अरिंदम बारह साल के हैं। आज अचानक उन्हें यह अहसास हुआ कि वे तो आशुकवि हैं! फिर क्या था, धड़ाधड़ कविताएँ रचने लगे। बाहर बारिश की झड़ी थी (दिल्ली की बात है ये) और उनकी कॉपी में कविताओं की। फिर एक कविता मॉनसून पर भी लिखी गई जो कि अब आपकी नज़र है। दाद जी खोल कर दीजिएगा, (अरिंदम की) उम्र का तकाज़ा है।
आसमां रो रहा था
बादल गुर्रा रहे थे
धरती नहा रही थी
यह था मॉनसून
बच्चे भीग रहे थे
फसलें उग रही थीं
चादर आसमां को ढक रही थी
यह था मॉनसून
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6 comments:
आसमां रो रहा था
बादल गुर्रा रहे थे
धरती नहा रही थी
यह था मॉनसून
bahut pyara likha hai
अअअअरेरेरेरेरेरेरे
बड़ा हो गया अरिंदम।
शुभकामनाएं
super bal kavi hai अरिंदम, AUR KAVITAYEN HAI ARVINDAM KI? I would love to read thoes poetries...
badia koshish kahun ya kavita ise, samjh nahi aata. Bete ko protaahan mile ya na mile, wo rachnaatamak abhivyakti me aage jaega..(haan, protasaahna milega to kaarene se conditioning hogi, tay hai).
pooja prasad
वाह...वाह! क्या बात है! लेकिन अनुराधा, अरिंदम छोटा कब था? वह तो बड़ों से भी सोच-विचार में बहुत बड़ा है... शुरू से ही।
बढ़िया... बहुत बढ़िया। यह दूसरी बार है जब अरिंदम ने मुझ जैसे लोगों को चौंकाया है जो उसे बच्चा समझ रहे थे। पहली बार 'तारे ज़मीं पर' की अपनी समीक्षा से और अब अपनी इस कविता से। शाबाश अरिंदम... इस तरह चौंकाना आगे भी जारी रखना...
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