रमिला श्रेष्ठ की कहानी से आप परिचित हैं. (देखें पिछली पोस्ट : प्रचंड की राह रोके खडी रमिला). आज के अखबार आपको बता ही चुके हैं कि नेपाल मे राजशाही विधिपूर्वक समाप्त कर दी गयी. अब प्रचंड का नाम नये प्रधान मंत्री के रूप मे तय माना जा रहा है.
लेकिन उससे पहले कुछ और बातें हुयी हैं जिनका उल्लेख मीडिया ने प्रमुखता से करना जरूरी नही समझा. इन घटनाओं का ताल्लुक रमिला से है.
रमिला के पति रामहरी की लाश चितवन कैम्प से करीब २५ किलो मीटर दूर एक नदी मे तैरती पायी गयी. लाश रमिला को सौंपी गयी. इसके बाद रामहरी की विधिपूर्वक अंत्येष्टि की गयी.
माओवादी पार्टी के प्रमुख प्रचंड ने लिखित रूप मे रमिला से माफ़ी मांगी. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की तीसरी डिविजन का कमांडर विविध (जिस पर रामहरी के अपहरण और हत्या का आरोप है) को पार्टी से निकाला जा चुका है. माओवादी पार्टी ने इस मामले की पुलिस जांच मे पूरा सहयोग करने का वादा किया है. और इस सबके अतिरिक्त माओवादी पार्टी ने रमिला के परिवार को २० लाख रुपये का मुआवजा देना भी मंजूर किया है.
यह पहला मामला है जिसमे नेपाल की माओवादी पार्टी ने सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगी. अब इसे रमिला की जीत मन जाये या विविध की हार या माओवादी पार्टी का भूल सुधार या प्रचंड का पैंतरा या कुछ और यह आप ही बताएं तो बेहतर.
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4 comments:
यह रमिला की जीत है विविध नामक प्रवृत्ति की हार है. माओवादी पार्टी की भूल सुधार है, इसकी गुंजाइश कम ही है क्योंकि सत्ता और सत्ताधारियों के चरित्र कॉमन होते हैं और रिपीट होते रहते हैं तमाम तरह की माफियों के बावजूद, यह प्रचड का पैंतरा है क्योंकि रमिला की यह जीत है। रमिला की जीत ने उन्हें यह पैंतरा अपनाने को विवश किया है और माओवादियों को कथित भूल सुधार केा विवश भी।
रमिलाएं जीतेंगी जरूर। आगे भी जीतेंगी, यह सनातन विश्वास है।
aapka vishvaas akhand rahe, aisee kaamana meri bhee hai.
koi jeet yaa haar nahi hai janab, ab prachand bhee neta ho gaye.
यह किसी की हार-जीत नहीं है. यह माओवादियों का मानवतावादी चेहरा है. पिछले दिनों साथी चन्द्रभूषण ने कामरेड वेन जियाबाओ को भूकंपपीड़ितों के बीच जिस शिद्दत से काम करने की तफसील दी थी वह किसी भी मुल्क के सरबराह के लिए आदर्श होना चाहिए. इसके बरक्स भारत में भयंकर से भयंकरतम आपदा के हवाई सर्वेक्षण का चलन है. चमचों को छोड़ अपनी जनता पर न तो हमारे नेताओं को भरोसा रह गया है न ही जनता को अपने नेताओं पर!
जो लोग अपने वैचारिक दुराग्रहों के चलते वामदर्शन को अमानवीय बताते हैं उनके लिए यह आँख खोल देने वाला उदाहरण है. अगर प्रचंड अन्याय के पक्षधर होते तो अपने इतने वरिष्ठ और प्रमुख साथी को क्रूर होने के बावजूद बरतरफ नहीं करते. हमारे यहाँ तो सैनिकों के कफ़न का घोटाला तक कर देने वालों के कृत्य पर लीपापोती कर दी जाती है.
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