एक रोमांचक-एक्शनपैक्ड साल का इंतजार है। हिंदी ब्लॉग नाम का शिशु अगले साल तक घुटनों के बल चलने लगेगा। अगले साल जब हम बीते साल में ब्लॉगकारिता का लेखा जोखा लेने बैठें, तो तस्वीर कुछ ऐसी हो। आप इसमें अपनी ओर से जोड़ने-घटाने के लिए स्वतंत्र हैं।
हिन्दी ब्लॉग्स की संख्या कम से कम 10,000 हो
अभी ये लक्ष्य मुश्किल दिख सकता है। लेकिन टेक्नॉलॉजी जब आसान होती है तो उसे अपनाने वाले दिन दोगुना रात चौगुना बढ़ते हैं। मोबाइल फोन को देखिए। एफएम को देखिए। हिंदी ब्लॉगिंग फोंट की तकनीकी दिक्कतों से आजाद हो चुकी है। लेकिन इसकी खबर अभी दुनिया को नहीं हुई है। उसके बाद ब्लॉगिंग के क्षेत्र में एक बाढ़ आने वाली है।
हिंदी ब्ल़ॉग के पाठकों की संख्या लाखों में हो
जब तक ब्लॉग के लेखक ही ब्लॉग के पाठक बने रहेंगे, तब तक ये माध्यम विकसित नहीं हो पाएगा। इसलिए जरूरत इस बात की है कि ब्लॉग उपयोगी हों, सनसनीखेज हों, रोचक हों, थॉट प्रोवोकिंग हों। इसका सिलसिला शुरू हो गया है। लेकिन इंग्लिश और दूसरी कई भाषाओं के स्तर तक पहुंचने के लए हमें काफी लंबा सफर तय करना है। समय कम है, इसलिए तेज चलना होगा।
विषय और मुद्दा आधारित ब्लॉगकारिता पैर जमाए
ब्लॉग तक पहुंचने के लिए एग्रीगेटर का रास्ता शुरुआती कदम के तौर पर जरूरी है। लेकिन विकास के दूसरे चरण में हर ब्लॉग को अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता बनानी होगी। यानी ऐसे पाठक बनाने होंगे, जो खास तरह के माल के लिए खास ब्लॉग तक पहुंचे। शास्त्री जे सी फिलिप इस बारे में लगातार काम की बातें बता रहे हैं। उन्हें गौर से पढ़ने की जरूरत है।
ब्लॉगर्स के बीच खूब असहमति हो और खूब झगड़ा हो
सहमति आम तौर पर एक अश्लील शब्द है। इसका ब्लॉग में जितना निषेध हो सके उतना बेहतर। चापलूसी हिंदी साहित्य के खून में समाई हुई है। ब्लॉग को इससे बचना ही होगा। वरना 500 प्रिंट ऑर्डर जैसे दुश्चक्र में हम फंस जाएंगे।
टिप्पणी के नाम पर चारण राग बंद हो
तुम मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करते हो, बदले में मैं तुम्हारे ब्लॉग पर टिप्पणी करता हूं - इस टाइप का भांडपना और चारणपंथी बंद होनी चाहिए। महीने में कुछ सौ टिप्पणियों से किसी ब्लॉग का कोई भला नहीं होना है, ये बात कुछ मूढ़मगज लोगों को समझ में नहीं आती। आप मतलब का लिखिए या मतलब का माल परोसिए। बाकी ईश्वर, यानी पाठकों पर छोड़ दीजिए। ब्लॉग टिप्पणियों में साधुवाद युग का अंत हो।
ब्ल़ॉग के लोकतंत्र में माफिया राज की आशंका का अंत हो
लोकतांत्रिक होना ब्लॉग का स्वभाव है और उसकी ताकत भी। कुछ ब्लॉगर्स के गिरोह इसे अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश करेंगे तो ये अपनी ऊर्जा खो देगा। वैसे तो ये मुमकिन भी नहीं है। कल को एक स्कूल का बच्चा भी अपने ब्लॉग पर सबसे अच्छा माल बेचकर पुराने बरगदों को उखाड़ सकता है। ब्लॉग में गैंग न बनें और गैंगवार न हो, ये स्वस्थ ब्लॉगकारिता के लिए जरूरी है।
ब्लॉगर्स मीट का सिलसिला बंद हो
ये निहायत लिजलिजी बात है। शहरी जीवन में अकेलेपन और अपने निरर्थक होने के एहसास को तोड़ने के दूसरे तरीके निकाले जाएं। ब्लॉग एक वर्चुअल मीडियम है। इसमें रियल के घालमेल से कैसे घपले हो रहे हैं, वो हम देख रहे हैं। समान रुचि वाले ब्लॉगर्स नेट से बाहर रियल दुनिया में एक दूसरे के संपर्क में रहें तो किसी को एतराज क्यों होना चाहिए। लेकिन ब्लॉगर्स होना अपने आप में सहमति या समानता का कोई बिंदु नहीं है। ब्लॉगर हैं, इसलिए मिलन करेंगे, ये चलने वाला भी नहीं है। आम तौर पर माइक्रोमाइनॉरिटी असुरक्षा बोध से ऐसे मिलन करती है। ब्लॉगर्स को इसकी जरूरत क्यों होनी चाहिए?
