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Thursday, June 19, 2008

हत्या पत्रकार की या खबर की

-दिलीप मंडल

युद्ध की रिपोर्टिंग एक खतरनाक काम है। रॉयटर्स के साउंड रिकॉर्डिस्ट की मौत से ये बात साबित होती है। लेकिन इस मौत की जांच और उसके नतीजे से ये भी साबित होता है कि ऐसे मामलों में हत्या का अपराध और दंड मरने वाले और मारने वाले की राष्ट्रीयता समेत कई और बातों से तय होता है।

अमेरिकी रक्षा विभाग के इंस्पेक्टर जनरल ने रिपोर्ट दी है कि जिन अमेरिकी सैनिकों ने तीन साल पहले इराक में कवरेज कर रहे रॉयटर्स के पत्रकार को गोली मार दी थी, उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था। रॉयटर्स ने इस जांच पर निराशा जताई है, लेकिन इस बात का स्वागत किया है कि इंस्पेक्टर जनरल ने इस बात की सिफारिश की है कि इराक में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अमेरिकी फौज को मीडिया के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

खालिद 2005 में कवरेज के सिलसिले में रॉयटर्स के सदस्य के तौर पर एक कार में जा रहे थे। कैमरापर्सन कार के अंदर से शूट कर रहा था। जब अमेरिकी सैनिकों ने सामने से फायरिंग की तो रायटर्स की टीम ने अपनी कार धीरे- धीरे पीछे करने का फैसला किया। इसे अमेरिकी सैनिकों ने खतरनाक माना और कार पर फायरिंग कर दी, जिसमें खालिद समेत दो लोग मारे गए।

जाहिर है इराक में रिपोर्टिंग का एक ही तरीका है, अमेरिकी सैनिकों के साथ चलने का और अमेरिका के पक्ष में लिखने और खबर दिखाने का। इससे आप इस बात का भी अंदाजा लगा सकते हैं कि इराक का कितना एकपक्षीय कवरेज हमने और पूरी दुनिया ने देखा है। इराक के लोगों की पीड़ा दुनिया तक न पहुंचे, इसका अमेरिका ने पुख्ता इंतजाम कर रखा है।

देखिए इस खबर का रॉयटर्स में कवरेज र इस मामले में अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान को बेनकाब करती एक काउंटरपंच में छपी एक रिपोर्ट

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