Custom Search
Sunday, August 24, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Custom Search
जो कहीं नहीं छ्पा वो यहाँ छपेगा ... सूचना और रचना के लोकतंत्र में आप सबका स्वागत है। अपना रिजेक्ट माल या ऐसा माल जो आपको लगता है कि रिजेक्ट हो जाएगा, उसे rejectmaal@gmail.com पर भेजें
9 comments:
सोचा है तो कर डालिये ...हाइकू है ...या इस कविता का मूल सामने वाले पेंटिंग में छुपा है ।
इसपर एक चुटकुला. एक बार एक महिला को एक दर्पण मिला, जो झूठ बोलने वाले को निगल लेता था. महिला उस दर्पण के सामने खड़ी होकर बोली, "आज मैं सोच रही थी कि ---" और वाक्य पूरा हुए बिना ही दर्पण उसे निगल गया! :)
:-)
सबसे छोटा कमेंट !
अच्छा है, कभी-कभी यह काम भी कर ही लेना चाहिए! :)-
आलोक, अनिल, सुजाता, विजयजी, आप सबने मेरा उत्साह बढ़ाया, धन्यवाद। अब इस पॉजिटिव माहौल में तो मैं एक लंबी कविता लिखने को प्रेरित हो गई हूं। आप सब तैयार हैं झेलने को?:-)))
एक स्त्री ने कुछ सोचा...
कुफ्र, ये कि एलान भी कर दिया
दुनिया (मर्दों की) में तूफ़ान लाजिम है
mai abhi soch rha hu ki kya comment likhun..
Saurabh K.Swatantra
सोचो लोगो सोचो! (अनुराधा, आप इन में खु़उद को शामिल न मानें!)
बहुत अच्छी कविता है अनुराधा. कविता तो तुरंत खत्म हो जाती है, पर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है... मुझे लगा पाठकों की ज्टादातर टिप्पणियां पंक्तियों (सॉरी शब्दों) के साथ न्याय नहीं कर पाई हैं. इसलिए भी ये कहना जरूरी लगा.
बहरहाल, रिजेक्ट माल का जिम्मा अच्छे से संभालने के लिए अलग से शुक्रिया
Post a Comment