मेरी सखी सुरेखा कई साल दिल्ली में बिताकर आखिर अपने शहर हैदराबाद लौट गई। उसका दोस्ताना और बिंदास अंदाज़ सबको उसका मित्र बनने का न्यौता सा देता है जिसे नजर-अंदाज करना आसान नहीं।
तो, सुरेखा ने हाल ही अपनी महीनों पुरानी मुराद पूरी कर ही ली- एक लैपटॉप खरीद कर। दरअसल दिल्ली में तो बिना कुछ किए भी इंसान व्यस्त रहा आता है। तिस पर तफरीह के हजार बहाने, मौके, और जगहें। सो, हैदराबाद जाने पर उसके पास खूब फुर्सत रहने लगी तो उसने और मित्र-मंडली ने उसके लिए एक पुस्तक लिखने का काम मुकर्रर कर दिया। तो जनाब, जैसा कि सरकार में चलन है, पहले सरंजाम तो हो फिर काम के बारे में कुछ सोचा जाए। तो इसी सोच के तहत भविष्य में किताब लिखने के लिए आज लैपटॉप तो होना ही चाहिए था, जो कि अब उसके पास हो गया है। अब उसके इंस्टॉलेशन की दिलचस्प कहानी जब उसने मुझे भेजी तो आपके साथ क्यों न साझा करती। शायद इस मौके पर सुरेखा में आपको खुद की या अपने आस-पास के लोगों की झलक दिख जाए!
hey guys
I was hit between the eyes by technology today! to elaborate..... almost in kiddish glee i announce that i bought a DELL Inspiron! Ofcourse my great friends kiran aka kins,sunny,nilu,shayku,mandy, sam, emani,ramakanth and sripriya already know about it. but for the rest i am announcing now. am pretty thrilled with this lean mean machine!
The dearest lappy came on karthika pournami but the internet connection was slated for 2day. So the friendly neighbourhood beam cable wallah came in Ayyappa swamy black wraparound! My frends in delhi wont know this attire but i shall spare you the details.
When he brought in another wire from so many wires coming into my house(seriously these crisscrossing wires spoil the beauty of the landscape or whatever is left of it!!!) when he tried to type in my user name which has @ in it, hold your breath!!!!! when he held shift and pressed 2 he got inverted comma!!!!! my new [appy was not typin @!!! he said madam call DELL. I said whaaaaaaaaaaat? call dell? i havent even used the bludy lappy and i have to call them for troubleshooting?
Guys i was totally cheesed off finally i cald the customer carel(less) bloke and that is when technology hit me right between my eyes! My problem was solved in no time! on telephone and online! (no shady repair guy with a shady briefcase required!!) All my frends know that as far as computer savvyness is concerned I am still a neanderthal so i was mighty impressed when this guy asked me on phone what my problem was and gave me a set of instructions ( our interaction was like a kindergartener(me) and a PhD in Software & Hardware (him) and logged on to my system and asked me to relax for five minutes!
i cud see him working on my system. he went to control panel and then keyboard and then in a giffy he asked me to type @ and it worked! things were set right. shift 2 was @! when i sed it was ok aquestionnaire appeared about customer satisfaction or dissatisfaction and i filled it and he requested if he can let go now? i enjoyed this tech advance so much that i actually look forward to future trubleshooting!!!!!
For most of you this might not seem like the technological marvel of the century but ifor a dinosaur like me it was.
Thanks for reading this lambaaaaa story guys!
