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Wednesday, April 23, 2008
पढ़ने के आनंद का सालाना महोत्सव
आज विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस है- किताबों को पढ़ने के आनंद का सालाना महोत्सव। 1996 से संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने इसे विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। खास तौर पर इसलिए भी कि 1616 में इसी दिन आधुनिक यूरोपीय साहित्य के दो पुरोधा शेक्सपियर और स्पेन के उपन्यासकार, कवि, नाटककार और डॉन क्विक्ज़ोट के रचनाकार सेरवांतेज़ की मृत्यु हुई थी। इस दिन के आयोजनों का मकसद खास तौर पर नई पीढ़ी की किताबों में रुचि को बढ़ाना और उन्हें अच्छी किताबें उपलब्ध कराना है। यह उन सबको एक श्रद्धांजलि भी है जिन्होंने किताबों के जरिए सामाजिक, सांस्कृतिक तरक्की का रास्ता बनाया।
इसकी शुरुआत 1929 में स्पेन की छपाई नगरी बार्सिलोना में संत जॉर्ज या जोर्दी के दिन को मनाने से होती है जब लोग एक-दूसरे को किताबें और गुलाब भेंट करते थे। ज्यादा विस्तार से कहें तो पुरुष अपनी प्रिय महिलाओं को गुलाब भेंट करते थे, बदले में महिलाएं उन्हें किताबें भेंट करती थीं। यह परंपरा वहां आज भी कायम है। हर साल 23 अप्रैल को आधे दिन के लिए शहर के सारे बाज़ार बंद हो जाते हैं और सड़कें सज जाती हैं हजारों किताबों की दुकानों से।
बड़े प्रकाशकों की सुंदर दुकानों से लेकर अपनी किताबें हर खासो-आम के साथ बांटने के शौकीनों की महज एक टेबल पर सजी हर तरह की किताबों तक सब कुछ वहां आए लोगों को नज़र होता है। दुनिया के दूसरे समाजों को जानने और उन्हें अपने बारे में बताने की सहज चाहत सिर चढ़ कर बोलती है। दूसरे लोगों, विषयों, विचारों को गहराई से जानने की कोशिश इस आधे दिन में जम कर होती है। फारसी की आध्यात्मिक किताब से लेकर आधुनिक अर्थशास्त्र तक सब कुछ यहां मिलता है। इस दिन प्रकाशक साल भर की बिक्री के बड़े हिस्से की कमाई की उम्मीद करते हैं। अंदाज़ा है कि पिछले साल इस एक दिन में यहां चार लाख किताबें बिक गईं।
दो दिन तक लगातार डॉन क्विक्ज़ोट पढ़ने की प्रतियोगिता भी इस दौरान होती है और किताबों और पाठकों से जुड़े दूसरे आयोजन भी। किताबों के उत्सव में पढ़ने के शौकीन ही नहीं, अजीब चीजों के शौकीन भी पहुंचते हैं। कोई बुकमार्क जमा करता है तो कोई किताबों के विचित्र/ विलक्षण पोस्टर तो कोई अनोखी किताबें ही। इस मौके पर संस्कृति के दूसरे रंग भी आस-पास बिखरे होते हैं और इस महोत्सव के बूते पर फलते-फूलते हैं। साथ ही फलते-फूलते हैं प्यार-मोहब्बत के रिश्ते और घूमने-फिरने के बहाने।
बार्सिलोना की यह अनूठी संस्कृति जापान जैसे दुनिया के दूसरे देशों तक भी पहुंची है। हिंदुस्तान तक इसकी सुखद पहुंच का बेसब्री से इंतज़ार है।
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