दुश्मन मुझे मिटाना चाहते हैं
दोस्त मुझे उन दुश्मनों से बचाना चाहते हैं
दुश्मन रात-दिन ताक में हैं
मेरी हर बात पर, मेरी हर चाल पर उनकी निगाह है
मेरी छोटी-छोटी कमजोरियों को भी
दुश्मन ध्यान से देखते, नोट करते हैं
न जाने कब, कौन सी कमजोरी उनके काम आ जाए
मेरा काम तमाम करने में
दोस्त यह देख विचलित होते हैं
दुश्मन की बारीक नज़र और उनके खतरनाक इरादे
मेरे दोस्तों की नज़र से छुपे नही रहते
वे मुझे उन खतरों से बचाना चाहते हैं
दुश्मन हैं अनगिन
चप्पे-चप्पे पर तैनात हैं दुश्मनों के आदमी
घर में, दफ्तर में, आस-पड़ोस में
मैं घिरा हुआ हूँ दुश्मनों के आदमियों से, दुश्मनों से
दोस्त संख्या में बहुत कम हैं
उन्हें मेरी चिंता है
वे इस लडाई को 'जड़' से ख़त्म कर देना चाहते हैं
वे मुझे समझाते हैं, वे मुझे डराते हैं
वे मुझे वैसा ही बना देना चाहते हैं
जैसा दुश्मन मुझे देखना चाहते हैं
दुशमन कोई रियायत देने को तैयार नही
वे मुझे ज़मीन के हजारों फुट नीचे दफना देना चाहते हैं
ताकि मेरे प्रेत भी वापस न आ सकें उन्हें परेशान करने को
दोस्त मुझे बहुत चाहते हैं
वे मुझे मार कर
मेरी लाश को अपने साथ रखना चाहते हैं
एकदम सुरक्षित
हमेशा-हमेशा के लिए
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9 comments:
समापन मजेदार है। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
अरे ये क्या हुआ ...अंत में तो दोस्त दुश्मन दोस्त साबित हुआ और दोस्त दुश्मन ..भाई आपके दोस्तों और दुश्मनों ने हमें फंसा दिया है..ठीक ठीक बताइये दोस्त दोस्त है दुश्मन दुश्मन..दुश्मन दोस्त है या दोस्त दुश्मन है...बाप रे ..क्या पहेली...है..?
हा..हा...हा.., बहुत ही बढिया लिखा अपने..दिलचस्प लगा और गहरा भी....
shukriya suman ji aur ajay bhaayee. apne utsah badhaya.
भाई प्रणन, ऐसी कविता कब से करने लगे?
बढ़िया. जारी रखिए, कभी सचमुच की कविता भी कर पाएंगे। उम्मीद से दुनिया कायम है। :-)
anuradha, chutki ke liye dhanyavaad. vaise seriously, kavita karne ke kisee shauk kee upaj nahi hain ye panktiyaan. aisa koi shauk mujhe hai bhee nahi. bus man me kuchh tha jo baahar aana chahta tha aur vah is roop me aa gaya. aaspaas ke logo ki shuruaati pratikriya (khaskar kuchh sawaal) aisee thee jiski vajah se laga ki ise public domain me daal dena chaahiye. so yah ap logon ke saamne aa gayee. ab is par ap sabki jo bhee pratikriyaa aaye vo sir ankhon par.
kavita aur sangit manviya srijantmakta ka sabse achha namuan hai. ise jianda rakhnka jaroori hai.
anil sinha
किसी सीधी जलेबी-सी कविता...
शानदार कविता। जोर का झटका जोर से लगा। आंखें खोल देने वाला अंदाज।
प्रणव जी, कविता के माध्यम से आपको अपने विचार प्रकट करते पहली बार देखा है। अच्छा लगा। बहुत ही अच्छा लगा। हालांकि दिन, महीने और साल के हिसाब से देखें तो परिचय बहुत पुराना नहीं है और इस लिहाज से 'पहली बार' का प्रयोग पहली नजर में बहुत उचित नहीं जान पड़ता है, लेकिन मुझे लगता है कि परिचय को किसी समय सीमा से बांधकर नहीं देखा जा सकता, इसलिए पहली बार का प्रयोग जान-बुझकर किया है। अंत में इतना ही कहना चाहूंगा-
ये तहजीब भी अजीब सी है
रकीबों की शक्ल हबीब सी है
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