बोकारो स्टील सिटी में हमारे घर में पुरानी किताबों का एक कमरा हुआ करता था। दिनमान-धर्मयुग-इलस्ट्रेटेड विकली के बाइंड किए अंकों के बीच उस कमरे में वो किताबें भी थीं, जो हमारे पिताजी कभी पढ़ा करते थे। उसी कमरे में मेरा परिचय हुआ इब्ने सफी बी.ए. साहेब से।
उपमहाद्वीप में जासूसी उपन्यास लेखन के दिग्गज इब्ने सफी साहेब की आज जयंती है। उनका निधन भी इसी दिन हुआ था। अधपकी उम्र में मौत से पहले तक सफी साहेब लिखने में जुटे रहे। कबाड़खाना पहुंचें इस लिंक पर क्लिक करके।
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Saturday, July 26, 2008
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2 comments:
kabaadkhane me bhi kitni kaam ki cheese pade hai, kahi naasamji ke kaaran to nahi log aisa karte. maja aa gaya ibne sahab ke baare me padkar.
Very nice blog !! Good Job, keep up the good work. http://aboutcricket.wordpress.com
Sandesh Kumar
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