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Monday, June 23, 2008

एक सुबह मैंने चाहा

उस रिजेक्ट समूह का भी हिस्सा कभी-कभी बनने का मन करता है, जिसे कवि कहते हैं। तो आज उस समूह में रहते जो मेरे मन में आया, यहां दर्ज कर दिया है। इसे सिलेक्ट करें या रिजेक्ट, आपकी मर्जी।

मेरे पास ताकत है
सुनने की और महसूसने की
सुनती हूं जब शोर-गुल बंद हो जाता है
महसूसती हूं जब छूने की मजबूरी खत्म हो जाती है
सुबह-सुबह शहर की सबसे चौड़ी व्यस्त सड़क पर
सब तरफ शोर है तरह-तरह के वाहनों, उनके हॉर्नों का
हर लाल बत्ती के हरा होते ही
ये हॉर्न जगाते हैं ख्यालों में डूबने से पहले
कि आगे चलना है
स्कूल पहुंच कर बच्चे को विदा करती हूं
तब से लेकर खुद भी सामने वाले स्कूल में जाने के बीच
कार के शीशे बंद करते ही
एक पल को अपनी दुनिया में पहुंच जाती हूं
जहां सुनने की मजबूरी नहीं है
बत्तियों, रास्ता दिखाते निशानों का बोझ नहीं है
रीढ़ के भीतर से गुजरते न्यूरॉनों पर
स्टीयरिंग व्हील पर कागज रख कर
कविता लिखती हूं
ड्राइविंग सीट से बाहर चल रहा
दैनिक मूक सिनेमा देखती हूं
रात की झमाझम बारिश के बाद सुबह की तीखी धूप में
पेड़ों के पसीने की बूंदें कार पर गिरती हैं
तो सुनती हूं अनियमित यकायक बज उठना छत का
चाह लेती हूं अपने इस शांत, सुरक्षित हिस्से में
दो घड़ी सोना और देखना सपने
उन जगहों के जहां कार के बाहर भी शोर न हो
पत्तों की तड़कन
झरने की हजार बूंदों के दिलों की लहरिया धड़कन
पेड़ों के पसीने,
चिड़ियों के उच्छिष्ठों के टपकने की धमक
सब एक साथ सुनूं
न मोड़ पाऊं अपनी इंद्रियों को वह सब महसूस करने से
जो दिखता है बच्चों की बनाई पुरस्कृत पेंटिंग में

3 comments:

Abhishek Ojha said...

दिमागी हलचल का अच्छा प्रस्तुतीकरण है !

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा पीस है. बधाई.

pranava priyadarshee said...

shaandaar anuradha. kavita to achchhee hai hee, bhoomika bhee km nahin.bahut mushkil se mauka nikaala padhne ka... lekin sachmuch mazaa aa gayaa.

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