हिंदी ब्लॉग्स की संख्या कम से कम 10,000 हो / हिंदी ब्ल़ॉग के पाठकों की संख्या लाखों में हो / विषय और मुद्दा आधारित ब्लॉगकारिता पैर जमाए / ब्लॉगर्स के बीच खूब असहमति हो और खूब झगड़ा हो / ब्ल़ॉग के लोकतंत्र में माफिया राज की आशंका का अंत हो / ब्लॉगर्स मीट का सिलसिला बंद हो / नेट सर्फिंग सस्ती हो और 10,000 रु में मिले लैपटॉप और एलसीडी मॉनिटर की कीमत हो 3000 रुकुछ ब्लॉग में चल रहे विवादों के बीच आपकी नजर इस बात पर जरूर गई होगी कि हिंदी ब्लॉग की संख्या तेजी से बढ़ रही है और नए पाठक आ रहे हैं। विषय आधारित ब्लॉगिंग के पांव धीरे-धीरे ही सही, पर जम रहे हैं। ये सिलसिला आने वाले दिनों में और तेज होगा। ब्लॉग के माध्यम से जो लोग गिरोह बनाना और चलाना चाहते हैं वो ब्लॉग नहीं होता तो कोई और रास्ता निकाल लेते। इसके लिए ब्लॉग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
अगर आप विकसित समाजों और भाषाओं में चल रही ब्लॉगिंग में हिंदी भाषाई ब्लॉगिंग का 15/20 साल के बाद का भविष्य देखना चाहें तो तस्वीर कुछ साफ होगी। पश्चिम के जमे हुए ब्लॉगर पॉलिमिक्स के कारण नहीं जाने जाते, न ही वो पढ़े जाने के लिए सनसनीखेज होने की मजबूरी से बंधे हैं। वो एक्साइटिंग हैं, उपयोगी हैं, हस्तक्षेप करते हैं, किसी समूह के हितों की बात करते हैं और इसलिए उनके लाखों पाठक हैं। वो लोगों की राय बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। भारत में अजय शाह जैसे लोग अपने ब्लॉग पर सिर्फ ये बताते हैं कि आज उन्हें पढ़ने लायक क्या दिखा। वो ऐसी सामग्री का बिना टिप्पणी किए लिंक देते हैं और उनके ब्लॉग के ढाई हजार सब्सक्राइबर हैं।
पाठकों के लिए एग्रिगेटर पर निर्भर हिंदी ब्लॉगकारिता जब उस दिशा में बढ़ेगी तो आज की समस्याएं गायब कम हो जाएंगी। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक नींव के पत्थर बने ब्लॉगर और एग्रीगेटर के अच्छे प्रयासों के साथ कुछ कड़वाहट को भी पचाने के लिए हर किसी को तैयार रहना चाहिए। जिस तरह भारत में टीवी न्यूज चैनल की मजबूरी है कि वो सनसनीखेज बने रहें ताकि चैनल सर्फिंग करता हुआ दर्शक उसके साथ चिपका रहे, लगता है वैसी ही कुछ मजबूरी के हिंदी ब्लॉग के साथ हो गई है। नए ब्लॉगर्स के लिए ये रोल मॉडल नहीं बने तो बेहतर।
और अंत में - यशवंत-अविनाश प्रकरण में कुछ कह पाने के लिए मैं समर्थ नहीं हूं। दोनों अपना अपना पक्ष मजबूती से रख पाने में सक्षम हैं।
4 comments:
aapki baat men dam hai.
bilkul sehmat hun aap kae leakh sae
आपकी बात ठीक है। लेकिन मेरी समझ में समष्टिगत रूप से ब्लॉगिंग की कोई दिशा नहीं हो सकती है... यह तो "अपनी ढपली अपना राग" वाला मामला है।
ब्लॉग को जिसे जैसा लेना हो ले, मैं किसी चीज को स्वान्तःसुखाय नहीं मानता. तुलसीदास जी ने भले ही कहा हो कि 'स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा', लेकिन यह कहना उस वक्त उनकी मजबूरी और राजनीति थी.
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