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Tuesday, August 28, 2007

कॉमरेड का कान और सोशल जस्टिस

दिलीप मंडल

कान बड़ा है या सोशल जस्टिस? और क्या अगर कॉमरेड के कान में तकलीफ न होती तो भी एम्स में दलित और पिछड़े छात्रों के साथ इतना अन्याय हो रहा होता। शायद हां। क्योंकि जब कॉमरेड के कान में तकलीफ नहीं थी तब भी कॉमरेड की एक जाति थी। बहरहाल पहले पहले तो हम आपको इस बात की जानकारी दे देते हैं कि एम्स में हो क्या रहा है।

एम्स देश में सामाजिक अन्याय की प्रयोगशाला है। वैसे तो ये संस्थान केंद्र सरकार के पैसे से चलता है (वही सरकार जिसका वादा और दावा है कि वो सामाजिक न्याय करती है)। लेकिन इस संस्थान में या तो सरकार की चलती नहीं है या फिर सरकार चलाने वाले इस संस्थान को एक ऐसे टापू के तौर पर देखना चाहते हैं, जहां नीची जाति वाले न भर जाएं। इसमें दूसरी बात के सच होने की संभावना ज्यादा है क्योंकि ये मानना आसान नहीं है कि भारत की महान सरकार कुछ करना चाहे और उसी के पैसे से चलने वाला एक संस्थान उसे लागू न करे।

एम्स में इस साल सीनियर रेजिडेंट की 106 पोस्ट एडवर्टाइज हुईं। इनमें से 49.5 फीसदी यानी 52 सीटें एससी, एसटी और पिछड़ी जातियों के लिए रिजर्व है। रिटेन एक्जाम में इन कैटेगरी के 76 कैंडिडेट पास हुए। ऐसे में रिजर्व कैटेगरी के 52 कैंडिडेट का सेलेक्शन मुश्किल नहीं था। लेकिन मुश्किल हुई। क्योंकि इस साल से एम्स ने एक ऐसा सिस्टम लागू कर दिया है जिसके तहत सेलेक्शन में आधे नंबर रिटेन एक्जाम के और आधे नंबर डिपार्टमेंटल एसेसमेंट के हैं।

SELECTION PROCEDURE :
a) A written Examination based on MCQs in the subject concerned (total marks 100) will be conducted for eligible Candidate on 23.12.2006 (Saturday) in Delhi only. The exact time and place will be intimated in due course of time through admit card.
b) The result of the written examination will be displayed on the notice board of the Examination Section at AIIMS on 26.12.2006.
c) Candidates who get 50% marks or more in the written examination will be eligible for consideration for the departmental assessment. The departmental assessment will be held on 27th and 28th Dec 2006.
d) The departmental assessment will carry 100 marks to be based on clinical evaluation/laboratory testing/detailed viva. The result e.g. departmental assessment will be displayed on the notice board of Examination Section on 29.12.2006.
e) The combined (written MCQs test as well as department assessment marks) merit list will be prepared for the final selection.

इस नियम का इस्तेमाल करते हुए रिजर्व कैटेगरी के 76 में से 50 कैंडिडेट फेल कर दिए गए और नौकरी मिली सिर्फ 26 को। बाकी बचे पदों पर चूंकी रिजर्व कटेगरी के "योग्य" कैंडिडेट नहीं मिले, इसलिए उन पोस्ट पर जनरल कैटेगरी के योग्य माने गए कैंडिडेट को चुन लिया गया। इस मामले की जांच के लिए स्वास्थ्य मंत्री अंबुमनि रामदास ने स्वास्थ्य सचिव की अध्यक्षता में जो कमेटी बनाई, वो समय पर अपनी रिपोर्ट तक नहीं दे सकी है।

एम्स में सोशल जस्टिस की धज्जियां उड़ाने के ऐसे दर्जनों मामले हैं। रिजर्व कटेगरी के एक छात्र अजय सिंह को फाइनल ईयर में फेल कर दिया गया। जबकि पहले लगातार उन्होंने अच्छा परफॉर्म किया था। परीक्षा का रिजल्ट घोषित होने से पहले ही अजय सिंह फेल हो गए के पोस्टर इंस्टिट्यूट में चिपका दिए गए। बार बार कोशिशों के बावजूद और कई सांसदों के पत्र लिखने के बावजूद अजय सिंह की कॉपी दोबारा नहीं जांची गई। इसी तरह एम्स के रेडियोथेरपी डिपार्टमेंट में एक सीनियर रेजिडेंट को बिना कारण बताए हटा दिया गया। रिजर्व कटेगरी के इस डॉक्टर को हटाने की वजह भी नहीं बताई गई।

