ये कौन बोल रहा है? भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से गैस रिसने से हजारों लोग मरे थे। उस समय भोपाल में विश्व कविता सम्मेलन होने वाला था। भोपाल के भारत भवन में। इस हादसे के बाद कविता सम्मेलन को स्थगित करने की बात चली तो भारत भवन के कर्ता-धर्ता और मानवीय संवेदनाओं के कवि अशोक वाजपेयी ने कहा - मुर्दों के साथ मरा नहीं जाता। (ये सब मैंने अपनी स्मृति पर भरोसा करते हुए लिखा है। अगर तथ्य कुछ और हैं तो मुझे करेक्ट करें)
उस घटना के 23 साल बाद कोलकाता के नंदन में कोलकाता फिल्म फेस्टिवल हो रहा है। कोलकाता से बस थोड़ी ही दूर नंदीग्राम हो रहा है। अपर्णा सेन और रितुपर्णों घोष समेत कई फिल्मकारों और लेखकों आदि ने इस फेस्टिवल का बहिष्कार किया है। गिरफ्तारियां दी हैं। लेकिन हमारे समय के संवेदनशील फिल्मकार मृणाल सेन ने फेस्टिव का बहिष्कार करने वालों से कहा है- कोलकाता फिल्म फेस्टिवल साल में एक बार होता है। फिल्म प्रेमी साल भर इसका इंतजार करते हैं। ये किसी भी तरह से राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं है।
मृणाल सेन की फिल्मों में मुख्य कथ्य राजनीति ही है। देश में न्यू सिनेमा की शुरुआत ही उनकी फिल्म भुवन शोम से मानी जाती है। मृणाल सेन को दुनिया उस फिल्मकार के रूप में याद रखेगी जिसने मृगया, आकालेर संधाने और पदातिक जैसी फिल्में दीं। न कि उस फिल्मकार के रूप में जिसे २००५ में दादा साहेब फाल्के एक ऐसी सरकार ने दिया, जो लेफ्ट फ्रंट के समर्थन से चल रही है। दादा साहेब फाल्के अवार्ड न मिलने से मृणाल सेन का सिनेकर्म छोटा नहीं था। लेकिन नंदीग्राम पर बुद्धदेव भट्टाचार्य के पक्ष में खड़े होकर मृणाल सेन कितने छोटे हो गए हैं।
2 comments:
जी दिलीप जी; ये बकबास अशोक वाजपेयी ने ही की थी और उस समय मृ्णालसेन विरोध में थे. भुवनशोम की नायिका सुहासिनी मुले ने तो इसके विरोधस्वरूप गिरफ्तारी भी दी थी.
आज मृ्णालसेन वाकई बौने दिख रहे हैं.
जी हां! सुना कुछ ऐसा ही था .
पर आज दोपहर वे मेधा पाटकर,महाश्वेतादेवी, शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय,विभास चक्रवर्ती,शुभप्रसन्न और जोगेन चौधरी के साथ धर्मतल्ला में आयोजित विरोध और भर्त्सना सभा में भी थे .
सरकार के पक्ष में अब दो ही प्रमुख बुद्धिजीवी कलाकार दिख रहे हैं सुनील गंगोपाध्याय और सौमित्र चटर्जी . या कभी-कभी बीच में कॉमिक रिलीफ़ के लिए उषा उत्थुप आ खड़ी होती हैं .
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