अगर किसी को ब्लॉग की ताकत को लेकर भ्रम है तो उसे ये लेख जरूर पढ़ना चाहिए। मेरा ये लेख मूल रूप में एक समाचार पत्रिका में छप चुका है। इस ब्लॉग पर डालने का एक मकसद ये भी है कि इसे इंटरनेट माध्यम की ताकत मिले। इस लेख के हाइपर लिंक पर जरूर जाएं। फिर देखिए बात कहने का ये तरीका ब्लॉग पर किस तरह कई गुणा शक्ति प्राप्त कर लेता है। ये बात आपसे वो शख्स कह रहा है जो पिछले कई साल से प्रिंट के अमूमन हर मंच पर लगातार लिखता रहा है। और जो प्रिंट के बारे में ये नहीं कह सकता कि अंगूर खट्टे हैं। -दिलीप मंडल
पिछले साल का नोबेल शांति पुरस्कार बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक और उसके संस्थापक मुहम्मद यूनुस को संयुक्त रूप से दिया गया था। इस पुरस्कार को गरीब देशों में लोगों की गरीबी दूर करने के असरदार करार दिए गए तरीके-माइक्रोक्रेडिट- की कामयाबी के तौर पर देखा गया। लेकिन क्या मुहम्मद यूनुस को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने का मामला इतना ही सीधा है? आइए मुहम्मद यूनुस, ग्रामीण बैंक और नोबेल शांति पुरस्कार से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों को देखें जिनकी चर्चा नहीं हुई है।
- मुहम्मद यूनुस दो प्रोजेक्ट चलाते हैं। ग्रामीण बैंक उनमें एक है और दूसरा है ग्रामीण फोन। भारत-बांग्लादेश सीमा पर अगर आप जाएंगे तो आसपास के इलाकों में अक्सर आपका मोबाइल फोन ग्रामीण फोन का सिग्नल पकड़ लेता है।
-ग्रामीण फोन 1997 से बांग्लादेश में मोबाइल सर्विस दे रहा है और देश में डेढ़ करोड़ लोग ग्रामीणफोन की सर्विस का इस्तेमाल करते हैं।
- ग्रामीण फोन में 38 फीसदी हिस्सेदारी ग्रामीण टेलीकॉम कॉरपोरेशन की है। और बाकी 62 फीसदी हिस्सा नार्वे की टेलीकॉम कंपनी टेलीनॉर की है। 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी की वजह से टेलीनॉर ही ग्रामीणफोन को संचालित करती है और ग्रामीणफोन का लोगो भी वही है जो टेलीनॉर का है।
- टेलीनॉर नार्वे की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है और इसका पाकिस्तान, थाईलैंड और मलेशिया समेत 12 देशों में कारोबार फैला हुआ है। इन जानकारियों की पुष्टि आप ग्रामीणफोन की ऑफिशियल साइट पर कर सकते हैं।
- पिछले साल ग्रामीणफोन ने बांग्लादेश में तीन हजार करोड़ रुपए (नार्वे की करेंसी के हिसाब से 431 एनओके) का कारोबार किया। कंपनी का टैक्स आदि के भुगतान के बाद मुनाफा आया 1281 करोड़ रुपए। 62 फीसदी हिस्सेदारी के हिसाब से बांग्लादेश में फोन सर्विस देने पर टेलीनॉर ने एक साल में 794 करोड़ रुपए कमाए। इन आंकडों का पूरा ब्योरा आप इस लिंक पर देख सकते हैं।
- टेलीनॉर जिस देश, यानी नार्वे की कंपनी है, वहीं की नोबेल पीस कमेटी नोबेल शांति पुरस्कार देती है।
- टेलीनॉर का नोबेल पीस सेंटर के साथ पार्टनरशिप एग्रीमेंट है। इस सेंटर के लिए टेलीनॉर चार साल में 1.4 करोड़ एनओके यानी लगभग 10 करोड़ रुपए देगी। ये जानकारी आप टेलीनॉर की साइट पर कॉरपोरेट रिस्पांसिबिलिटी के लिंक पर जाकर देख सकते हैँ।
- पिछले साल नोबेल शांति पुरस्कार मिलने से पहले तक मुहम्मद यूनुस और टेलीनॉर के बीच ग्रामीणफोन के मालिकाना को लेकर झगड़ा चल रहा था। मुहम्मद यूनुस ने मशहूर बिजनेस मैगजीन फॉर्चून को 5 दिसंबर 2006 को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि टेलीनॉर बांग्लादेश से करोड़ों डॉलर बाहर ले जा रही है। साथ ही उन्होंने ये आरोप भी लगाया था कि टेलीनॉर ने ग्रामीणफोन में हिस्सेदारी लेते समय 1996 में ये बादा किया था कि छह साल में वो अपनी हिस्सेदारी ग्रामीण टेलीकॉम कॉरपोरेशन को बेच देगी। लेकिन उसने वादाखिलाफी की। ज्यादा जानकारी के लिए देखें (http://money.cnn.com/2006/12/04/news/international/yunos_telenor.fortune/index.htm )।
- मुहम्मद यूनुस को 10 दिसंबर, 2006 को नार्वे की राजधानी ओस्लो में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। उससे एक दिन पहले 9 दिसंबर को मुहम्मद यूनुस टेलीनॉर के हेडक्वार्टर पहुंचे और वहां कपनी के सीईओ जॉन फ्रेडरिक बैकसास से मुलाकात की।
क्या आप में से किसी ने भी उस दिन के बाद मुहम्मद यूनुस का टेलीनॉर के खिलाफ कोई बयान किसी वेबसाइट या अखबार में देखा है? दूसरी ओर टेलीनॉर के सीईओ जॉन फ्रेडरिक बैकसास साफ कर चुके हैं कि ग्रामीण बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटाने का उनका कोई इरादा नहीं है।
माइक्रोक्रेडिट की क्या है हकीकत?
