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Friday, March 14, 2008

कोई शहीद होता है, कोई मारा जाता है!

युद्ध, तनाव और पत्रकारिता की भाषा पर कुछ नोट्स

(महाभारत के संजय को पहला पत्रकार कहा गया था क्योंकि उसने धर्मेक्षेत्र-कुरुक्षेत्र में जो हुआ, उसे धृतराष्ट्र को उसी रूप में सुनाया। मान्यता है कि संजय ने दिव्यदृष्टि से जो देखा, उसका आंखोदेखा हाल सुनाया होगा। यही उम्मीद पाठक दर्शक शायद आज के पत्रकारों से करता है। लेकिन क्या जो होना चाहिए, वो ही है। भरोसे से ये बात कहना आसान नहीं है। भारत के संदर्भ में गांव-शहर, पिछड़ा प्रदेश-अगड़ा प्रदेश, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, हिंदीभाषी-अहिंदीभाषी, सवर्ण-अवर्ण, स्त्री-पुरुष, स्लम-पॉश जैसे विभाजनों से पत्रकारिता मुक्त नहीं हुई है। यहां पर चर्चा करते हैं इजराएल-फिलस्तीन संघर्ष के बारे में इजराएली मीडिया में हो रही रिपोर्टिंग की। ये संदर्भ इसलिए कि तनाव के क्षणों में ही पक्षपात ज्यादा सघन रूप में सामने आता है, वरना तो सब कुछ ठीक ठाक ही चलता नजर आता है। - दिलीप मंडल)

- इजराएली मीडिया के लिए इस संघर्ष में दो पक्ष हैं। एक इजराएली सेना और दूसरा फिलस्तीनी हमलावर या आतंकवादी।
- इजराएली सेना हमेशा किसी खबर को कन्फर्म करती है जबकि फिलस्तीनी हमेशा दावा करते हैं। मिसाल के तौर पर खबर छपती है कि - फिलस्तीनी पक्ष ने दावा किया है कि इजराएली फौज की फायरिंग में एक बच्चे की मौत हो गई है।
- इजराएली फौज जब फिलस्तीन में घुसकर किसी फिलस्तीनी को पकड़ लाती है तो इजराएली मीडिया उसे गिरफ्तारी बताता है। भारतीय संदर्भ में आप कल्पना कीजिए कि पाकिस्तानी फौज हमारी सीमा के अंदर आकर किसी को पकड़ ले जाती है तो क्या उसे गिरफ्तारी कहेंगे।
- इजराएली फौज ने 2006 में फिलस्तीनी सीमा में घुसकर सत्ताधारी पार्टी हमास के 60 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया था। उनमें 30 सांसद और आठ मंत्री थे। इन सबको उनके घरों से रात में उठा लिया गया था।
- इजराएली फौज जब फिलस्तीनी क्षेत्र में घुसकर फायरिंग करती है तो मीडिया इसे हमेशा जवाबी कार्रवाई के तौर पर रिपोर्ट करता है। जबकि फिलस्तीनी जब इजराएली क्षेत्र में घुसकर हमला करते हैं तो ये हमेशा आंतकवादी कार्रवाई के तौर पर रिपोर्ट होता है।
- इजराएली मीडिया के हिसाब से उसकी फौज कभी हत्या नहीं करती है। इस शब्द को फिलस्तीनी हमलों के लिए सुरक्षित रखा गया है।
- मीडिया रिपोर्टिंग के मुताबिक, इजराएली फौज कभी भी हमले की शुरुआत नहीं करती, वो हमले का जवाब देती है। वो आत्मरक्षा में हमला करती है। लेकिन फिलस्तीन की फौज कभी भी आत्मरक्षा में हमला नहीं करती। वो हमेशा हमले की शुरुआत करती है।
-इजराएली हमले में जो भी मरता है, वो हमास का महत्वपूर्ण पदाधिकारी होता है। इजराएली फौज ने एक हमले में मारे गए जिस शख्स को हमास के मिलिटरी विंग का गाजा चीफ बताया था वो कैदियों के क्लब का सेक्रेटरी था।

तो खबरें हमेशा वो नहीं होतीं जो बताई जाती हैं। इस जानकारी का स्रोत counterpunch.org पर आप देख सकते हैं। वैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया एजेंसी जिस तरह की खबरें हम तक फीड करती हैं उसमें भी ये पक्षपात नजर आता है। देखनेवालों को दिख जाता है। जो भोले हैं वो खुश रहते हैं।

1 comment:

Anonymous said...

अगर इसराइल के पास इतनी आक्रामकता न होती तो उसके पड़ोसी कब का उसे नेस्तनाबूत कर चुके होते............ अरब देश भी कोई बहुत ज़्यादा मासूम नहीं हैं.यहूदीयों से हर कौम नफ़रत करती है. उनका इतिहास उठा कर देखें अगर तो उनकी वह्शीपन की वजह पता चल जायेगी............ यही अति-आक्रामकता कहीं न कहीं उनके असतित्व के लिये ज़रूरी है.वैसे भी, हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम वही करते हैं जो हमें करना पड़ता है.(चित्रलेखा में भगवतीचरण वर्मा)

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