इस समय स्टार न्यूज से और उससे पहले आज तक , नवभारत टाइम्स , जनसत्ता और मुंबई से छपने वाले दोपहर से जुडे मिलिंद दक्षिण दिल्ली के सफदरजंग डेवलपमेंट एरिया में रहते हैं। उनके माता-पिता इंदौर से दो दिन पहले ही आए थे। वो इंदौर में मिलिंद के छोटे भाई के साथ रहते थे।
मिलिंद के पिता कल शाम हमेशा की तरह टहलने निकलने। लेकिन इंदौर में टहलने और दिल्ली की इंसानों को निगलने वाली सड़कों पर टहलने में फर्क है, जिसे सत्तर साल के बाबूजी शायद समझ न सके। किसी तेज रफ्तार मोटरसाइकिल ने उन्हें टक्कर मारी और दिल्ली के हिट एंड रन केस में एक और नंबर जुड़ गया। पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी उन्हें एम्स के ट्रॉमा सेंटर (ये सेंटर इस तरह के गंभीर मामलों से निबटने के लिए अभी तैयार नहीं है) लेकर आई, जहां आज दोपहर बाद 2 बजकर 40 मिनट पर उनका देहांत हो गया।
उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के लोधी रोड शवदाह गृह मे हुआ, जहां मिलिंद के सहयोगी, मित्र और पत्रकारिता जगत से जुड़े लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे।
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Monday, May 12, 2008
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7 comments:
वाकई में यह अत्यन्त दुखदायक घटना है. कुछ वक्त पूर्व ऐसी ही घटना मेरे एक पत्रकार मित्र के साथ घटी थी. जिससे वह अब तक उबर नही पाया है . हमेशा उसे यह कचोटता रहता है कि क्यों पिताजी को दिल्ली लेकर आया और क्यों उन्हें बाहर अकेले घूमने के लिए जाने दिया. पिता का जाना और वो भी ऐसे . हम उनका दर्द समझ सकते सकते हैं. हमारी गहरी संवेदना मिलिंद जी के साथ है.
पुष्कर पुष्प
दिलीप भाई, यह दुखद ख़बर है. इस तरह से पिता की मृत्यु होना दोनों भाइयों के लिए अब जिंदगी के पछतावे का सबब हो गया. इस दारुण दुःख में हम सब मिलिंद के साथ हैं.
हम लोग 'जनसत्ता' और उसके भी पहले 'दोपहर' अखबार में साथ-साथ थे. प्रणब भी वहाँ था. मिलिंद ने 'महानगर' में कभी काम नहीं किया. वह 'जनसत्ता' से 'एनबीटी' में चला गया था. 'महानगर' में प्रणब था.
I have been witness to a part of this disaster. I continuously felt that so essential and expected to be friendly and human systems of police and hospital were actually not up to the mark. The detailed discription is meaningless here but wish, things do change for the better. The loss for Milind, his mother, brother and the whole family is too huge. My heartfelt condolences.
ये तो बहुत ही दुखदायी है। मिलिंद जी और उनके परिवार को भगवान् इस दुःख को सहने की शक्ति दे ।
महानगरों में हमने जिस तरह के ख़तरे आमंत्रित किये हैं ये हादसा उसका निकृष्टतम रूप है. मिलिंद भाई के ग़म में शामिल होते हुए बस इतना ही कहना चाहूँगा कि हम इन्दौर जैसे छोटे शहर वाले ही अब सुरक्षित नहीं रहे तो दिल्ली की क्या बात है.समवेदनाएँ.
दुखद समाचार. भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति दे
घटना तो दुखद है ही, मेरे लिए ज्यादा दुखद इसलिए भी हो गयी कि मैं दुख की उस घडी मे मिलिंद के पास नही रह सका. दिल्ली से बाहर होने की वजह से मैं उस दौरान मौजूद नही हो सका. संतोष की बात यह कि अन्य दोस्त मौजूद थे. बाबूजी को श्रद्धांजलि और मिलिंद तथा पूरे परिवार को हमारी संवेदनाएं.
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