(दोस्तो, डा कुमार विनोद की ग़ज़लें आप इस ब्लाग पर पहले भी पढ़ चुके हैं. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय मे बतौर असोसिएट प्रोफ़ेसर छात्रो को गणित की गुत्थियाँ सुलझाना सिखाते हुए विनोद जी कविता के लिए भी समय निकालते रहे. उनका ग़ज़ल संग्रह 'बेरंग हैं सब तितलियाँ' हाल ही आधार प्रकाशन से छप कर आया है. पेश है उसी संग्रह की चुनिंदा ग़ज़लें)
1
बर्फ हो जाना किसी तपते हुए एहसास का
क्या करूँ मै खुद से ही उठते हुए विश्वास का
आँधियों से लड़ कर गिरते पेड़ को मेरा सलाम
मै कहाँ कायल हुआ हूँ सर झुकाती घास का
घर मेरे अक्सर लगा रहता है चिड़ियों का हुजूम
है मेरा उनसे कोई रिश्ता बहुत ही पास का
नाउमीदी है बड़ी शातिर कि आ ही जाएगी
एक हम रोशन किए बैठे हैं दीपक आस का
देख कर ये आसमाँ को भी बड़ी हैरत हुई
पढ़ कहाँ पाया समंदर जर्द चेहरा प्यास का
2
उनकी फ़ितरत मे शरारत है ज़रा - सी
दोस्ती मे भी अदावत है ज़रा - सी
कल इसी के दम पे बदलेगी हुकूमत
आप कहते हैं - बग़ावत है ज़रा - सी
सब कहें कायर मुझे तो क्या ग़लत है
बच रही मुझमे शराफ़त है ज़रा - सी
यूँ तो कोई ऐब राजा मे नही है
खून मे शामिल सियासत है ज़रा - सी
ज़ुल्म की आँखों मे आँखें डालना भी
कौन कहता है इबादत है ज़रा - सी
3
है हवा खामोश इसका ये मगर मतलब नही
आँधियों ने डर के मारे सी लिए हैं लब, नही
सबकी हां मे हां मिला, गर्दन झुकाकर बैठ जा
करके कोशिश देखना, आसान ये करतब नही
रात के हाथो उजाले आज फिर बेचे गये
है अजूबा इसमे क्या, ऐसा हुआ है कब नही
जब कभी दैरोहरम मे चल पड़े बादेसबा
सबको देती ताज़गी है, पूछ्ती मज़हब नही
दिल मे था जो कह दिया, जो कह दिया सो कर दिया
साफ़गोई से इतर आता हमे कुछ ढब नही
4
दोस्तो, पत्थर यहाँ भगवान है
यांत्रिकता शहर की पहचान है
खून से लथपथ हर इक मंज़र यहाँ
और मस्जिद मे खुदा हैरान है
सत्य का पथ है यही तो दोस्तो
घुप अंधेरा, दूर तक सुनसान है
मुस्कुराने से नही फुर्सत इसे
है अभी बच्चा, ज़रा नादान है
और कितनी दूर तक पीछा करें
ख्वाहिशों की क्या कोई पहचान है?
(डा. कुमार विनोद से 09416137196 पर संपर्क किया जा सकता है)
Custom Search
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Custom Search
3 comments:
Bahut umda gazalen hain. tevar bhi kamal ke!
kumar vinod sahab ko mubarakbaad!
है हवा खामोश इसका ये मगर मतलब नही
आँधियों ने डर के मारे सी लिए हैं लब, नही... हकीकतों को बयान करती पंक्तियां लिखना आसान नहीं। फिर कविता के माध्यम से हकीकत कहना तो और भी दुश्कर है। शुक्रिया प्रणव जी, कविताएं पढ़वाने के लिए। विनोद जी को शुभकामनाएं।
कुमार विनोद की कविताएं आज के साहित्यिक बौद्धिक जाल में एक दरीचे के खुलने जैसी हैं, जहां से ठंडी ताजी निर्मल हवा आती है और मन सुकून से भर जाता है। इससे पहले का उनका कविता संग्रह 'कविता कभी नहीं मरती' भी बेहद सुकूनदायी था।
Post a Comment