मैं हूं एक
माटी का दीया
बहुत छोटा और भंगुर
मैं संसार के अंधकार को
हटाने का
दावा नहीं करता।
लेकिन
जब तुम्हारे घर में
अंधेरा हो,
तब मुझे जलाना
रात भर जलकर मैं
धीरे धीरे चुक जाऊंगा,
और
तब तक तुम
एक उजली सुबह
जरूर पा जाओगे।
(03.09.1986, जबलपुर)
Custom Search
Sunday, August 5, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Custom Search
No comments:
Post a Comment