भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाली दूसरी मीडिया इकाइयों की तरह इसमें भी रिक्रिएशन क्लब है। यह सालाना खेल-कूद कार्यक्रमों का आयोजन भी करता है। क्लब का चंदा तो महिला-पुरुष से बराबर ही वसूला जाता है लेकिन महिलाओं के लिए इनमें भाग लेने के मौके न के बराबर ही होते हैं।
तो, जब पुरुषों ने अपने बैडमिंटन मैचों के लिए अभ्यास करना शुरू किया तो देख कर दो-एक उत्साही महिलाओं को भी जोश आया और अब तक वंचित रही उस कोर्ट भूमि पर महिलाओं की चरण-धूलि भी पड़ ही गई। उन्हें कोर्ट में देख कुछ और महिलाएं प्रेरित हुईं और आज स्थिति यह है कि रोजाना लंच टाइम के पहले आधे घंटे में महिलाएं खेलती हैं, तभी पुरुषों की बारी आती है।
विभाग की महिलाओं की ओर से यह एक अच्छी शुरुआत रही। लेकिन यहां तक पहुंचने के दौरान उन्हें पुरुषों की खूब टिप्पणियां सुनने को मिलीं-
" एक ही दिन में ज्यादा मत खेलो। घर जाकर खाना भी बनाना है।"
" शॉट मार रही हो या किसी के गाल सहला रही हो।"
" चिड़िया को चिड़िया मारे, ये भी कोई खेल हुआ!"
इत्यादि।
-आर. अनुराधा
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