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Sunday, August 12, 2007

पूर्वाग्रह

-मालंच

किसी भी तरह के क्षेत्रीय और जातीय पूर्वाग्रह से नफरत है। खासकर बिहार का होने की वजह से मुझे उस वक्त बहुत बुरा लगता है जब मैं बिहारियों को बेवजह प्रताड़ित और तिरस्कृत होते हुए देखता हूं। अभी कल की ही बात है। दिल्ली में ब्लूलाइन बस से कहीं जा रहा था। दो सीट आगे बैठा एक व्यक्ति एक मित्र के साथ बैठा उससे बातें कर रहा था। हावभाव और वेशभूषा से भी उसका बिहारीपन झलक रहा था। अचानक उसने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, " अरे भाई दिल्ली में भी वही हाल है। थोड़ा सा पानी परा नहीं कि देखो कितना पानी जम गया है सड़क पर।" और सबके चेहरों पर मुस्कान तैर गई। बगल में बैठे सज्जन की बुदबुदाहट मेरे कानों तक पहुंच गई, " कोई जगह खाली नहीं बची इन बिहारियों से।"
कुछ ही दिन पहले ऑफिस में विजिटिंग कार्ड बनवाने की बात हो रही थी। संपादकजी भी थे। कलर पर बात खत्म हुई ही थी कि युवा संवाददाता राजेश ठाकुर बोल उठा, "सर विजिटिंग कार्ड तो हिंदी में ही होना चाहिए। हम हिंदी अखबार में काम करते हैं और विजिटिंग कार्ड अंग्रेजी में हो, ऐसा क्यों?"
संपादकजी मुस्कुराए। बोले, "राजेश जी ये पूरा देश बिहार नहीं है। अब आप बिहारी मानसिकता से निकलिए। अंग्रेजी को लेकर कॉम्प्लेक्स बहुत पुरानी बात हो गई है।" और कमरे में मौजूद सभी लोग हंस पड़े। मैंने देखा कि किस तरह राजेश का चेहरा सकपका गया।
यह ऑटो वाला भी तो बिहारी ही दिख रहा है। पूरे तीन बार थूक चुका है। मेरे ऑटो में बैठने के बाद भी पूरे 45 सेकेंड लिए उसने। जो खैनी बना रहा था, उसे साफ करके मुंह में डालने के बाद ही ऑटो स्टार्ट किया उसने। खैर, कहीं एक्सिडेंट नहीं किया। सही सलात घर तो पहुंचा। वरना दिल्ली में क्या भरोसा, कब कौन सी बस कुचल दे।
कॉलबेल सुन छह साल की बिटिया ने दरवाजा खोला और बिना कुछ कहे सुने वापस जाकर टीवी देखने लगी। उसका प्रिय कार्टून कार्यक्रम आ रहा था। उसे पता था कि ये मेरे आने का समय है। अभी बैठ कर ठीक से सुस्ता भी नहीं पाया था कि बिजली चली गई। बेटी के मुंह से निकला, "अरे यार बिजली चला गया।" और मैं उबल पड़ा, "ऐ पिंकी, क्या बोलती हो तुम। बिजली चली गई नहीं बोल सकती हो। लाइन कट गया। सबको ये बताना जरूरी है कि हम बिहार के हैं।" बच्ची सकपकाई हुई थी और पत्नी हैरानी से मेरी ओर देख रही थी।

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