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Tuesday, May 20, 2008

आने वाला है जो सांस्कृतिक प्रलय

सम्यक न्यास के बैनर तले वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने एक बार फिर एक बडे सवाल को असरदार ढंग से उठाया है. सवाल है भारतीय भाषाओं के भविष्य का. वैश्वीकरण ने दुनिया भर मे स्थानीय भाषाओं-बोलियों के क्षरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है. भारत मे खास तौर पर हिन्दी और सभी भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी की मार झेलनी पड़ रही है. यह मार अब इतनी तेज हो गयी है कि भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को लेकर भी चिंता प्रकट की जाने लगी है.

इन्हीं चिंताओं के वशीभूत राहुल देव, सुरेन्द्र गंभीर (यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिलवेनिया) और विजय मल्होत्रा ने एक विचार गोष्ठी का आयोजन १७ मई को इंडिया इन्टरनेशनल सेंटर मे किया. इस अनौपचारिक तथा सही मायनों मे राउंड टेबल बातचीत मे जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों मे सक्रिय और भारतीय भाषाओं के भविष्य को लेकर गंभीर सौ से ज्यादा लोगों ने शिरकत की. दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित मुख्य अतिथि थीं. गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे अशोक वाजपेयी. गोष्ठी मे कमर वहीद नकवी (आज तक) आशुतोष (आईबीएन 7), श्रवण गर्ग (दैनिक भास्कर) सहित अनेक वरिष्ठ पत्रकार, कमलनयन काबरा सहित अनेक अर्थशास्त्री और अशोक माहेश्वरी, मधु किश्वर, बालेन्दु दाधीच, मोना मिश्र जैसे तमाम लोगों ने शिद्दत से अपनी बात रखी.

गोष्ठी मे भारतीय भाषाओं की स्थिति और उनके भविष्य पर चिंता जाहिर करते हुए भी इस बात का खास ध्यान रखने की ज़रूरत महसूस की गयी कि यह मुहिम हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा बनाम अंग्रेजी का रूप न ले ले.

विभिन्न वक्ताओं ने यह साफ किया कि बाजार और रोजगार की भाषा के रूप मे अंग्रेजी से विरोध नही है, चिंता की बात यह है कि अस्मिता की भाषा के रूप मे हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की चिंता हमने छोड़ दी है. नतीजा यह है कि हमारी नयी पीढी अंग्रेजी मे ही सोचने-विचारने और सपने देखने लगी है.

ज्ञान आयोग जैसी संस्थाएं अपनी सिफारिशों से स्थिति की गंभीरता को बढाती हैं. गोष्ठी मे खास तौर पर ज्ञान आयोग की पहली क्लास से ही अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने सम्बन्धी सिफारिश को बेहद खतरनाक बताया गया.

सुदूर नही, निकट भविष्य मे ही संभावित सांस्कृतिक प्रलय की इस चुनौती के मुकाबले के लिए भारतीय समाज को तैयार करने के उद्देश्य से की गयी इस पहल की यह गोष्ठी महज शुरुआत थी. ऐसा ही दूसरा सम्मेलन मुम्बई मे करने का फैसला किया जा चुका है. अगले कदम के रूप मे यह पहल देश की हरेक राजधानी मे ले जाई जायेगी. चूंकि यह संकट वैश्विक है इसीलिए इससे मुकाबले की कोशिशों का स्वरूप भी स्वाभाविक रूप से वैश्विक ही होगा. यह पहल भी राष्ट्रीय स्वरूप लेने के बाद विदेशों मे ले जाई जायेगी.

कुल मिला कर, इसमे दो राय नही कि सम्यक न्यास की यह पहल स्वागत योग्य है. चूंकि यह पहला कदम है इसीलिए सारे नतीजे इसी के आधार पर नही निकाले जाने चाहिए. अगले कुछ कदम इस पहल की दशा और दिशा निर्धारित करने के लिहाज से निर्णायक हो सकते है.

बहरहाल इस सामयिक, सार्थक और चिर प्रतीक्षित पहल के लिए सम्यक न्यास और इससे जुडे सभी लोगो का अभिनन्दन!

4 comments:

masha said...

mera manana hai ki angrezi ke virodh se kuch nahi hone wala. darasal jarurat is baat ki hai ki hum hindi ke alawa shetriya bhashao ko bhi puri tavajjo dein. jab ek taraf se doosari bhasaao ko age lane ki koshish ki jayegi tabhi doosari taraf se angreji ki "bhaigiri" se mukti milegi. hindi ke jitne bhi patrakaar waha ikatthe hue aur saahityakaar bhi, kya unhe apni apni tarah se doosari bhashao ke vikas ke lie kaam nahi karna chahiye. kya akhbaaro ya tv channels par aise karyakram dikhane ya cols chhaapane ke baare mein nahi sochna chahiye jo in bhashao ya inse aage badhkar desi boliyo ko badhawa dein. kya ye kaam sirf shetriya akhbaro ya channels ka hai? aise sawalo par to ye TRP ya pathak varg ki duhai dekar chup ho jate hain. sirf goshthi karke, na angreji ki maar ke khilaf kuch kia ja sakta hai, na sthaniya bhashao ke lie kuch kia ja sakta hai.

दीपान्शु गोयल said...

हमें अपनी भाषा को लेकर स्वाभिमान की कमी है उसका ही कारण है कि हमारी भाषाएं अंग्रेजी के सामने दम तोडती नजर आती हैं। हमें इजराइल जैसे देश से सबक लेने की जरुरत है जिसने अमेरिका और ब्रिटेन की सहायता पर टिके होने के बावजूद बनने के तुरन्त बाद हिब्रू को राष्ट्रिय भाषा का दर्जा दे दिया था। रातों रात सडकों के नाम बदल दिये गये थे। भूटान तो हमारा पडोसी है वहां तो पढाई का माध्यम अंग्रेजी है इसके बाद भी वहां की सभ्यता पर इसका प्रभाव ना पडे इसका पूरा ध्यान ऱखा जाता है।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

राहुल जी को इस अभियान के लिए बधाई!

Anonymous said...

Hello,

I'm spending my time here for the children of Haiti.

I'm doing this for a non-profit haiti organization that devotes themselves to
building an oppurunity for the kids in haiti. If anyone wants to help then this is the site:

[url=http://universallearningcentre.org]Donate to Haiti[/url] or Help Haiti

They provide children in Haiti a positive outlook through education.

Yes, they're legit.

I greatly appreciate anyone's help

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