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Friday, June 20, 2008

वाह क्रीमी लेयर से आह क्रीमी लेयर तक

- दिलीप मंडल

गरीब सवर्णों
को पहली बार आरक्षण मिला है...चलिए इसका जश्न मनाते हैं। लेकिन मीडिया से लेकर जिसे सिविल सोसायटी बोलते हैं, उसमें गरीब सवर्णों को मिलने वाले रिजर्वेशन को लेकर कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है। चुप तो वो लोग भी हैं जो कई साल से आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत कर रहे थे और जाति आधारित आरक्षण का विरोध कर रहे थे। सामाजिक पिछड़ापन जिनके लिए निरर्थक था, निराधार था। सवर्ण समुदाय के गरीबों को नौकरियां मिलने की बात से वो खुश नहीं दिख रहे हैं। वाह क्रीमी लेयर, इस मामले में आह क्रीमी लेयर में तब्दील होता दिख रहा है।

जाट परिवार की वधु और गुर्जर परिवार की समधन राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने देश में पहली बार गरीब सवर्णों के लिए सरकारी नौकरियों में 14 परसेंट आरक्षण की व्यवस्था की है। इस पर सवर्ण इलीट की क्या प्रतिक्रिया है? लगभग वैसी ही चुप्पी आपको उत्तर प्रदेश के सवर्ण इलीट में दिखती है, जब मायावती गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात करती हैं। लेफ्ट पार्टियां भी इस बार खामोश हैं। वो अपने शासन वाले राज्यों में तो गरीबों को आरक्षण नहीं ही देती हैं, किसी और ने ये कर दिया है तो उसका स्वागत भी नहीं करती हैं।

मीडिया की इसे लेकर प्रतिक्रिया यही है कि ये राजस्थान सरकार का ये फैसला ज्यूडिशियल स्क्रूटनी में पास नहीं हो पाएगा। तर्क ये कि राजस्थान में नए प्रावधानों से कोटा 68 परसेंट हो जाएगा। वैसे ये नहीं भूलना चाहिए कि तमिलनाडु में 69 परसेंट आरक्षण है और न्यायपालिका ने इसे खारिज नहीं किया है।

सवर्ण इलीट की आम प्रतिक्रिया आपको यही मिलेगी कि ये वोट की राजनीति है। वोट की राजनीति तो ये सरासर है, लेकिन महाराज, लोकतंत्र में वोट की राजनीति नहीं होगी तो क्या होगा।

2 comments:

Sarvesh said...

हां हम भी वहि सोच रहे थे कि गरिब सवर्णॊ को रिजर्वेशन मिला कोइ celebrate क्यों नहीं कर रहा? देखिये मिडिया और राजनिति मे जो सबसे ज्यादा बिकता है वो है दलित, पिछडे, अल्पसन्खयक इत्यादि. बाकी तो मिडिया चाहे राजिनितिग्यो के राजनितिक रोटि सेंकने मे मदद नहीं करते. अब देखिये ना ना तो मान्गने वाले दिवाली मना रहे हैं और अश्चर्य है कि देने वाले भी एक गुमी साधे हुए हैं. बाकि जनता को तो मालुम है की यार अब रिजर्वेशन राजनिति का हथगन्डा है.
अब देखिये ना आपको भी याद आई तो कैसा मुह मे कसाव लिये लेख लिखे हैं. जैसे कह रहे हैं आप कि अरे सवर्णॊ हम तुम लोगो का ठेका ले रखे है का लिखने का, तुम लोग लिखो.
धन्यवाद याद दिलाने के लिये.
-सर्वेश

अजित वडनेरकर said...

सिर्फ और सिर्फ दलितों , वनवासियों को ही आरक्षण की आवश्यकता है।
आरक्षण का लाभ सही रूप में लोगों तक नहीं पहुंचा है।
सरकारी नौकरियां बची कितनी हैं जो आरक्षण से कोई खुश हो ?
गूजरों के लिए आरक्षण भी राजनीति ही है। एक रिटायर्ड कर्नल का टाईमपास शगल। गरीब सवर्णों से बेहतर स्थिति में रहे हैं गूजर। कम से कम उनके पास ज़मीने तो हैं।

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