एक कर्मचारी के हिस्से हर महीने 1476 रुपए की बढ़ोतरी
ये वो रकम है जो वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू होने पर औसतन हर कर्मचारी को प्रति माह अतिरिक्त मिलेगी। 1476 रुपए की मासिक औसत बढ़ोतरी पर सरकार और कांग्रेस इतरा रही है और अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी। इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए हिसाब ये जोड़ा गया है कि देश में केंद्र सरकार के 45 लाख कर्मचारी हैं और वेतन आयोग का कहना है कि रिपोर्ट लागू करने पर इस साल 7975 करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। देखें वेतन आयोग की रिपोर्ट के हाइलाइट्स का अंतिम बिंदु।
तीन गुना नहीं, दो गुना भी नहीं, डेढ़ गुना भी नहीं। देश में अर्थव्यवस्था 9 परसेंट की रफ्तार से बढ़ रही हो, जहां महंगाई दर 5 परसेंट की सालाना दर से और वास्तविक महंगाई उससे भी तेजी से बढ़ रही हो, वहां ये बढ़ोतरी कुछ भी नहीं है। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए बने छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट का यही सच है।
अभी केंद्र सरकार के जिस कर्मचारी का बेसिक 2550 रुपए है वो बढ़कर 6600 रुपए (बेसिक 4860+ग्रेड पे 1800) हो जाएगा। पहली नजर में बढ़ोतरी ढाई गुना लगती है। लेकिन अभी कर्मचारी बेसिक के अलावा डीए-डीपी भी लेकर जाता है और कुल मिलाकर ये रकम 5700 रुपए बैठती है। यानी वास्तविक बढ़ोतरी है सिर्फ 900 रुपए की।
12 साल बाद आई वेतन आयोग की रिपोर्ट ने कर्मचारियों की ऊंची उम्मीदों पर बर्फबारी कर दी है। सीटू के नेता एम के पंधे से आज बात हुई तो उन्होंने भी यही कहा कि ग्रुप डी और सी के कई कर्मचारियों के कुल वेतन में एक हजार रुपए से भी कम का फर्क पड़ेगा और वो वेतन आयोग की रिपोर्ट से निराश हैं। ऐसा लगता है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट कांग्रेस और यूपीए सरकार के लिए बहुत बुरे समय पर आई है क्योंकि चुनाव से ठीक पहले आई इस रिपोर्ट को लेकर कर्मचारियों ने काफी उम्मीदें लगाई थीं।
वेतन आयोग की रिपोर्ट में कुछ अच्छी बातें हैं
- अधिकतम दो बच्चों के लिए प्रति बच्चा 1,000 रुपए शिक्षा खर्च सरकार उठाएगी। पहले ये रकम 50 रुपए थी।
- रिपोर्ट में मैटरनिटी लीव को 135 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने की सिफारिश की गई है। इस छुट्टी को एक साल तक और जारी रखने की व्यवस्था है, जिसे बढ़ाकर दो साल करने की बात की गई है।
- डिफरेंटली एबल लोगों के लिए 12 दिन सीएल, बाकी लोगों के लिए ये आठ दिन है। उनके लिए 4 परसेंट के सस्ते दर पर कर्ज देने की भी सिफारिश की गई है।
और इस रिपोर्ट में जो सबसे बुरी बात हुई है वो ये कि केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों की सेहत की चिंता से पल्ला झाड़ने लगी है। रिपोर्ट में ये कहा गया है कि अब जो भी नया कर्मचारी आएगा उसे सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी सीजीएचएस की सुविधा नहीं मिलेगी। उसे स्वास्थ्य बीमा योजना से जुड़ना होगा। वर्तमान कर्मचारियों को भी बीमा योजना में शामिल होने का विकल्प दिया गया है। बीमा योजना में प्रीमियम का एक तिहाई हिस्सा कर्मचारी को भरना होगा। यानी अब तक जो स्वास्थ्य सुविधा मुफ्त मिलती थी, उसके दिन गए।
पी चिदंबरम ने अपने बजट में सीजीएचएस पर खर्च के लिए 369 करोड़ रुपए ही रखे हैं, जो पिछले साल के वास्तविक खर्च से 30 करोड़ रुपए कम हैं। ऐसे में साफ है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट केंद्र सरकार की पूरी नीति का एक हिस्सा ही है।
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