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Thursday, July 3, 2008

एक राजनीतिक संवाददाता ने ख्वाब में जो देखा

दिल्ली, 15 जुलाई 2008

- सरकार समाजवादी पार्टी, अजित सिंह और देवेगौड़ा जी समेत कुछ खुदरा दलों के समर्थन से चल रही है। सरकार पुरानी है, प्रधानमंत्री पुराने हैं, लेकिन कैबिनेट में कुछ चेहरे नए हैं।
- समाजवादी पार्टी न्यूक्लियर डील के देशहित में होने के एपीजे अब्दुल कलाम के सर्टिफिकेट को मेडल की तरह पहनकर मुसलमानों को समझाने की कोशिश में जुटी है कि सांप्रदायिकता को रोकने के लिए उसने ये सब किया है।
- समाजवादी पार्टी सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है। इसके लिए वो सरकार से पूरी कीमत वसूल रही है।
- अनिल अंबानी के रुके हुए काम सरकार पूरे कर रही है। केजी बेसिन के गैस बंटवारे पर फैसला अनिल अंबानी के हित में होगा।
- समाजवादी पार्टी और अमर सिंह के करीबी उद्योगपतियों के अच्छे दिन लौट आए हैं। सहारा को अब कोई कष्ट नहीं है।
- मायावती के खिलाफ सीबीआई की जांच की फाइल फिर से खुल गई है।
- लेफ्ट पार्टियां मनमोहन सिंह के पुतले जला रही है और महंगाई के खिलाफ देशव्यापी अभियान चला रही है, जिसका पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में असर हो रहा है।
- लालू और मुलायम अब अक्सर साथ साथ डिनर करते हैं।
- मीडिया आम राय से मनमोहन सिंह को देश का सबसे महान, प्रभावशाली, दमदार और मर्द प्रधानमंत्री बता रहा है।

4 comments:

अबरार अहमद said...

बावजूद इन सबके करार पर तकरार जारी है।

Unknown said...

लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। कांग्रेस को मंहगाई खा चुकी है। मुलायम ने आडवाणी के दिमाग का सेकुलर हिस्सा पहचान लिया है। जार्ज और अमर सिंह के प्रयासों के बाद तय पाया गया है कि समाजवादी पार्टी मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए एनडीए में रहेगी। अब वे कहते हैं कि लोहिया जी नानादेशमुख के दोस्त थे कल रात सपने में मुझे उन्होंने राम की मर्यादा आडवाणी से प्राप्त करने को कहा। शिव का मष्तिष्क और कृष्ण के कर्म पहले से हमारे स्टोर में है।

Anonymous said...

Mulayam singh ko amar kha gaya....mulayam ne ambani aur sahara ke liye apni rajnaitik vishvashniyta kho di.........

परेश टोकेकर 'कबीरा' said...

भाई मडंल जी हकीकत को काहे ख्वाब कहते हो। अब चाहे ये ख्वाब हो पर बडा भयावह है, हमारी बदनसीबी की ये सच भी हो रहा है।
23 जून को देश के शीर्षस्त नाभिकीय वैज्ञानिको ने एक वक्तव्य जारी कर सरकार से मांग की कि -"आइ ए ई ए के साथ निगरानी समझौते के मसौदे पर पहले पूरी बहस कराई जाये।" लेकिन हमारे वज़ीरेआला देश, देसी वैज्ञानिको के नहीं बुश के लिये जवाबदेह ज्यादा दिखते है। लेफ्ट को जो काम करना था कर दिया, परंतु जयचंद-मीरजाफ़रो का भी हमारा पुराना इतिहास रहा है।
लोकसभा चुनावो में अभी बहुत समय है, इधर हमारी जनता को भुलने की बडी समस्या है। जयचंदो के वोटो पे उनके करारो का कुछ असर नहीं पडने वालो, हा जयचंदो के रिश्तेदारो की जरूर लाटरी लगने वाली है, जिसका जिक्र नास्त्रेदेमस संवाददाता के ख्वाब में भी है।
ये करार देश के कितने हित में होने वाला है ये तो वक्त बतायेगा ही, पर उस वक्त हम पास हाथ मसलने से अधिक कुछ न कर पायेंगे। अब गुलाम देश की जनता इससे ज्यादा कर भी क्या सकती है।

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