और फिर बात उस चमत्कार की, जिसे माइक्रोक्रेडिट कहा जा रहा है और जिसकी भारत में भी काफी चर्चा है। माइक्रोक्रेडिट की सफलता के बावजूद बांग्लादेश दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। मानव विकास इंडेक्स में बांग्लादेश भारत से नीचे 139वें नंबर पर है। वहां की 49.5 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। और ग्रामीण बैंक की कामयाबी के बावजूद बांग्लादेश की 80 फीसदी आबादी के दैनिक आमदनी 70 रुपए से कम है। ग्रामीण बैंक एक आदमी को औसत 5,000 रुपए से कम का कर्ज देता है और ब्याज दर कम से कम 20 फीसदी है। यानी नोबेल कमेटी जब कहती है कि ग्रामीण बैंक से बांग्लादेश में गरीबी दूर करने में मदद मिली है, तो ये सच नहीं है।
वैसे भी, नोबेल शांति पुरस्कार किसी को क्यों मिलता है?
अमेरिकी विदेश नीति में आक्रामकता के सबसे बड़े चैंपियन हेनरी किसींजर को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना और महात्मा गांधी को ये पुरस्कार न मिलना क्या आपको चौंकाता है ? हेनरी किसींजर को दुनिया उस शख्स के रूप में जानती है जिनके अमेरिकी विदेश मंत्री रहने के दौरान अमेरिकी फौज ने कंबोडिया में भारी बमबारी की , जिनके समय में चीली गणराज्य के चुने हुए राष्ट्रपति एलेंदे की सीआईए ने हत्या कर दी, जिनकी शह पर पाकिस्तानी शासक जनरल याहिया खान ने पूर्वी पाकिस्तान में दो लाख लोगों का नरसंहार कराया , जिनके समर्थन से इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुहार्तो ने ईस्ट तिमूर में एक लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली और जिनके विदेश मंत्री रहते हुए अर्जेटिना में फौजी शासकों ने कई हजार युवाओं मार डाला और उसकी खबर भी घरवालों को नहीं दी। किसीजर का अतीत जानना हो तो अमेरिकी मीडिया में चली बहस को या फिर विकिपीडिया जैसी किसी साइट को खंगाल कर देखिए।
ऐसे हेनरी किसींजर को 1973 में नोबेल शांति पुरस्कार देने वाली कमेटी ने इस साल अल गोर और आईपीसीसी को नोबेल शांति पुरस्कार दिया है। और हम भारत को लोग इतने भर से खुश हो रहे हैं आईपीसीसी का नेतृत्व इस समय एक भारतीय कर रहा है और हमें शायद ही इस बात का एहसास है कि ग्लोबल वार्मिंग के नाम पर चल रही राजनीति और अर्थनीति में हमारा कोई हित है भी या नहीं!
6 comments:
अच्छा जवाब है दिलीप जी...
सही लिखा है, साथी..
अधमुंदी आंखें पूरी की पूरी खुल गईं .
माइक्रोक्रेडिट वाला मामला तो पहले भी पढा था . ग्रामीण मोबाइल टेलीफोनी का रहस्य जानकर मन कसैला हो गया .
बेहद जानकारीपरक लेख।
सत्य का एक निर्मम रूप आपने दिखलाया.
बहुत ही विचारोत्तेजक किंतु तार्किक लेख.
चमत्कार उगला आपकी लेखनी ने.
आपको बधाई.
िबलकुल सही आकलन. यह हकीकत अभी भी लोग नहीं समझ पा रहे हैं िक अिधकतर िवदेशी देशी पुरस्कार, सम्मान उन उद्देश्यों के िलए नहीं िदए जाते िजनके िलए उसे प्रचािरत िकया जाता है. नोबल पुरस्कार भी उससे अलग नहीं. इस पर तो काफी पहले से ही सवाल खडे हो रहे थे. इस िरपोटॆ ने हकीकत को साफ साफ बयान कर िदया है. भारत में िविभन्न घरानों के नेतृत्व में िदए जानेवाले पुरस्कारों की सचाई भी एेसी ही है. कुल िमलाकर यही होता है िक तुम इस हाथ से मेरी खुजाओ िफर दूसरे हाथ से मैं खुजा दूंगा.
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