की जड़ ये है कि हममें से ज्यादातर ब्लॉगर एक दूसरे को जानते-पहचानते हैं। अभी भी हिंदी ब्लॉगिंग एक छोटे से क्लब की तरह है। इसलिए झगड़े भी बिल्कुल क्लब या हाउसिंग सोसायटी के अंदाज में होते हैं।
ब्लॉग के झगड़ों को देखिए। जो लोग झगड़ते दिख रहे हैं वो सब एक दूसरे के परिचित है। दो अनजान ब्लॉगरों का झगड़ा दुर्लभ बात है। झगड़ रहे ब्लॉगर बात पर बात करते दिखते जरूर हैं, लेकिन ये लड़ाई व्यक्तियों के बीच होती है। ऐसी लड़ाई की तीक्ष्णता व्यक्तियों के अंतर्संबंधों के डायनामिक्स से तय होती है।
जो ब्लॉगिंग में ज्यादा लगे हैं, उन्हें यहां के मान-असम्मान की परवाह कुछ ज्यादा होती है। ब्लॉगिंग में जिस तरह की "इज्जत" के उछलने से लोग परेशान हैं, वो थोड़ी पुरानी सी सोच लगती है। उसे सामंतवाद कह लीजिए, या किसान या ग्रामीण या पिछड़ी मानसिकता या कोई और नाम दे दीजिए। बात बात पर इज्जत खराब होना कोई अच्छी बात नहीं है।
मेरी निजी राय है कि ब्लॉगिंग में बेनामी तो रहेंगे। कुछ कमेंटकर्ताओं ने सिर्फ कमेंट करने के लिए ब्लॉग बना लिए हैं। वे बेनामी ब्लॉगर हैं। अगर बेनामियों से किसी को एतराज है तो वो अपने मंच पर इसकी इजाजत न दे। लेकिन बेनामियों को अपनी आत्मा का अहेरी मानिए, तो फिर उनसे कोई समस्या नहीं होगी।
ये वो प्रजाति है जो आपकी आलोचना करती है, आपको वलनरेबल होने का एहसास दिलाती है। हमें आत्मतुष्टि के कीचड़ में धंसने से बचाती है। हमें नॉरसिसस बनने से रोकते हैं बेनामी आलोचक। हमें तथ्यों को लेकर परफेक्ट होने के लिए धकेलते हैं बेनामी। हमें नया पढ़ने और जानने के लिए उकसाते हैं और हमारा ही भला करते हैं ये लोग। निंदक नियरे राखिए की बात इन पर फिट बैठती है।
रिजेक्टमाल पर हम बेनामी कमेंट की छूट देते हैं, उनके कमेंट पढ़ते हैं, पब्लिश या रिजेक्ट करने के लिए हम अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं। जो मंच ज्यादा लोकतांत्रिक और साहसी हो पाते हैं वहां बेनामी कमेंट की भी छूट है और कमेंट मॉडरेशन भी नहीं है।
हमारे बारे में कोई निजी या चुभती हुई बात तो हमें जानने वाला ही करता है। हमें चोट पहुंचाने में किसी अनजाने को क्या फायदा? इसलिए बेनामियों को अपना जानिए। वो आपके करीब के लोग हैं। अगर कोई आपका क्षद्म रचकर कोई बात कहता है तो ये चिंता की बात है। लेकिन कोई बात अगर किसी के समग्र व्यक्तित्व से अलग रूप में कही जाएगी तो उसकी विश्वसनीयता नहीं होती। मेरा रूप धरकर कोई अगर ब्राह्मणवाद की तारीफ करेंगा तो आप क्या यकीन करेंगे? किसी दारूबाज मित्र के बारे में ही तो ये अफवाह चल सकती है कि पीकर नाली में पड़ा था। हर अफवाह को पंख नहीं लगते। अफवाह का भी एक आधार होना चाहिए, तभी वो आगे बढ़ती है। ऐसी अफवाह नहीं चल सकती कि मुकेश अंबानी ने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी है या कि अमिताभ बच्चन बुढ़ापा बिताने के लिए बाराबंकी चले आए हैं। इसलिए अपनी विश्वसनीयता पर यकीन कीजिए।
बहरहाल, इटरनेट के मुक्त माध्यम में बेनामियों की अपनी सत्ता है और उस सत्ता की जरूरत भी है और उसका अपना महत्व है। हिंदी ब्लॉगिंग को इस सच का साक्षात्कार करने के लिए वयस्क होना पड़ेगा।