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Monday, August 6, 2007

जीवन

भावनाएं ऐसी कि शब्द साथ न दे पाएं
रिश्ते ऐसे जिनकी डोर जन्म-जन्मांतर तक जाये
मकसद ऐसा कि जिंदगी अमरता का पर्याय बन जाए
जीवन ऐसा कि हम ही नहीं ये दुनिया निहाल हो जाए

-प्रणव प्रियदर्शी

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