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Sunday, August 5, 2007

दीया

मैं हूं एक
माटी का दीया
बहुत छोटा और भंगुर
मैं संसार के अंधकार को
हटाने का
दावा नहीं करता।
लेकिन
जब तुम्हारे घर में
अंधेरा हो,
तब मुझे जलाना
रात भर जलकर मैं
धीरे धीरे चुक जाऊंगा,
और
तब तक तुम
एक उजली सुबह
जरूर पा जाओगे।

(03.09.1986, जबलपुर)

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