एक झटका तो जरूर लगेगा, भारतीय इतिहास और वर्तमान के बारे में आपका नजरिया इससे बेशक न बदले। चौंकाने वाला एक शोध हाथ लगा है। मेरी सहमति है या नहीं ये सवाल बेमानी है। वैसे, अपने समय को पूरी तरह जानने का दावा करने वालों के लिए भी ये उपयोगी है। क्योंकि एक टुकड़े को पूरा सच मानने की गलती कई बार हम सब कर जाते हैं। जबकि सच तो हर किसी का अपना-अपना होता है और फिर हर कालखंड का सच भी अलग ही तो होता है। आखिर भारत और पाकिस्तान के टेक्स्ट बुक में इतिहास की एक ही घटनाएं बिल्कुल अलग अंदाज में हैं या नहीं। फिर किसका सच असली सच है और कौन है झूठा। शूद्र और ब्राह्मण, स्त्री और पुरुष, सभी लोग इतिहास को एक ही नजरिए से कैसे देख सकते हैं। इसलिए फैसले तक पहुंचने की हड़बड़ी से बचने की जरूरत है।
देखना न भूलिएगा, सच के एक और पहलू को, इस एहसास के साथ कि असहमति हम सबका अधिकार है। इसे एक साथ कबाड़खाना, मोहल्ला , इयत्ता और रिजेक्टमाल पर एक ही दिन रिलीज करने की योजना है।
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1 comment:
टीवीवाले हथकण्डे यहां भी?
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