रिश्ते ऐसे जिनकी डोर जन्म-जन्मांतर तक जाये
मकसद ऐसा कि जिंदगी अमरता का पर्याय बन जाए
जीवन ऐसा कि हम ही नहीं ये दुनिया निहाल हो जाए
-प्रणव प्रियदर्शी
जो कहीं नहीं छ्पा वो यहाँ छपेगा ... सूचना और रचना के लोकतंत्र में आप सबका स्वागत है। अपना रिजेक्ट माल या ऐसा माल जो आपको लगता है कि रिजेक्ट हो जाएगा, उसे rejectmaal@gmail.com पर भेजें
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