-दिलीप मंडल
बर्मा यानी म्यांमार में सरकार ने इंटरनेट कनेक्शन बंद कर दिए हैं। इससे पहले वहां की सबसे बड़ी और सरकारीइंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी बागान साइबरटेक ने इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड इतनी कम कर दी थी कि फोटोअपलोड और डाउनलोड करना नामुमकिन हो गया। साथ ही साइबर कैफे बंद करा दिए गए हैं। बर्मा के ब्लॉग केबारे में ये खबर जरूर देखें- Myanmar's blogs of bloodshed
बर्मा में फौजी तानाशाही को विभत्स चेहरा अगर दुनियाके सामने आ पाया तो इसका श्रेय वहां के ब्लॉगर्स को हीजाता है। वहां की खबरें, दमन की तस्वीरें बर्मा के ब्लॉगर्सके जरिए ही हम तक पहुंचीं। बर्मा में एक फीसदी से भीकम आबादी की इंटरनेट तक पहुंच है। फिर भी ऐसे समयमें जब संचार के बाकी माध्यम या तो सरकारी कब्जे में हैंया फिर किसी न किसी तरह से उन्हें चुप करा दिया गयाहै, तब बर्मा के ब्लॉगर्स ने सूचना महामार्ग पर अपनीदमदार मौजूदगी दर्ज कराई। अमेरिका में युद्ध विरोधीआंदोलन के बाद ब्लॉग का विश्व राजनीति में ये शायदसबसे बड़ा हस्तक्षेप है। ब्लॉग की लोकतांत्रिक क्षमता कोइन घटनाओं ने साबित किया है।
लेकिन भारतीय ब्लॉगर्स के लिए भी क्या इन घटनाओं काकोई मतलब है? आप अपने लिए इसका जो भी मतलबनिकालें उससे पहले कृपया इन तथ्यों पर विचार कर लें।
-जिस समय बर्मा में दमन चल रहा है, उसी दौरान भारत के पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा बर्मा का दौरा कर आएहैं। भारत को बर्मा का नैचुरल गैस चाहिए। इसके लिए अगर विश्व स्तर पर थू-थू झेलनी पड़े तो इसकी परवाहकिसे है। फिर चीन को भी तो बर्मी नैचुरल गैस चाहिए।
-भारत सरकार न सिर्फ बर्मा के सैनिक शासन को मान्यता देता है और उससे व्यापारिक और राजनयिक संबंधरखता है, बल्कि इन संबंधों को और मजबूत भी करना चाहता है।
-भारत में सुचना प्रवाह पर पहरे लगाने के कई प्रयोग हो चुके हैं। इमरजेंसी उसमें सबसे बदनाम है। लेकिनइमरजेंसी के बगैर भी बोलने और अपनी बात औरों तक पहुंचाने की आजादी पर कई बार नियंत्रण लगाने कीसफल और असफल कोशिश हो चुकी है।
-इसके लिए एक कानून बनने ही वाला है। सरकार वैसे भी केबल एक्ट के तहत चैनल को बैन करने का अधिकारअपने हाथ में ले चुकी है और इसका इस्तेमाल करने लगी है।
-पसंद न आने वाली किताब से लेकर पेंटिंग और फिल्मों तक को लोगों तक पहुंचने देने से रोकने में कांग्रेस औरबीजेपी दोनों किसी से कम नहीं है। लोकतंत्र दोनों के स्वभाव में नहीं है।
और बात ब्लॉग की।
-अभी शायद भारतीय ब्लॉग की ताकत इतनी नहीं बन पाई है कि सरकार का ध्यान इस ओर जाए।
-ब्लॉग के कंटेट में भी गपशप ज्यादा और प्रतिरोध का स्वर कम है। हम इस मामले में बर्मा के ब्लॉगर्स से पीछे हैं।
-ब्लॉग पर सेंसर लगाने का कानूनी अधिकार सरकार के पास है। इसके लिए उसे कोई नया कानून नहीं बनानाहोगा।
-आईपी एड्रेस के जरिए ब्लॉगर तक पहुंचने का तरीका हमारी पुलिस जानती है।
इसलिए ब्लॉगिंग करते समय इस गलतफहमी में न रहें कि किसे परवाह है। अगर आप परवाह करने लायक लिखरहे हैं तो परवाह करने वाले मौजूद हैं। और फिर जो लोग आजादी की कीमत नहीं जानते वो अपनी आजादी खो देनेके लिए अभिशप्त होते हैं।
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4 comments:
सही कहा.
ek Baar fir se aapne sou take ki baat kahi hai. sahi hai ki berma ke bloggers bhartiya bloggers se kai kadam aage rahe ki is madhayam ki taqat ko pehchaankar tamaam khatre uthate hue unhone iska sadupayog kar dala. magar idhar bhi deheemi dheemi awazein aane lagi hain..ab dekhna ye hai ki ye kab shour ban paati hain...asa shour jo tanashahi ke tamaam stambhoun or pairokaron ko hila de..
Pooja Prasad
Very well said. The day blog voice becomes powerful and threatening in India, government will need more power then Burmese to curb it...
ये बातें कुछ परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है। बर्मा के ब्लॉगर्स का कदम सराहनीय है, लेकिन आप खुद को (भारतीय ब्लॉगर्स) भी कम ना आंके। यहां भी मुद्दों पर बातें हो रही हैं। नन्दीग्राम हो या गुवाहाटी सब यहां बहस के मुद्दे है। आप खुद को देखे, आप इसका हिस्सा है और बर्मा पर लिख रहे है। जहां तक बात है ब्लॉग के ज़रिये सरकार को जगाने की तो मेरे मुताबिक उसमें समय लगेगा। ये ब्लॉग्स इस वक्त सीमित दायरे में हैं। मैं ऐसे कई लोगों को जानती हूं, जिन्होने अपनी सोच और रचनाओं के साथ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया है। लेकिन वो इस ब्लॉग नाम की चिड़िया से अब तक अपरिचित है। सब्र कीजिए रोम एक दिन में नहीं बना था।
दीप्ति।
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