सुनी हैं। और, यकीन मानिए, डॉक्टरों की ऐसी भविष्यवाणियों को भी अनेक मरीजों ने मेरे सामने ही झूठा साबित कर दिया है। सबका जिक्र जरूरी नहीं है, लेकिन दो-चार या आठ-दस महीनों को चार-पांच साल में बदलते मैंने कई बार देखा है। इसलिए जब सुन रही हूं कि जेड के पास कुछेक हफ्तों या महीनों का ही समय है तो चुपचाप यकीन नहीं करना चाहती। और अगर यह सच हो भी जाए तो बड़ी बात यह होगी कि जेड ने अपने 27 साल के जीवन को कितना जिया। महत्वपूर्ण सवाल यह होगा कि अपने छोटे से समय में उसने क्या किया।

उसने बहुत कुछ किया, खूब किया। पांच जून 1981 को जन्मी एक टूटे परिवार की लड़की जेड सेरिसा लॉराइन गुडी को पहली बार दुनिया ने जाना जब वह 2002 में ब्रिटेन के चैनल 4 के रियलिटी शो 'बिग ब्रदर' के परिवार में शामिल हुईं। इस ‘परिवार’ से निकाले जाने के बाद उसने अपने टीवी कार्यक्रम बनाना शुरू किया। साथ ही अपने सौंदर्य प्रसाधन भी बाजार में उतारे।

सोलह साल की उम्र में पहली बार उसे पता लगा कि उसके शरीर में कई ऐसी कोशिकाएं हैं जो कैंसर बना सकती हैं। इन बीमार कोशिकाओं का इलाज कर दिया गया। फिर सन 2004 उसे अंडाशय (ओवरी) का कैंसर और फिर 2006 में मलाशय का कैंसर बताया गया। दोनो बार इलाज के बाद उसे डॉक्टरों ने ‘ठीक हो गई’ माना। मगर ऐसा था नहीं। अगस्त 2008 के शुरू में फिर कैंसर की आशंका में उसने कुछ जांचें करवाईं जिनकी रिपोर्ट उन्हें हिंदुस्तान में बिग बॉस के घर पर मिली। इस दौरान दो मई 2006 को जेड ने अपनी पहली आत्मकथा- 'जेड: माई ऑटोबायोग्राफी' छपवाई और उसी साल जून में अपना इत्र- 'श्..जेड गुडी' जारी किया जो खासा लोकप्रिय हुआ।

नवंबर 2006 तक उसने नाउ पत्रिका के लिए साप्ताहिक कॉलम भी लिखा। फिर अगस्त 2008 में तीसरी बार कैंसर होने का पता लगने के बाद अक्टूबर 2008 में एक और आत्मकता लिखी- 'जेड: कैच अ फॉलिंग स्टार' जिसमें 2007 में बिग ब्रदर कार्यक्रम के दौरान के अनुभवों को समेटा है। उस पर एक टीवी डॉक्युमेंटरी ‘लिविंग विथ जेड गुडी’ का प्रसारण सितंबर में हुआ तो दिसंबर में एक और फिल्म ‘जेड’स कैंसर बैटल’ दिखाई गई। अक्टूबर में उसने अपना दूसरा ब्यूटी सैलोन खोला। फिर क्रिसमस के दौरान थिएटर रॉयल में 'स्नो व्हाइट' नाटक में बिगड़ैल रानी का किरदार निभाया। इस हालत में भी अपनी जीजीविषा को जिलाए रखने और अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना सब कर पाने के लिए उसकी खूब तारीफ हुई। पर जनवरी में उसे इस शो से हटना पड़ा, शरीर साथ नहीं दे पाया।

शुक्रवार, 6 फरवरी को उनके मलाशय से गेंद के बराबर ट्यूमर ऑपरेशन के जरिए निकाला गया। आज उसने अपनी बीमारी की हालत में, मौत के करीब खड़े होकर भी शादी की है जिसे फिल्माने का ठेका भी उन्होंने महंगे में बेचा। इस ईवेंट के एक्सक्लूसिव कवरेज के लिए एक पत्रिका के साथ भी उनका सौदा हुआ, एक मोटी रकम के बदले। और कीमोथेरेपी से गंजी हुई अपनी खोपड़ी को दिखाने के लिए शादी में घूंघट न पहनने का फैसला भी चौंकाने वाला, पर बिकाऊ रहा।

अपनी जिंदगी के आखिरी चंद दिन कैमरे में कैद करवाने वाली यह बीमार सेलेब्रिटी अब अपनी मौत को भी भुनाना चाहती है? लोग यही कह रहे हैं और वह खुद भी कहती है कि वह मरने के पहले ज्यादा से ज्यादा धन इकट्ठा कर लेना चाहती है, अपने पांच और चार साल के दो बच्चों के लिए। इस बारे में कुछ लोगों का कहना है कि यह जेड का शोषण है। किसी की मौत को टीवी पर लाइव देखना- दिखाना क्रूर और अमानवीय है। पर जेड का कहना है कि उनकी जिंदगी कैमरे के सामने बीती है, इसलिए मौत भी कैमरे के सामने ही हो। उधर डॉक्टर मान रहे हैं कि टीवी पर यह सब देख रहे हजारों दर्शक इसी बहाने कैंसर के बारे में जानेंगे और जागरूक बनेंगे।
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