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Tuesday, October 30, 2007

हिंदी ब्लॉग यानी एक हजार लोगों के क्लब से अश्विनी जी, आप दूर ही रहें

कल मां के बाजार रेट पर आई कविता के लेखक ए के पंकज अश्विनी जी, कृपया ब्लॉग की दुनिया में कभी कभी आएं, पर यहां बसने की न सोचें। हिंदी ब्लॉग की एक हजार लोगों की बस्ती में दरअसल समझदार लोग रहते हैं, जो अक्सर खाए और अघाए हुए हैं। साधु-साधु और वाह-वाह, क्या ब्लॉग मारा है - टाइप की टिप्पणी एक दूसरे के ब्लॉग पर भेजते हैं। खुद जो मन में आए लिखते हैं और कहीं से अलग विचार आया या थोड़ी-सी आलोचना हुई तो कहते हैं ये तो मेरा पर्सनल स्पेस है।

अश्विनी
कुमार पंकज झारखंड के महत्वपूर्ण संस्कृतिकर्मी हैं। उनसे आप akpankaj@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। उनका खुद का परिचय आप देख लीजिए-
-पांवों में चक्कर नही है फिर भी खुद को बेदखल और विस्थापित करता या होता रहा हूँ। रामनवमी के अखाडे में कभी लाठियाँ नहीं चलायी लेकिन होश सम्हालते ही नास्तिक हो गया। रंगमंच के प्रेम ने ना घर का रखा और ना ही किसी घाट लगने दिया। इन दिनों एक ऐसी भाषा में लिख-पढ़ने का काम शुरू कर दिया है, यार लोगों के मुताबिक जो कोई भाषा ही नहीं है और मैं आत्महत्या की तैयारी में हूँ।

पंकज जी का जोहार सहिया नाम का एक ब्लॉग भी है। किसी भी झारखँडी भाषा का ये पहला ब्लॉग है। वैसे इसकी स्क्रिप्ट देवनागरी है। आगे चलकर झारखंडी स्क्रिप्ट के भी ब्लॉग बनेंगे।

उनके जैसे झारखंड के कई संस्कृतिकर्मी मिलकर 31 अक्टूबर को एक प्रदर्शन कर रहे हैं, रांची में। मांग ये है कि झारखंड की सभी नौ भाषाओं को प्रदेश में राजभाषा का दर्जा दिया जाए। निमंत्रण पत्र इस तरह से है-
31 अक्तूबर के रजधानी में लाठी कर जबाब नगड़ा से
राजभाषा कर मुद्दा में आब तक जे एकतरफा खेइल चलत रहे आउर जे दिकू मदारी मन तमाशा करत रहें उ मनक दिल के ठंडा करेक ले झारखंडी मन पइका नाचबैं। इ नाच ३१ अक्तूबर के रांची कर मेन संडक से सुरु होवी आउर लाट साहेब कर घर-दुरा ठिन फ़ाइनली जाएके खतम होवी। गोटा झारखण्ड से सउब इकर में शामिल होबैं आउर नवो झारखंडी भाषा के द्वितीय राजभाषा बनाएक ले सरकार उपर दबाब बनाएं।

हमारी शुभकामनाएं पंकज जी और झारखंड के तमाम लोकतांत्रिक संस्कृतिकर्मियों के लिए।

5 comments:

अनुनाद सिंह said...

झारखण्ड में द्वितीय भाषा के मुद्दे पर फिर तुष्टीकरण और वोट बैंक की भारत-विरोधी राजनीति भारी पड़ी.

झारखण्ड की भाषाओं को ही द्वितीय भाषा बनाने की माँग सर्वथा झारखण्ड और देश-हित में है।

Anonymous said...

आगे चलकर झारखंडी स्क्रिप्ट के भी ब्लॉग बनेंगे।

झारखंडी स्क्रिप्ट का नाम पहले कभी नहीं सुना. कुछ और जानकारी मिल सकती है इसके बारे में? या कोई नमूना?

दिलीप मंडल said...

अश्विनी जी से आप इस बारे में विस्तार से जान सकते हैं। वैसे संथाली की स्क्रिप्ट तो है ही। साथ ही मुंडारी और हो भाषा की भी स्क्रिप्ट है। राजकीय संरक्षण के अभाव में अगर इन लिपियों का लोप हुआ तो इतिहास हमारे समय और हमारे समय के नीति नियंताओं को अपराधी ही मानेगा।

Unknown said...

विनय जी
आप यहाँ पूरी झारखंडी स्क्रिप्ट देखा सकते हैं
http://akhra.co.in/scriptslinks.php

Anonymous said...

कड़ी के लिए शुक्रिया ak. दिलचस्प साइट है.

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