नेट सर्फिंग सस्ती हो और 10,000 रु में मिले लैपटॉप और एलसीडी मॉनिटर की कीमत हो 3000 रु
ये आने वाले साल में हो सकता है। साथ ही मोबाइल के जरिए सर्फिंग का रेट भी गिर सकता है। ऐसा होना देश में इंटरनेट के विकास के लिए जरूरी है। डेस्कटॉप और लैपटॉप के रेट कम होने चाहिए। रुपए की मजबूती का नुकसान हम रोजगार में कमी के रूप में उठा रहे हैं लेकिन रुपए की मजबूती से इंपोर्टेड माल जितना सस्ता होना चाहिए, उतना हुआ नहीं है। अगले साल तक हालात बदलने चाहिए।
नया साल मंगलमय हो!
देश को जल्लादों का उल्लासमंच बनाने में जुटे सभी लोगों का नाश हो!
हैपी ब्लॉगिंग!
-दिलीप मंडल
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7 comments:
नए साल में एक लेख एक समय में केवल एक ब्लॉग पर हो...
सपना अच्छा है।
दीप्ति।
किसी की शान में इजाफा करने के लिए टिप्पणी करने, टिप्पणी के बदले टिप्पणी करने की उदारता, एक खास तरह की विचारधारा को ब्लाग पर जगह देने और ब्लागर्स मीट जैसी चीजें वाकई एक दिन हिंदी ब्लागिंग को नष्ट कर देंगी। आपने सही वक्त पर सही बात उठाई है। और यकीन मानिए मैं ये टिप्पणी चारण होने के नाते नहीं कर रहा हूं, ये मेरे फितरत में सूट नहीं करता। ये टिप्पणी इसलिए कर रहा हूं कि मैंने इधर बीच महसूस किया है कि आपने जो बाते कहीं हैं, हकीकत में आप उन चीजों का पालन करते हैं। किसी भी मुद्दे पर सहमति असहमति एक अलग मुद्दा है लेकिन लोग वर्चुअल प्लेटफार्म को रियल बनाने के चक्कर में इसकी वर्जिनिटी का नाश करने पर तुले हैं। इस लेखक के लिए आपको दिल से साधुवाद। हिंदी ब्लाग को जिंदा रखने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है इसे निहायत ही डेमोक्रेटिक प्लेटफार्म बनाना....आपकी बातें दिल को छू गईं....शायद अभी तक लोगों ने इस डर में टिप्पणी नहीं की कि उन्हें चारण न समझ लिया जाए...।
जय हो महाराज...ज्यादातर से सहमत, कुछ से असहमत। कुल मिलाकर नए साल की नेक ख्वाहिशात...हो मनोरथ पूरे..मज़ा आया
हैप्पी ब्लागिंग
ब्लाग तो आत्मतुष्टि का माध्यम बनता जा रहा है। स्वतंत्रता है, चाहे जितना, जिसे मन हो गरिया लो। यही ब्लाग की प्रवृत्ति बन गई है। आपने एक लेख बहुत पहले लिखा था कि सेठों के पैसे से निकलने वाले अखबार-चैनल से कोई क्रांति नहीं आएगी। ब्लाग में स्वतंत्रता मिली है।
इसका सदुपयोग होना चाहिए। साथ ही यह भी देखने को मिलता है कि कमेंट वही करते हैं, जो आपको जानते हैं। यह भी हो रहा है कि ब्लागिंग से जुड़े बड़े नाम वालों को ही कमेंट मिलते हैं चाहे वो कुछ भी लिख दें। व्यक्तिवाद हावी हो रहा है। चमचागीरी में भी लोग कमेंट करते हैं। विचारवाद के हावी होने की जरूरत है।
यह कहीं से बुरा नहीं कि जिस विचारधारा के आप हैं, वहीं कमेंट करें। कुछ लोगों के कुकुरझौंझौं से कोई क्रांति आने वाली है, न तहलका मचने जा रहा है।
चमचागीरी के चलते भी अगर कुछ लोग साथ आते हैं तो भी बुरा क्या है? आप लोगों की अगर कोई युवक चमचागीरी करता है तो उसे अपने पक्ष में ढाल लीजिए। यही तो विचार की जीत होगी। यही गांधी ने किया,मार्क्स ने किया और सभी बड़े विचारक और नेता करते रहे हैं।
एक बात और। विद्वानों के समर्थन से क्रांति नहीं आती। आम लोग ही क्रांति के सृजक होते हैं। मेरे साथ तो यही होता है। विद्वानों का असर कम पड़ता है, नागार्जुन और त्रिलोचन जैसे लोगों का ज्यादा। जो जिंदगी भर रोटी के लिए लड़ते रहे, सारी सुख सुविधाएं पा लेने की कूबत के बावजूद।
अगले साल का सार्थक एजेंडा तय करने का शुक्रिया दिलीपजी......लेकिन 'देश को जल्लादों का उल्लासमंच बनाने में जुटे सभी लोगों का नाश हो! हैपी ब्लॉगिंग!'--- पता नहीं क्यों, मुझे यह पंक्ति पढ़कर ज़ोरों की हंसी आ गयी.
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