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Friday, November 16, 2007

विजेंद्र अनिल के भोजपुरी गीत

जनवरी 1945 को बक्सर जिले के बगेन में जन्मे कथाकार ,कवि विजेंद्र अनिल का इसी माह तीन तारीख को देहांत हो गया। 1968 से 70 तक उन्होंने अपने गांव से ही प्रगति पत्रिका भी प्रकाशित की थी। आजीवन भाकपा माले से जुडे रहे विजेंद्र अनिल ने बदलते समय में भी अपने सरोकार नहीं बदले थे। गोरख पांडे के बाद अपनी तरह से मेहनतकश ग्रामीण किसान जनता के दुख-दर्द को उन्होंने अपने गीतों में स्वर दिया। विजेंद्र अनिल को समूचे रिजेक्ट समुदाय की तरफ से श्रद्धांजलि. यहाँ प्रस्तुत है भोजपुरी मे लिखी उनकी दो चर्चित कवितायें

जरि गइल ख्‍वाब भाई जी

रउरा सासन के ना बड़ुए जवाब भाईजी,

रउरा कुरूसी से झरेला गुलाब भाई जी


रउरा भोंभा लेके सगरे आवाज करींला,

हमरा मुंहवा पर डलले बानी जाब भाई जी


हमरा झोपड़ी में मटियों के तेल नइखे,

रउरा कोठिया में बरे मेहताब भाई जी


हमरा सतुआ मोहाल, नइखे कफन के ठेकान,

रउआ चाभीं रोज मुरूगा-कवाब भाई जी


रउरा छंवड़ा त पढ़ेला बेलाइत जाइ के

हमरा छंवड़ा के मिले ना किताब भाई जी


रउरा बुढिया के गालवा प क्रीम लागेला,

हमरा नयकी के जरि गइल ख्‍वाब भाई जी


रउरा कनखी पर थाना अउर जेहल नाचेला,

हमरा मुअला प होला ना हिसाब भाई जी


चाहे दंगा करवाईं, चाहे गोली चलवाईं,

देसभक्‍तवा के मिलल बा खिताब भाई जी

ई ह कइसन लोकशाही, लड़े जनता से सिपाही,

केहू मरे, केहू ढारेला सराब भाई जी


अब ना सहब अत्‍याचार, बनी हमरो सरकार,

नाहीं सहब अब राउर कवनो दाब भाई जी


चाहे हथकड़ी लगाईं, चाहे गोली से उड़ाईं

हम त पढ़ब अब ललकी किताब भाई जी



हमरो सलाम लिहीं जी


संउसे देसवा मजूर, रवा काम लिहीं जी

रउआ नेता हईं, हमरो सलाम लिहीं जी।


रउआ गद्दावाली कुरूसी प बइठल रहीं

जनता भेंड़-बकरी ह, ओकर चाम लिहीं जी।


रउआ पटना भा दिल्ली बिरजले रहीं

केहू मरे, रउआ रामजी के नाम लिहीं जी।


चाहे महंगी बढ़े, चाहे लड़े रेलिया

रउआ होटल में छोकरियन से जाम लिहीं जी।


केहू कछुओ कहे त मंहटिउवले रहीं

रउआ पिछली दुअरिया से दाम लिहीं जी।


ई ह गांधी जी के देस, रउआ होई ना कलेस

केहू कांपता त कांपे, रउआ घाम लिहीं जी।

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