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Tuesday, January 25, 2011

दिसम्बर की बारिश

(हमारे एक Anonymous पाठक ने यह कविता एक पोस्ट पर कमेंट के तौर पर भेजी है। भूमिका में लिखा है- "मेरी कविता रिजेक्ट माल में प्रकाशित करने का कष्ट करें, कविता पूरी मौलिक एवं रिजेक्टेड है ..")

फिर वही बारीश
ठन्ड का अह्सास
कपकपाते हाथ,
देखता हुआ,
खेत की मेड पर
खडा रहा
धान के ढेर को
अध कटी फ़सल को
शायद इस साल भी
खाली हाथ ही रह जायेगा
मेहनत का फ़ल
साल भर
इन्तजार के बाद
खेत मे ही रह जायेगा
किस्मत
भाग्य
नसीब
सब यु ही रुठ जायेगा,
बारीश
..बरसात मे
जब बरसना था
नही बरसा
अब बरसा
तो मन
क्यो तरसा
...
फिर से इन्तजार
फिर वही उम्मीद
आने वाले साल की
जब फ़सल
बढिया होगी
उम्मीद
के सहारे
जीते लोग
इन्तजार मे
अगले बरस का

2 comments:

Dr. Manish Kumar Mishra said...

आपके आलेख आमंत्रित हैं.
आपके आलेख आमंत्रित हैं
'' हिंदी ब्लॉग्गिंग '' पर january २०१२ में आयोजित होनेवाली राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए आप के आलेख सादर आमंत्रित हैं.इस संगोष्ठी में देश-विदेश के कई विद्वान सहभागी हो रहे हैं.
आये हुवे सभी आलेखों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करने क़ी योजना है. आपसे अनुरोध है क़ी आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें.
इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें --------------
डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
के.एम्. अग्रवाल कॉलेज
पडघा रोड,गांधारी विलेज
कल्याण-पश्चिम ,४२१३०१
जिला-ठाणे
महाराष्ट्र ,इण्डिया
mailto:manishmuntazir@gmail.com
wwww.onlinehindijournal.blogspot.कॉम
०९३२४७९०७२६

Dipti said...

कविता अच्छी लगी। लेकिन, उस कविता के लिए लिखी हुई ये पंक्ति कि वो पूरी तरह मौलिक और रिजेक्टेट है। सटीक और मज़ेदार लगा।

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