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Wednesday, November 14, 2007

जुलूस में मृणाल सेन और कुछ लोगों की मुर्दा शांति

मृणाल सेन ने वही किया जो उन्हें करना चाहिए थामृगया और पदातिक के मृणाल सेन से आप और किसी चीज की उम्मीद नहीं कर सकतेमृणाल सेन नंदीग्राम में अत्याचार के खिलाफ कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट से आज निकले जुलूस में शामिल हुएवही खादी का कुर्ता, अस्सी साल की काया और मजबूत कदमदोपहर बाद कोलकाता से फोन पर ये खबर मिलीखबर अपने पुराने मित्र, पत्रकार और महाश्वेता से लेकर मृणाल सेन पर किताबें लिखने वाले भाई कृपाशंकर चौबे ने दीकृपा जी नंदीग्राम पर लागातर हिंदुस्तान में रिपोर्टिंग कर रहे हैं अब तक 16 बार नंदीग्राम जाकर स्पॉट रिपोर्टिंग कर चुके हैंउन्होंने बताया कि जुलूस में बुद्धिजीवियों को शामिल होना था, लेकिन जनता जुटती गई और कॉलेज स्ट्रीट से बिपिन बिहारी गांगुली स्ट्रीट तक लोग ही लोग दिख रहे थेजिस जुलूस में 500 लोगों के शामिल होने की बात थी, उसमें 50,000 से ज्यादा की भीड़ दिख रही थीअपने आप जुटी, बिन बुलाई भीड़

लेकिन कुछ लोग अभी भी खामोश हैंसुनील गंगोपाध्याय चुप हैंऔर सत्यजीत राय की फिल्मों में कई बार हीरो बने सौमित्र चटर्जी भी कुछ बोल नहीं रहे हैंइनकी खामोशी को दुनिया सुन रही हैखामोश वो लोग भी हैं जिन्हें ये भरोसा है कि सीपीएम के साथ होने की वजह से कोई पुरस्कार उन्हें मिलने वाला हैचुप वो भी हैं जो किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज या अकादमी की किसी सीट पर नजर गड़ाए बैठे हैंऔर चुप वो भी हैं जिन्हें कोई प्रोजेक्ट मिलना है या जिन्हें इस बात का भरोसा है कि सीपीएम के साथ होने से उनके लिए कलाकर्मी कहलाना आसान होगा, कोई रचना किसी पत्रिका में छप जाएगीकिसी रचना की अच्छी समीक्षा हो जाएगीसाहित्य और कला संस्कृति पर कुंडली मारकर बैठे लोगों से कई लोगों को डर लगता हैहंस और कथादेश और पहल और ऐसी ही तमाम जनपक्षीय कही जाने वाली पत्रिकाओं पर नजर रखिए

लेकिन ऐसे लोगों में ये साहस या नैतिक बल नहीं है कि नंदीग्राम की घटनाओं के समर्थन में लिखें, बोलें, नाटक करें, पेंटिग्स बनाएंभाजपाई बुद्धिजीवी (संख्या पहले कम थी, अब केंद्र में सरकार बनने के बाद से बढ़ गई है) जिस तरह गुजरात दंगों के बाद खामोश रहकर दंगों का समर्थन कर रहे थे, वही हाल जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा, जन नाट्य मंच, सहमत और ऐसे ही कला-साहित्य संगठनों का है, जो अपनी ऊर्जा सीपीएम-सीपीआई से लेते हैंनंदीग्राम में अत्याचार के पक्ष में बोल नहीं रहे हैं क्योंकि शर्म आती है, विरोध में बोल नहीं रहे हैं क्योंकि कुछ पाने का लोभ है या कुछ खोने का डर है

लेकिन खामोश रहना निष्पक्ष होना नहीं हैखामोशी तो बहुत ताकतवर किस्म की राजनीति हैजो खामोश हैं वो राजनीति कर रहे हैं और उनकी राजनीति को दुनिया देख रही है

-दिलीप मंडल

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लिखा। खामोशी को लोग सुन रहे हैं।

Anonymous said...

mrinal sen ne kal phir paalaa badal liyaa .

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