yours forever
tyrannosaurus
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Sunday, November 30, 2008
Thursday, November 27, 2008
शोक/आक्रोश
Friday, November 21, 2008
कौन है रिजेक्ट समूह का 'अपना' उम्मीदवार
मालंच
पहले एक सूचना जो आप तक नही पहुँची होगी। उम्मीदवारों की भीड़ के बीच दिल्ली में दो ऐसे उम्मीदवार हैं जो सबसे अलग हैं। तुगलकाबाद निर्वाचन क्षेत्र से एक नौजवान बिरजू नायक और ओखला निर्वाचन क्षेत्र से संतोष कुमार चुनाव लड़ रहे हैं। यों तो ऐसी बातों की सूची बहुत लम्बी है जिन वजहों से ये दोनों बाकी उम्मीदवारों से अलग हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि दोनों लोकराज समिति की तरफ़ से चुने गए जन उम्मीदवार हैं। जन उम्मीदवार का मतलब यह कि लोकराज समिति की तरफ़ से आयोजित जनसभाओं के बीच से उनका नाम सामने आया। यह उम्मीदवार चुनने की एकदम नयी पद्धति है जो लोकराज समिति ने शुरू की है। ये दोनों उम्मीदवार जनता की उम्मीदों पर खरे न उतरने की स्थिति में जनता द्वारा वापस बुला लिए जाने के लिए ख़ुद तो तैयार हैं ही पूरे देश के स्तर पर जनता को यह अधिकार देने की भी वकालत कर रहे हैं।
बहरहाल, उम्मीदवारों की कमी नही है। सभी उम्मीदवार हमारे दरवाजे तक पहुँच भी रहे हैं।वे सब हमारा होने का दावा करते हैं और हमारे ही लिए जीने-मरने की क़समें भी खा रहे हैं। ऐसे में हम लोगों के सामने यह समस्या खड़ी हो गयी है कि हम कैसे तय करें कि इनमे कौन हमारा सच्चा हितैषी है। इनमे से कोई है भी या नही। ख़ास तौर पर रिजेक्ट समूह के सामने उलझन कुछ ज्यादा बड़ी है, क्योंकि आजादी के बाद से हर चुनाव के बाद वह छला गया महसूस करता रहा है। इसीलिये हम यहाँ इसी सवाल पर विचार कर रहे हैं कि हम रिजेक्ट समूह के लोग कैसे तय करें कि तमाम प्रत्याशियों में हमारी बात करने वाला, हमारे मुद्दे उठाने वाला कौन है। इसके लिए जरूरी है कि हम यह देखें कि आज के हालात में हमारे मुद्दे क्या हैं, हमारी ज़रूरतें क्या हैं। डालते हैं एक नज़र उन प्रमुख मुद्दों पर :
छंटनी के प्रावधान पर रोक लगे: मंदी के मौजूदा माहौल में देश की मेहनतकश आबादी के सर पर जो सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जिसकी वजह से उसकी रातों की नींद हराम हो गयी है, वह है छंटनी का डर। तमाम कंपनियों के मालिकान घाटे का रोना रोते हुए मनचाहे ढंग से कर्मचारियों की संख्या कम करने पर तुले हैं। सरकार भी कर्मचारियों की ज़िन्दगी और उनके भविष्य से अधिक महत्व कंपनियों के प्रॉफिट को दे रही है। ऐसे में साफ़ है कि चुनाव तक तो सरकार छंटनी न करने के 'अनुरोध' का दिखावा करती रहेगी, पर उसके बाद कर्मचारियों को उनके भाग्य पर छोड़ कर सरकार उद्योगपतियों के साथ खड़ी हो जायेगी। ऐसे में रिजेक्ट समूह की ज़रूरत यह है कि छंटनी के प्रावधानों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी जाए।
ठेका नौकरी पर पाबन्दी लगे: ठेका नौकरी का चलन बहुत तेजी से बढाया जा रहा है। स्थाई नौकरी वालों को भी ठेके पर लाया जा रहा है। कारण यह है कि कंपनियों के लिए यह अच्छा है। लेकिन कर्मचारियों के बड़े हिस्से का जीवन ठेका नौकरी के कारण अनिश्चितताओं से घिर जाता है। वे कभी भी नौकरी छूटने के डर से आशंकित रहते हैं। इसीलिये रिजेक्ट समूह की जरूरत यह है कि देश में ठेका नौकरी पर पूरी तरह रोक लगाते हुए सभी कर्मचारियों को स्थाई किया जाए।
