- अनुराधा, दिलीप, प्रणव
"तुम्हें अप टु द मार्क होना पड़ेगा।" यह वाक्य हमारे लिए नया नहीं है। हमने, आपने और हम जैसे करोड़ों लोगों ने पता नही कितनी बार यह वाक्य सुना है। कभी उपदेश के रूप में तो कभी सलाह के रूप में, कभी नसीहत के रूप में तो कभी चेतावनी के रूप में। हर जगह, हर कुर्सी पर कोई न कोई बैठा है और हाथ में एक पेंसिल लिए टिक या क्रॉस मार्क किए जा रहा है कि कौन योग्य है, कौन नहीं।माफ कीजिए, योग्य तो बिरला नसीब वाला ही होता है, ये कुर्सी पर बैठे लोग प्रायः यही तय करते रहते हैं कि कौन किस वजह से और किन मायनों में अयोग्य है।
कौन जाति की वजह से अयोग्य है और कौन प्रांत की वजह से। किसकी भाषा में गड़बड़ है और किसका पहनावा दकियानूसी।कौन अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर जरूरत से ज्यादा सतर्क है तो कौन अपने धार्मिक संस्कार छोड़ने को तैयार नहीं।किसे अपने विचारों से जरूरत से ज्यादा मोह है तो कौन समय के साथ आगे बढ़ना नहीं जानता।कौन....
यह सूची खत्म होने वाली नहीं। कहने का मतलब यह कि किसी न किसी वजह से, किसी न किसी आधार पर हमारी चीजें, हमारी बातें और हम रिजेक्ट कर दिए जाते हैं। वे बेचारे भी क्या करें! जब अवसर कम हैं और इच्छुक ज्यादा । तो किसी न किसी आधार पर अधिसंख्य लोगों को रिजेक्ट करना ही पड़ेगा। और आप धर्म के आधार पर फैसला करें या जाति के आधार पर, लिंग के आधार पर फैसला करें या क्षेत्र के आधार पर, आर्थिक स्थिति के आधार पर फैसला करें याप्रतिभा, जी हां प्रतिभा के आधार पर- नतीजा एक ही आना है, अधिकतर लोग छंट जाएंगे।
हालांकि खुद को या अपने लोगों को ‘सेलेक्टेड’ की श्रेणी में लाने की इच्छा से इन आधारों में से किसी खास को अपनाने का दबाव समाज के अलग-अलग हिस्सों से आता रहता है(संदर्भ- मुस्लिम आरक्षण की मांग, गुर्जरों के लिए आरक्षण की मांग, महिला आरक्षण की मांग, भूमिपुत्रों के साथ न्याय का शिवसेना का आग्रह आदि), मगर प्रगतिशील विचारों के दबाव में ऐसे तमाम आधार अपना प्रभाव खोते जा रहे हैं। एकमात्र आधार जो आज भी अपनी विश्वसनीयता बनाए हुए है, वह है प्रतिभा या योग्यता।इसलिए दुनिया भर में इसी आधार पर ज्यादा से ज्यादा लोग रिजेक्ट किए जा रहे हैं। यह जानते हुए भी कि भिन्न-भिन्न सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों में पलने, बढ़ने के नाते हमारी प्रतिभा भी अलग-अलग रूपों में प्रकट होगी, वे अपने मुताबिक प्रतिभा नापने का एक पैमाना रख लेते हैं और उससे इतर तमाम प्रतिभाओं को रिजेक्ट कर देते हैं। सैटेलाइट टीवी वाले संपन्न घर में पले बच्चे और भूमिहीन खेत मजदूर के बच्चे - दोनों के लिए वे एक ही सवाल तय करते हैं कि पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की बेटी का नाम बताएं। फिर जवाब के आधार पर पहले बच्चे को योग्य और दूसरे को अयोग्य घोषित कर देते हैं। इस बात की ओर ध्यान देने की जहमत नहीं उठाते कि अगर सिर्फ सवाल बदलकर यह कर दिया जाए कि धान की बोआई के समय पौधे का कितना हिस्सा मिट्टी में और कितना पानी में होना चाहिए तो दूसरा बच्चा योग्य और पहला अयोग्य साबित हो जाएगा।
इस स्थिति की ही वजह से समाज के विशिष्ट तबके के लोग सामने वालों को किसी न किसी आधार पर रिजेक्ट करने के आदी से हो जाते हैं। यही आदत विशिष्ट बनने के इच्छुक तबके में भी आ जाती है। नतीजा यह होता है कि कुर्सी पर बैठा हर व्यक्ति सामने आने वाली चीजों को खारिज करता नजर आता है। कभी अमिताभ बच्चन की आवाज़ खारिज हो जाती है तो कभी विशाल भारद्वाज की फिल्म (संदर्भ- ‘मकड़ी’ को सई परांजपे ने बकवास करार दिया था)।लेकिन मुद्दा इन अपवाद स्वरूप रिजेक्शन झेलने के बाद विशिष्ट बन चुके लोगों का नहीं, जिनका सचमुच रिजेक्ट करने लायक माल भी अब सिर आंखों पर लिया जाता है। बात उनकी हो रही है जो लगातार रिजेक्ट होते रहे या कभी सिलेक्ट-कभी रिजेक्ट होते-होते हाशिये पर ही रह गए।
यह ब्लॉग ‘रिजेक्ट माल’ मंच है ऐसे ही लोगों का, ऐसे ही लोगों के लिए और ऐसे ही लोगों के द्वारा। इसलिए हमने तय किया है कि जब तक अनिवार्य न हो, हम किसी सामग्री को रिजेक्ट नहीं करेंगे। न भाषा की स्तरीयता के आधार पर, न धर्म और संस्कृति के मानदंडों के आधार पर और न ही वैचारिक असहमति के कारण। हालांकि इसका मतलब यह भी नहीं कि हम ऊलजलूल चीजें छापेंगे। बस, किसी न किसी रूप में वह चीज हमारी चेतना को आगे बढ़ाने वाली, संवेदना को छूने वाली होनी चाहिए।फिर हम किसी दूसरे मानदंड को स्वीकार नहीं करेंगे।
कुछ लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठेगा कि हाशिए पर पहुंचा दिए गए या पहुंचाए जा रहे लोगों की बात इंटरनेट जैसे मंच से करने का क्या तुक? सीधा जवाब यह है कि मौजूदा हालात में सबसे सहज और सुलभ माध्यम यही मिला। सच है कि हममें से कुछ लोग खुद को कामयाब या विशिष्ट श्रेणी का मानने लग जाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अगर हमारे पास आजीविका के लिए अपना श्रम बेचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है तो हम भी बेबस लोगों की उसी श्रेणी के हैं । हमारी समस्याएं, हमारे मुद्दे, हमारी चुनौतयां और हमारे हित सब साझा हैं। कहने की जरूरत नहीं, इंटरनेट तक पहुंच रखने वाली बिरादरी का भी ज्यादातर हिस्सा आजीविका के लिए श्रम बेचने वालों का ही है।
तो आइए हम ‘रिजेक्ट माल’ पर अपने दर्दो-ग़म बांट कर कम करें, खुशियों को साझा कर उन्हें दोगुना करें और मिल कर चुनौतयों का सामना करने की रणनीति भी बनाएं।
1 comment:
Pranavji, Anuradhaji, Dilip Sir se bas itna hi ki prayas sarahniye hai..
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