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Monday, October 29, 2007

मीडिया में मां का रेट

ए के पंकज कौन हैं, मैं नहीं जानता। इससे फर्क भी क्या पड़ता है। हम तमाम लोग एक दूसरे को कितना जानते हैं। पंकज को पढ़िए, आप उन्हें जान जाएंगे। उन्होंने ये कविता बिना किसी भूमिका या निर्देश के, मुझे भेजी। उनकी इजाजत से अब आपके हवाले है।

माँ को हक है
कि वह अपनी संतान को
कहीं भी डांटे
चाहे वह अखबार हो
टीवी हो
या उसका अपना ही आँचल

बहुत बड़े होने पर भी हम
करते हैं ढेर सारी गलतियाँ
सोच समझ कर भी
बिना सोचे समझे भी

माँ डांटती है
ज़िंदगी को गढ़ने के लिये
किसी और मां के आँचल को
महफूज रखने के लिए
वह सनसनी नही ढूँढती
न ही वह करती है तहलका (बोल्ड पंकज जी का किया हुआ है)

उसे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं
कि मीडिया में मां का क्या रेट चल रहा है
न ही उसे इस सलीम-जावेदी
डायलाग कि जरुरत है - मेरे पास मां है
तुम्हारे पास क्या है?

बहुत समझदार बेटे माँ को
बाज़ार में उतार देते हैं
नासमझ बेटे जिंदगी भर
मां की डांट खाते हैं।

A. K. Pankaj
Email: akpankaj@gmail.com

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