काम के घंटे कम किए जाएँ: देश की मेहनतकश आबादी और बेरोजगार आबादी की ज़रूरत यह है कि काम के घंटे कम किए जाएँ ताकि पूरे देश में श्रम करने लायक सभी लोगों को काम मिले और जिन्हें काम मिला हुआ है उन्हें सुकून का जीवन मिले। तकनीकी विकास की मौजूदा अवस्था को देखते हुए चार घंटे का कार्य दिवस पूरे देश में लागू करने की जरूरत है।
वेतन निर्धारण पारिवारिक ज़रूरत के अनुरूप हो: संगठित क्षेत्र हो या असंगठित, मजदूरों का वेतन और अन्य सुविधाएं एक पूरे परिवार की ज़रूरतों और सामाजिक विकास की मौजूदा अवस्था के अनुरूप आवश्यक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए तय किए जाएँ। आज न्यूनतम वेतन सिर्फ़ एक व्यक्ति की ज़रूरत भी ढंग से पूरी नही कर सकता। लिहाजा मजदूर की पत्नी को और उसके बच्चों को भी श्रम के बाजार में खड़ा होना पड़ता है।
एकाधिकारी दाम पर प्रतिबन्ध लगे: महंगाई की मार से परेशान लोगों के लिए जरूरी है कि एकाधिकारी दाम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे।
निजी स्कूलों पर रोक लगे: रिजेक्ट समूह के लिए जरूरी है देश में तरह-तरह के स्कूलों पर रोक लगे। आज देश में हर तरह के स्कूल मौजूद हैं। जितना पैसा दो वैसा स्कूल लो। लगता है जैसे यह स्कूल देश की भावी पीढी तैयार करने के बदले 'बड़े' और 'प्रभावशाली' लोगों के बच्चों की नेटवर्किंग का केन्द्र बन गए हैं। इन पर पूरी तरह रोक लगा कर पूरे देश में एक ही तरह के स्कूल कायम करने की ज़रूरत है, ताकि बच्चों में बचपन से भेदभाव के बीज न पड़ जाएँ।
खेती को कम खर्चीला बनाएं: छोटे और मझोले किसानों के सभी कर्ज माफ कर के उन्हें बिजली, पानी, बीज, खाद आदि मुफ्त में मुहैया कराया जाए ताकि वे अपने पारिवारिक श्रम के जरिये खेती करके अपना पालन-पोषण कर सकें।
ऐसे और भी अनेक मुद्दे हैं। लेकिन फिलहाल इतना ही। हम रिजेक्ट समूह के लोग देख सकते हैं कि जो प्रत्याशी हमारे पास पहुँच रहे हैं उनमे से कितने ऐसे हैं जो इन सवालों को उठा रहे हैं। जो उठाते हैं उनका इन मुद्दों पर क्या कहना है। जो हमारी जरूरत के मुताबिक इन मांगों का समर्थन करते हैं और इन्हे पूरा करने की बात करते हैं उनसे हम पूछ सकते हैं, बल्कि हमें पूछना चाहिए कि अगर इन मुद्दों पर उन्होंने सोचा है तो वे बताये कि ये मांगें वे कैसे पूरी करेंगे। इन मांगों को पूरा करने में कैसी बाधाएं आएंगी और वे उन बाधाओं को कैसे पार करेंगे। जो इन सवालों के जवाब से हमे संतुष्ट कर दे वही हमारा यानी रिजेक्ट समूह का असली हितैषी है। जो नहीं करता...उसके बारे में कुछ कहना जरूरी नहीं।
पहले एक सूचना जो आप तक नही पहुँची होगी। उम्मीदवारों की भीड़ के बीच दिल्ली में दो ऐसे उम्मीदवार हैं जो सबसे अलग हैं। तुगलकाबाद निर्वाचन क्षेत्र से एक नौजवान बिरजू नायक और ओखला निर्वाचन क्षेत्र से संतोष कुमार चुनाव लड़ रहे हैं। यों तो ऐसी बातों की सूची बहुत लम्बी है जिन वजहों से ये दोनों बाकी उम्मीदवारों से अलग हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि दोनों लोकराज समिति की तरफ़ से चुने गए जन उम्मीदवार हैं। जन उम्मीदवार का मतलब यह कि लोकराज समिति की तरफ़ से आयोजित जनसभाओं के बीच से उनका नाम सामने आया। यह उम्मीदवार चुनने की एकदम नयी पद्धति है जो लोकराज समिति ने शुरू की है। ये दोनों उम्मीदवार जनता की उम्मीदों पर खरे न उतरने की स्थिति में जनता द्वारा वापस बुला लिए जाने के लिए ख़ुद तो तैयार हैं ही पूरे देश के स्तर पर जनता को यह अधिकार देने की भी वकालत कर रहे हैं।
