तारेजमीं पर फिल्म देखी। वो भी चाणक्या में। सिनेमा हॉल हमेशा के लिए बंद होने से एक दिन पहले। फिल्म अच्छी थी। लेकिन और अच्छी हो सकती थी। इसका अंत दूसरी तरह से होना चाहिए था।

लेकिन फिल्म तो अच्छी तब बनती जब ईशान अच्छा पेंटर भी नहीं बनता या कुछ भी अच्छा नहीं कर पाता तो भी लोग उसे समझते और प्यार देते। हर बच्चा कुछ न कुछ बहुत अच्छा करे ये उम्मीद नहीं करना चाहिए। ये जरूरी तो नहीं है कि वो कुछ बढ़िया करे ही। कोई भी बच्चा एवरेज हो सकता है, एवरेज से नीचे भी हो सकता है। लेकिन इस वजह से कोई उसे प्यार न दे ये तो गलत है।
3 comments:
अरिंदम बेटे, तुम्हारा यह कहना ठीक हो सकता है कि ज़रूरी नहीं है कि हर बच्चा बढ़िया करे ही. लेकिन फ़िल्म में एक सूत्र प्रेरणा देने का भी तो होता है. दूसरी बाटयह कि इस फ़िल्म से हमें यह भी सीखना चाहिए कि पाठ्यक्रम की पढ़ाई में तेज़ होने वाले बच्चों को ही अच्छा समझाने का जो चलन है, वह पूरे तौर पर सही नहीं है. कोई बच्चा खेल-कूद में बहुत अच्छा हो सकता है, कोई अच्छा चित्रकार हो सकता है (जैसा कि इस फ़िल्म में दिखाया गया है), कोई रेडियो-टीवी के कल-पुर्जे सुधारने में उत्तम हो सकता है, इसी तरह इसमें तुम अपनी तरफ से चीजें जोड़ते जाओ.
कहने का अर्थ यह है कि बच्चे की बुद्धि जिस भी क्षेत्र में चमके, वही उसकी मुख्य लपक मानना चाहिए. उसे पढ़ाई में तेज़ बच्चों से कमतर नहीं मानना चाहिए. बच्चा औसत भी हो तो उसकी रूचि के क्षेत्र की पहचान माता-पिता को करना चाहिए.
बहरहाल, ११ वर्ष की अवस्था में तुमने फ़िल्म की नब्ज जिस तरह से पकड़ने की कोशिश की है, उसकी मैं सराहना करता हूँ. यह भी एक बच्चे की मुख्य लपक हो सकती है.
और हाँ, पहली-पहली पोस्ट पर ढेर सारी बधाइयाँ!
- तुम्हारा विजय अंकल
बहुत अच्छी सोच है आपकी. काश सभी ऐसा सोचें तो बच्चों से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान आसान हो जाए.
अरिंदम ने फ़िल्म के कथ्य को न केवल अच्छी तरह समझा बल्कि उसे आगे भी बढाया है. मैं साफ कर दूँ कि जाने-अनजाने अरिंदम ने बिल्कुल वही बात कही जो रिजेक्ट माल का ध्येय रहा है. इस ब्लौग को शुरू करते समय हमारे मन मे ठीक वही बात थी जो अरिंदम ने मासूम और निर्दोष मन से महसूस की और साफ शब्दों मे रख दी. 'रिजेक्ट माल क्या और क्यों' शीर्षक पोस्ट मे हमने यही कहा है कि जाति, धर्म, भाषा, लिंग आदि ही नही प्रतिभा भी इंसान और इंसान के बीच भेदभाव का आधार नही मानी जानी चाहिए. हर इंसान इज्जत से जीने का हक़ रखता है और उसे बिना किसी शर्त, हर हाल मे यह हक़ मिलना चाहिए. निस्संदेह बच्चों को भी बिना किसी शर्त प्यार मिलना चाहिए.
अरिंदम को इस अच्छे पोस्ट के लिए बधाई और धन्यवाद
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