कमलेश पांडे 'पुष्प'
(कमलेश दिल्ली से प्रकाशित समाचार पत्रिका 'सीनियर इंडिया' से जुड़े हैं। पिछले दिनों मुंबई में हुए भीषण आतंकी हमले ने आम जनों की तरह संवेदनशील पत्रकारों को भी विचलित किया। कमलेश भी उन पत्रकारों में हैं। उनकी ये पंक्तियाँ इस बात की गवाह हैं। आप भी देखें इन्हें)
मुझे याद है
ब्लैक बोर्ड पर लिखे
कैलाश मास्टर के
क ख ग घ
जिसे मैं
गाँव की प्राइमरी पाठशाला की
सीलन भरी जमीन पर बैठ
लकड़ी की pattiyon पर
मुश्किलों से लिखना
सीख पाया था।
तब मुझे नही मालूम था
वही क ख ग घ
मेरी जिंदगी में
आगे चल कर
कत्ल, खुखरी, गोली और घाव
शब्द उकेरेंगे
और मैं इन शब्दों को / अपने ही लोगों की लाशों के बीच बैठ कर
खडिया और स्याही के बजाय
अपने गाढे रक्त से लिखूंगा
इतिहास के पन्नों के लिए
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9 comments:
बहुत अच्छी कविता।
कुछ ऐसी ही कविता मैंने भी लिखी थी। आखिरी पंक्तियाँ -
फ़िर मैंने शब्दों में घोल लिए
ज्ञान और विज्ञान
राजनीति और अर्थनीति
संख्या और योग के तर्क
गुरुत्व और सापेक्षता के सिद्धांत
शब्दों से गढ़ लिए हथियार।
.........
ईसा की सलीब में
ठुकी हुई
कीलों से निर्मम
हो गए है शब्द।
सबका अपना-अपना क,ख,ग,घ
सबसे पहले तो इस बात के लिए बधाई कि आप भी ब्लागिंग की दुनिया में गोते लगा रहे हैं। कहानियों में तो आपने पहले ही अपनी जगह बना ली थी, इस कविता से ये अहसास भी हुआ कि आप कविता की विधा में भी अपनी बातों को काफी सलीके से रखते हैं। बेहद मार्मिक कविता के लिए आपको ढेर सारा साधुवाद।
बहुत अच्छी कविता ...
शुक्रिया...
bahut hi bhaavmaye kavita hai
badhiya
sir ji....kaise hai.n??
bahut badhiya...
sir ji ...kaise hai.n??????
kya k,kh, g ko yhi ho jana tha?g se goli nhi geet hote kitna acha hota na!
Bahut Shukriya. Ek Behtarin Kavita Ke Liye.
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