बहरहाल, उम्मीदवारों की कमी नही है। सभी उम्मीदवार हमारे दरवाजे तक पहुँच भी रहे हैं।वे सब हमारा होने का दावा करते हैं और हमारे ही लिए जीने-मरने की क़समें भी खा रहे हैं। ऐसे में हम लोगों के सामने यह समस्या खड़ी हो गयी है कि हम कैसे तय करें कि इनमे कौन हमारा सच्चा हितैषी है। इनमे से कोई है भी या नही। ख़ास तौर पर रिजेक्ट समूह के सामने उलझन कुछ ज्यादा बड़ी है, क्योंकि आजादी के बाद से हर चुनाव के बाद वह छला गया महसूस करता रहा है। इसीलिये हम यहाँ इसी सवाल पर विचार कर रहे हैं कि हम रिजेक्ट समूह के लोग कैसे तय करें कि तमाम प्रत्याशियों में हमारी बात करने वाला, हमारे मुद्दे उठाने वाला कौन है। इसके लिए जरूरी है कि हम यह देखें कि आज के हालात में हमारे मुद्दे क्या हैं, हमारी ज़रूरतें क्या हैं। डालते हैं एक नज़र उन प्रमुख मुद्दों पर :
छंटनी के प्रावधान पर रोक लगे: मंदी के मौजूदा माहौल में देश की मेहनतकश आबादी के सर पर जो सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जिसकी वजह से उसकी रातों की नींद हराम हो गयी है, वह है छंटनी का डर। तमाम कंपनियों के मालिकान घाटे का रोना रोते हुए मनचाहे ढंग से कर्मचारियों की संख्या कम करने पर तुले हैं। सरकार भी कर्मचारियों की ज़िन्दगी और उनके भविष्य से अधिक महत्व कंपनियों के प्रॉफिट को दे रही है। ऐसे में साफ़ है कि चुनाव तक तो सरकार छंटनी न करने के 'अनुरोध' का दिखावा करती रहेगी, पर उसके बाद कर्मचारियों को उनके भाग्य पर छोड़ कर सरकार उद्योगपतियों के साथ खड़ी हो जायेगी। ऐसे में रिजेक्ट समूह की ज़रूरत यह है कि छंटनी के प्रावधानों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी जाए।
ठेका नौकरी पर पाबन्दी लगे: ठेका नौकरी का चलन बहुत तेजी से बढाया जा रहा है। स्थाई नौकरी वालों को भी ठेके पर लाया जा रहा है। कारण यह है कि कंपनियों के लिए यह अच्छा है। लेकिन कर्मचारियों के बड़े हिस्से का जीवन ठेका नौकरी के कारण अनिश्चितताओं से घिर जाता है। वे कभी भी नौकरी छूटने के डर से आशंकित रहते हैं। इसीलिये रिजेक्ट समूह की जरूरत यह है कि देश में ठेका नौकरी पर पूरी तरह रोक लगाते हुए सभी कर्मचारियों को स्थाई किया जाए।
काम के घंटे कम किए जाएँ: देश की मेहनतकश आबादी और बेरोजगार आबादी की ज़रूरत यह है कि काम के घंटे कम किए जाएँ ताकि पूरे देश में श्रम करने लायक सभी लोगों को काम मिले और जिन्हें काम मिला हुआ है उन्हें सुकून का जीवन मिले। तकनीकी विकास की मौजूदा अवस्था को देखते हुए चार घंटे का कार्य दिवस पूरे देश में लागू करने की जरूरत है।
वेतन निर्धारण पारिवारिक ज़रूरत के अनुरूप हो: संगठित क्षेत्र हो या असंगठित, मजदूरों का वेतन और अन्य सुविधाएं एक पूरे परिवार की ज़रूरतों और सामाजिक विकास की मौजूदा अवस्था के अनुरूप आवश्यक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए तय किए जाएँ। आज न्यूनतम वेतन सिर्फ़ एक व्यक्ति की ज़रूरत भी ढंग से पूरी नही कर सकता। लिहाजा मजदूर की पत्नी को और उसके बच्चों को भी श्रम के बाजार में खड़ा होना पड़ता है।
एकाधिकारी दाम पर प्रतिबन्ध लगे: महंगाई की मार से परेशान लोगों के लिए जरूरी है कि एकाधिकारी दाम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे।
