डॉक्टर एस डी नैय्यर
([डॉक्टर नैय्यर आर्मी के रिटायर्ड कर्नल हैं। वह अस्थमा एसोसियेशन के प्रेजिडेंट भी रह चुके हैं। दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में पिछले दिनों हुयी एक छात्रा आकृति भाटिया की मौत पर वे बहुत बेचैन हैं। उनका कहना है की एक तो सही जानकारी की कमी एक मासूम जिंदगी को लील गयी दूसरे इस मामले पर जो हंगामा मचा है उससे सही जानकारी फैलाने में कोई मदद नही मिल रही उल्टे लोग और गुमराह हो रहे हैं। पेश है डॉक्टर नैय्यर की बेचैनी से उपजी यह पोस्ट।)
दिल्ली के एक स्कूल में पिछले दिनों हुयी एक छात्रा आकृति की मौत पर काफी हंगामा हुआ है। मैं इस मामले में छपी khabaren dekhataa rahaa hoon । कहने की जरूरत नही कि १७ साल की इस बच्ची की मौत सचमुच दुखद है। पैरेंट्स की तकलीफ समझ में आती है। जो बात समझ में नही आती वह है स्कूल और प्रिंसिपल के ख़िलाफ़ मचाया जा रहा हंगामा। ख़ास तौर पर इसलिए कि कम से कम इस मामले में स्कूल - प्रिंसिपल और टीचर्स - की कोई गलती नही है।
आकृति दमे की मरीज थी। वर्षों से उसे यह बीमारी थी और मौत के कुछ ही दिन पहले अस्पताल में भर्ती भी की गयी थी। साफ़ है कि पैरेंट्स इस बीमारी से जुड़े मानसिक - भावनात्मक पहलुओं की अहमियत पूरी तरह नही समझ पाये। वरना शायद use उस हालत में स्कूल नही भेजते। दिल्ली में बच्चो के बीच कम्पीटीशन का भाव बहुत तगडा होता है। पैरेंट्स को चाहिए था कि वे टीचर्स को आकृति की स्थिति के बारे में पहले से बताते और एहतियाती kउठाते बजाय इसके बाद में स्कूल पर दोष मढें।
दमे के मरीजो को इन्हेलर लेने की सलाह देना आम है। इसका इस्तेमाल भी आम है। मेरा अपना जो अनुभव है इतने वर्षों का, उसमे मैंने देखा है की इनहेलर ke jyada उपयोग के साईड इफेक्ट के बारे में शायद ही किसी mareej को बताया jata है। amooman वे इस बारे me अंधेरे me ही रहते हैं।
जैसा कि आकृति के मामले में हुआ जब किसी मरीज को दमे का दौरा आता है तब मरीज अटैक को रोकने के लिए लगातार इन्हेलर का इस्तेमाल करता है। साँस लेने में परेशानी, चिंता घबराहट और दूसरे लक्षण बढ़ जाते हैं।
साँस ले रहे फेफडे की सतह पर एक परत जम जाती है और गैसों का आदान-प्रदान रुक जाता है। कार्बन डाईऔक्साइड जमा हो जाता है मरीज का दम घुट जाता है, आकृति की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से भी इसकी पुष्टि होती है। मुझे पता नही इस बच्ची को इन्हेलर के लगातार इस्तेमाल के साइड इफेक्ट के बारे में आगाह किया गया था या नही।
ऐसे मामले से निपटना डॉक्टरों के लिए भी मुश्किल होता है। फ़िर तीचेर्स और प्रिंसिपल से क्या अपेक्षा रखी जाए? जरूरत है इन्हेलर इस्तेमाल करने वालों के बीच जागरूकता लाई जाए। खासकर बच्चों के मामले में उनके पैरेंट्स को समय रहते इसके ज्यादा इस्तेमाल के खतरे बताये जाएँ। स्कूल और प्रिंसिपल पर दोष मढ़ना - कम से कम इस मामले में उचित नही।
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1 comment:
डा. सहिब का कहना बिल्कुल सही है आज कल ये रिवाज़ ही हो गया है कि लोग अपनी गलती दूसरोम पर थोप देते हैं अब हर स्कूल मे अस्पताल तो खोला नही जा सकता मा-बाप को अपनी जिमेदारी का भी एहसास होना चाहिये बात बात पर तोड् फोड कहाँ का इन्साफ है सही है कि जन की कोइ कीमत नही होती मगर ऐसी बिमारी मे केवल दूसरों पर अरोप लगाना भी सही नही
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