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Tuesday, November 13, 2007

नंदीग्राम पर अविनाश की कविता


दंड भेद साम दाम। नंदीग्राम नंदीग्राम।


एक गली सात घर। जल रहे धधक कर।
तीस जन हैं किधर। भटक रहे दर-बदर।

चारों ओर त्राहिमाम। नंदीग्राम नंदीग्राम।


क़त्ल की कहानियां। ज़ख़्म की निशानियां।
जहां-तहां अनगिनत। उजड़ गये आशियां।

स्‍याह रात थकी शाम। नंदीग्राम नंदीग्राम।


गांव गली शहर से। गुजरात से विदर्भ से।
इंसाफ़ की पुकार है। वे बढ़ रहे हैं तेज़ तेज़।

हो गया बंगाल जाम। नंदीग्राम नंदीग्राम।


ये कौन सी बहार है। ये माकपा सरकार है।
जो कर रही है अनसुनी। ग़रीब की गुहार है।

क्रूर बुद्धिहीन वाम। नंदीग्राम नंदीग्राम।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत खूब!!

pranava priyadarshee said...

गहन अनुभूति के साथ निकली ये प्रभावी पंक्तियाँ प्रबल प्रतिरोध का स्वर बन गयी हैं. लेकिन बधाई आज नही दूंगा अविनाशजी. बधाई का आदान प्रदान उस दिन, जो वामपंथ के नाम पर चल रहे फासीवाद से बंगाल की मुक्ति का गवाह बनेगा. सचमुच गोधरा के बाद के मोदी और नंदीग्राम के बाद के बुद्धदेव मे कोई अंतर नही.
प्रणव

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