एम्स में सोशल जस्टिस की धज्जियां उड़ते पिछले साल पूरे देश ने देखा। हाईकोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन करते हुए पिछले साल कोटा विरोधी छात्रों ने एम्स कैंपस में लाउड स्पीकर लगाकर जोरदार हंगामा किया। 16 दिनों तक एम्स बंद रहा और मरीजों को वार्ड से निकालकर दूसरे हॉस्पिटल में ले जाना पड़ा। इस दौरान केंद्र सरकार कोर्ट के आदेश पर अमल करने की जगह आंदोलनकारियों के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकें करती रही। हद तो तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एम्स ने उन आंदोलनकारियों को उन दिनों का वेतन भी दे दिया जब वो अदालत के आदेश को तोड़कर एम्स के अंदर उत्पात मचा रहे थे। एम्स के हॉस्टल में एससी एसटी छात्रों के साथ बुरे बर्ताव की खबरें लगातार आती रही हैं।

कांग्रेस पार्टी अपने मूल स्वरूप और ऐतिहासिक भूमिका में सवर्ण वर्चस्व का प्रतिनिधित्व करती रही है। इसलिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के ऐसे आचरण पर आप गुस्सा कर सकते हैं लेकिन किसी के आश्चर्यचकित होने का कोई कारण नहीं है। लेकिन एम्स के मामले में सीपीएम और सीपीआई के कॉमरेडों के कदम क्यों सामाजिक न्याय की उल्टी दिशा में चल रहे हैं? अगर आपको ये बात चौंकाती है तो आप निहायत भोले हैं। सामाजिक न्याय और जाति के सवाल पर सीपीएम और सीपीआई की उलझन उतनी ही पुरानी है, जितनी कि ये पार्टियां।

और एम्स के मामले में तो कान का भी मामला है। दरअसल ये कान सीपीएम पोलिट ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी का है, जिसका इलाज एम्स में हुआ था। वैसे तो अपने कान का इलाज कोई कहीं भी करा सकता है, लेकिन जब कान येचुरी का हो, तो मामला इतना साधारण नहीं रहता। येचुरी साहब के इलाज के लिए एम्स के डायरेक्टर पी वेणुगोपाल ने वो कमरा खोल दिया, जो सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए होता है। साथ ही एम्स में कान का इलाज मेन हॉस्पिटल में होता है। लेकिन येचुरी साहब को प्रधानमंत्री वाला वीवीआईपी कमरा देना था, इसलिए उनका इलाज कार्डियोथोरासिक एंड न्यूरोसाइंसेस (CN) सेंटर में हुआ। एम्स में किस किस लेफ्ट नेता ने अपना इलाज कराया है, इस पर शोध होना चाहिए और उनमें से कितने का वीआईपी ट्रींटमेंट वेणुगोपाल ने कराया है इसपर खास तौर पर फोकस होना चाहिए। और आखिर में आपको हम छोड़ जाते हैं सीपीएम के इस वक्तव्य के साथ-- रिजर्वेशन को लेकर हंगामे के दौरान सीपीएम पोलिट ब्यूरो ने सिर्फ यही एक स्टेटमेंट जारी किया। और ये स्टेटमेंट तब आया जब अंबुमनि रामदॉस ने पी वेणुगोपाल को हटा दिया था। इस वक्तव्य में रिजर्वेशन के पक्ष में भी कुछ कहा गया है ताकि पार्टी की कांख ढकी रहे।


July 6, 2006
Press Statement
The Polit Bureau of the Communist Party of India (Marxist) has issued the following statement:
On AIIMS Developments
The developments concerning the All India Institute of Medical Sciences are a matter for concern as it is a premier institution for medical services and research in the country. The affairs in the institution have reached a stage where the governing board has adopted a resolution for the removal of the Director. This is an unfortunate development which does not bode well for the autonomy and the integrity of the AIIMS.
In the recent period, the AIIMS had become the centre for the anti-reservation movement on the issue of introduction of OBC quotas The attitude of the authority running the institute did not keep in mind the fact that the reservation for SCs, STs and OBCs are a constitutional provision and that a Central Government institution in particular, has to conform to the Constitution.
The strike by doctors in AIIMS and other hospitals on the issue has put thousands of patients to hardship. Mindful of the difficulties faced by the people, the doctors should call off the strike and register their protest by other means. The Polit Bureau urges the government to intervene to amicably settle the issue.

3 comments:

ढाईआखर said...

तार्किक पोस्ट। आपकी लेखनी के तो पहले ही कायल थे। एम्स में लगातार दलित छात्रों के साथ यही व्यवहार हो रहा है। पिछले साल एक समिति बनी थी, उसने भी इस बात की पुष्टि की थी। यह है ...इक्वेलिटी... का सच।

दिलीप मंडल said...

नासिरुद्दीन जी, इक्वेलिटी तो अपने समय का एक बड़ा छद्म है। एम्स के जातिवादी डॉक्टरों के ऐसा करने पर आश्चर्य नहीं होता। लेकिन कुछ कॉमरेड जब नाटक करते हैं तो कोफ्त जरूर होती है। और कोफ्त इस बात पर भी कि लाल रंग की चमक इन लोगों ने कितनी फीकी कर डाली है।

Anonymous said...

tarkon ke saath aapke imaandaar bhasha bhe prabhawit kartee hai. mubaarak ho.

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