निजी स्कूलों पर रोक लगे: रिजेक्ट समूह के लिए जरूरी है देश में तरह-तरह के स्कूलों पर रोक लगे। आज देश में हर तरह के स्कूल मौजूद हैं। जितना पैसा दो वैसा स्कूल लो। लगता है जैसे यह स्कूल देश की भावी पीढी तैयार करने के बदले 'बड़े' और 'प्रभावशाली' लोगों के बच्चों की नेटवर्किंग का केन्द्र बन गए हैं। इन पर पूरी तरह रोक लगा कर पूरे देश में एक ही तरह के स्कूल कायम करने की ज़रूरत है, ताकि बच्चों में बचपन से भेदभाव के बीज न पड़ जाएँ।
खेती को कम खर्चीला बनाएं: छोटे और मझोले किसानों के सभी कर्ज माफ कर के उन्हें बिजली, पानी, बीज, खाद आदि मुफ्त में मुहैया कराया जाए ताकि वे अपने पारिवारिक श्रम के जरिये खेती करके अपना पालन-पोषण कर सकें।
ऐसे और भी अनेक मुद्दे हैं। लेकिन फिलहाल इतना ही। हम रिजेक्ट समूह के लोग देख सकते हैं कि जो प्रत्याशी हमारे पास पहुँच रहे हैं उनमे से कितने ऐसे हैं जो इन सवालों को उठा रहे हैं। जो उठाते हैं उनका इन मुद्दों पर क्या कहना है। जो हमारी जरूरत के मुताबिक इन मांगों का समर्थन करते हैं और इन्हे पूरा करने की बात करते हैं उनसे हम पूछ सकते हैं, बल्कि हमें पूछना चाहिए कि अगर इन मुद्दों पर उन्होंने सोचा है तो वे बताये कि ये मांगें वे कैसे पूरी करेंगे। इन मांगों को पूरा करने में कैसी बाधाएं आएंगी और वे उन बाधाओं को कैसे पार करेंगे। जो इन सवालों के जवाब से हमे संतुष्ट कर दे वही हमारा यानी रिजेक्ट समूह का असली हितैषी है। जो नहीं करता...उसके बारे में कुछ कहना जरूरी नहीं।
Thursday, November 13, 2008
आइए स्वागत करें नादिन गॉर्डिमर का
नादिन गॉर्डिमर दक्षिण अफ्रीका की श्वेत साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने साहित्य और सामाजिक क्षेत्र में काम के जरिए रंगभेद की मुखालफत की है। आश्चर्य नहीं कि उनके 14 में से ज्यादातर उपन्यास कम या ज्यादा समय के लिए गुलाम द. अफ्रीका में प्रतिबंधित रहे, कोई 10 साल तो कोई 12 साल तक।
खास खबर यह है कि नोबेल पुरस्कार पाने वाली यह साहित्यकार और राजनीतिक कार्यकर्ता दो दिन के भारत दौरे पर हैं। आज दिल्ली और कल मुंबई में वे रहेंगी। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, भारत सरकार की नोबेल विजेता व्याख्यान श्रृंखला की दूसरी कड़ी के रूप में वे भारत आई हैं।
20 नवंबर 1923 को जन्मी गॉर्डिमर को औपचारिक शिक्षा नहीं के बराबर मिली। जोहानेसबर्ग की स्थानीय लाइब्रेरी ही उनकी शिक्षण संस्था थी। इसीलिए वे कहती हैं कि अगर उनकी चमड़ी का रंग काला होता तो वे साहित्यकार नहीं बन पातीं, क्योंकि उस लाइब्रेरी में अश्वेतों के आने की मनाही थी।
गॉर्डिमर ने 1998 में ब्रिटेन के ऑरेंज ब्रॉडबैंड साहित्य पुरस्कार के लिए शार्टलिस्ट होने से भी मना कर दिया क्योंकि यह पुरस्कार सिर्फ महिलाओं के लिए है। और गॉर्डिमर का मानना है कि महिलाओं को अलग खंड में , अलग स्तर पर रखने से उनकी बेहतरी नहीं हो सकती। इसके लिए उन्हें पुरुषों के साथ बराबरी की प्रतियोगिता का मौका मिलना चाहिए। एक बाग नहीं, एक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे!
आइए अपने देश में स्वागत करें इस विलक्षण, जुझारू, अगले हफ्ते 85 की होने जा रही नोबेल विजेता साहित्यकार, एड्स कार्यकर्ता (खास बात ये है कि इस एकमात्र मोर्चे पर वे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति मबेकी की विरोधी हैं), राजनीतिक विचारक नादिन गॉर्डिमर का।
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