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Sunday, June 1, 2008

ये कैसा दृष्टिकोण है?

जब से कनकलता का मामला ब्लोग जगत मे चर्चा मे आया है सबसे ज्यादा बेचैन हैं एक ब्लौगर दृष्टिकोण. उनका कहना है कि मकान मालिक का पक्ष कोई सामने रख ही नही रहा. दूसरे पक्ष को समझने की व्यग्रता मे दृष्टिकोण पहले पक्ष की ऐसी घोर अवज्ञा कर रहे हैं कि दिए जा चुके तथ्य भी नही देख रहे. बार-बार एक ही सवाल कि एग्रीमेंट का जिक्र कोई क्यो नही कर रहा. जब कि कनकलता के दिए ब्यौरे मे साफ-साफ कहा जा चुका है कि मकान मालिक ने एग्रीमेंट करने से मना कर दिया था.

जो दृष्टिकोण इस चिंता मे घुले जा रहे कि दूसरे पक्ष को सुने बिना राय क्यो बनाई जा रही वही दृष्टिकोण इस पूरे मामले के बारे मे कितनी पक्की राय बना चुके हैं - वह भी बिना कुछ जाने, उल्लिखित तथ्य तक देखे बिना - यह आप भी देखिये उनकी प्रतिक्रियाओं मे. उसके नीचे है दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया पर एक टिप्पणी



ये कहानी एकदम झूठी और एकपक्षीय लिखी हुई लगती है। क्या आप मेरे कुछ प्रश्न का जबाब देंगे?
कनकलता और साथी उस मकान में कब से रह रहे थे?
मकान किरायेदार के बीच का एग्रीमेंट कब खत्म हो चुका था?
विनीत की पोस्ट में इसे मैंने पढा था कि कनकलता का परिवार इस मकान में सवा साल से रह रहे थे। यानी ये एग्रीमेंट दो तीन महीने पहले खत्म हो गया होगा।
एग्रीमेंट के दौरान मकान में कनकलता परिवार को मकान मालिक से कभी कोई क्यों नहीं शिकायत हुई? इस शिकायत के अनुसार तो एसा लगता है कि मकान मालिक एवं किरायेदार के बीच खाने पीने क संबन्ध भी रहे होंगे? ये शिकायत तभी क्यों पैदा हुई कि जब एग्रीमेंट खत्म हो गया, मकान मालिक ने मकान खाली करने को कहा और किरायेदार ने मकान खाली नहीं किया!



ये मकान - मालिक और किरायेदार के बीच का झगडा है सवर्ण और दलित के बीच का नहीं। यह सिर्फ एक संयोग है कि इसमें एक पक्ष दलित है। इसे पा तूल देकर दलित और सवर्ण के बीच का मामले का रंग दे रहे है जो कि ग़ैरमुनासिव है।
मैं ही उत्तर भारतीय हूं और हम उत्तरभारतीय इतने भोले नहीं होते कि सामने वाला हमें गालियां देता रहे और हम आप आप करते रहें। दिल्ली में ये सब छूत छात नहीं चलती, कतई नही चलती।
विनीत कनकलता के परिचित होने के कारण इस विषय पर हो हल्ला करते रहे हैं। पर जब आप इसे मोहल्ले पर छाप रहे हैं तो विनीत से एकबार मकानमालिक का फोन नम्बर लेकर उससे भी बात करके उसका पक्ष भी जान लेना चाहिये था।




मोहल्लाधीश, शौक से मुकदमा चलाईये लेकिन मकानदार का पक्ष भी तो रखिये?

ये मकान मालिक और किरायेदार के बीच का झगड़ा है और संयोग से इसमें एक पक्ष दलित है। दिल्ली में मकानमालिक सिर्फ ग्यारह महीने के लिये मकान किराये पर देते हैं, ग्यारह महीनों के बाद मकानदार ने मकान खाली करने को कहा और इसी बात पर झगड़ा बढ़ा। इसे आप सवर्ण दलित का रंग दे रहे हैं।

कोई है?
इतने कमेन्टेटरों में एक भी एसा है जिसने मकानमालिक से बात की हो?


Pratikriya par tippanee

दृष्टिकोण साहब, आप ही मकान मालिक से बात कर के उसका पक्ष क्यों नही रख देते? जरा हम भी तो देखें क्या है उसके पास कहने को?
अगर यह मूलतः मकान मालिक और किरायेदार का झगडा है जिसमे एक पक्ष 'संयोग से दलित है' तो भी क्या उस झगडे मे किरायेदार को दलित के रूप मे संबोधित करना उसे जलील करना जरूरी है?
और जैसा कि आप दावा कर रहे हैं कि 11 महीने का एग्रीमेंट ख़त्म होने के बाद मकान खाली करने को कहने पर यह विवाद हुआ तो सबसे पहले कृपया यह बताएं कि आपके इस दावे का आधार क्या है? दूसरी बात यह कि अगर आपके दावे के मुताबिक सचमुच मकान मालिक ने 11 महीने का एग्रीमेंट किया था तो वह एग्रीमेंट की कॉपी क्यों नही दिखा देता?
अगर आपको नही पता हो तो कृपया मकान मालिक से पूछ कर इन सवालों के जवाब ब्लोग पर डाल दें ताकि आईंदा कोई भी किरायेदार किसी मकान मालिक को बदनाम न कर सके.
किरायेदारों का तो कोई नाम होता नही, न ही उनकी कोई इज्जत होती है. इसलिए उनकी क्यों चिंता की जाये?
क्यो यह पूछा जाये कि कथित एग्रीमेंट ख़त्म होने के बाद भी दो युवा लड़कियों और उसके भाई से मकान खाली कराने का क्या यही तरीका है?
क्यों यह सोचा जाये कि अगर वह लड़की हमारे परिवार की होती तो भी क्या हम उससे ऐसे बर्ताव को सही करार देते?
क्यो इस बात पर माथा पच्ची की जाये कि कोई लड़की अपने बारे मे और अपनी बहन तथा माँ के बारे मे वैसे अल्फाज बेवजह लिख सकती है जैसे अल्फाज उस बुजुर्ग मकान मालिक और उनके बेटों ने कथित रूप से किरायेदार बहनो तथा उसके परिवार के लिए निकाले थे?

दृष्टिकोण साहब, अगर दिल, दिमाग खुला रख कर देखें तो मामले की तह तक जाना मुश्किल नही. लेकिन हमे तो दिल और दिमाग के दरवाजे खोलने ही नही. क्यो खोलें? किसके लिए? इन दलितों के लिए? ये तो ऐसे ही सवर्णों को फंसाने के चक्कर मे रहते हैं. ऐसी हालत मे 'हमे' कौन समझा सकता है? आप ही बताइये.

3 comments:

Unknown said...

दृष्टिकोण का यह पूर्वाग्रहपूर्ण दृष्टिकोण है.

आर. अनुराधा said...

दृष्टिकोण आखिर हैं कौन ऐसे सवाल उठाने वाले जिनका जबाव वादी पक्ष साफ-साफ दे चुका है। और अगर उन्हें लगता है कि उन सवालों के जवाब कुछ अलग भी हो सकते हैं, या हैं, तो वो सीधे-सीधे जवाब ही दें। सबसे जवाबतलबी न करें। अगर आपके पास कुछ तथ्य हों तभी कहानी को कोई ट्विस्ट देने की कोशिश करें, वरना शांति बनाए रखें।

masha said...

drishtikod ka drishtikod jo bhi ho, pranav tumne uska karaara jawab dekar thik kia. darasal ye wo log hai jo kisi bhi baat ko islie kaat dete hain kyunki unka mahatwa bana rahe. grover ki age ki kadi hai aise log. khair, kanak lata un jaise logo se ladna janti hai. lad bhi rahi hai. hum kanak ke saath hai.

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