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Monday, March 17, 2008

आइए हाथ उठाएँ हम भी

-आर. अनुराधा




खबर संक्षेप में यह कि दिल्ली में दो बहनें शनिवार को सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकलीं तो गली के तीन लड़कों ने उनके साथ शर्मनाक बर्ताव किया, लोगों के बीच उनके कपड़े तक फाड़ डाले। ये लड़के रोज़ उनमें से एक लड़की को छेड़ते, परेशान करते थे। लेकिन उस घटना के रोज़ उनमें से एक, जो कराटे जानती थी, ने विरोध जताया जिससे बिफरे लड़कों ने उन पर हमला ही बोल दिया।

खबर पढ़ने के बाद मेरे जेहन में जो बात सबसे पहले दर्ज हुई वो ये कि उस दिन कराटे जानने वाली लड़की ने रोज़ रोज़ सताए जाने का विरोध (पहली बार?) किया। नतीजतन लड़के जो अब तक अपने आनंद के लिए उन्हें रास्ते में आते-जाते सताया करते थे, नाराज हो गए। लड़की, तेरी ये मजाल कि हमारे आनंद में खलल डाले! ये ले आगे के लिए सबक। लेकिन इन लड़कियों ने ऐसा कोई सबक सीखने की बजाए उन लड़कों को ही उनके इंसान होने के सबक याद दिलाने की कोशिश की। नतीजे में उनके कपड़े फाड़ डाले गए, बेइज्जत किया गया।

लेकिन लड़कियों, विश्वास करो, इस हाल में भी जीत तुम्हारी हुई है क्योंकि तुमने विरोध किया है। तुम दोनों अपनी लड़ाई लड़ती रहीं औ पच्चीसों लोग तमाशा देखा किए। उस अभद्र व्यवहार, कमजोर पर अत्याचार को देखकर एक भी व्यक्ति आगे नहीं आया- इसका भी खयाल न करना। क्योंकि उन तमाशबीनों का जमीर उन्हें कभी-न-कभी इस बात के लिए जरूर कुरेदेगा भले ही इसके लिए उन्हें अपनी मां-बहन-बीवी के साथ यह होने तक इंतजार करना पड़े।

तुम शायद डर रही होवोगी कि वो तीनों गिरफ्तार होने के बावजूद जल्द ही छूट जाएंगे और फिर शायद और भी बुरे तरीके से बदला लेने की कोशिश करेंगे। यह डर तो हमें भी है क्योंकि इसे हटाने का उपाय भी तो आसान और छोटा नहीं है न! मौजूदा व्यवस्था हमें इतना भरोसा कहां देती है कि बीसियों चश्मदीद गवाहों के सामने दिन-दहाड़े हुए इस अनाचार में शामिल जाने-पहचाने, हमारे अपने लोकल अपराधियों को जल्द और पूरी सज़ा मिल पाएगी ताकि समाज में उन जैसे लोग फिर ऐसा कुछ करने से डरें और पीड़ितों को पूरा न्याय मिले।

इसके बावजूद तुम्हें विश्वास रखना होगा अपने पर, अपने जैसों पर। और इस विश्वास को अपने तक सीमित रखने की बजाए, मैं तो कहती हूं, अब वक्त आ गया है, इसे बढ़ाने का, जोड़ने का, जुड़ने का। व्यक्ति के खिलाफ व्यक्ति अपनी लड़ाई चाहे लड़ और जीत पाए, संगठित हुए बिना व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई नहीं जीती जा सकती। इसके अल्पकालिक नतीजे भले ही मिल जाएं, पर इसके जारी रहने और दीर्घकालिक परिणाम पाने के लिए ज्यादा-से ज्यादा लोगों को जुड़ना पड़ेगा।

हम सब पढ़ लिख गई है। पढ़ती भी रहती हैं- पढ़ाई के अलावा अखबार-किताबें भी। टीवी-सिनेमा देखती हैं और बहुत कुछ जानती भी हैं, सिर्फ ज्ञान से नहीं हुनर, अभ्यास से भी। विषय की जानकारी होना एक बात है, उसके बारे में सचेत और जागरुक होना इसके आगे की बात। तो क्यों न अपने ज्ञान को जागरुकता के स्तर पर ले आएँ, आपस में बांटें और पा ले अपने लिए वह सब जो हमारा हक है, जो हमेशा मारा गया है, जो हमें मिला भी तो दया या अहसान की तरह। जो हमें उम्मीदें सजाने का कारण दे, सपने पूरे करने का रास्ता दे और दे एक भरपूर जिंदगी देने का मौका।

आइए हाथ उठाएँ हम भी/
हम जिन्हें हर्फ़े दुआ याद नहीं/
हम जिन्हें सोज़े मोहब्बत के सिवा/
कोई बुत कोई ख़ुदा याद नहीं

3 comments:

pranava priyadarshee said...

झकझोरने वाली पोस्ट अनुराधा. तुम्हारी खासियत यह है कि तुम्हारा लेखन दिल और दिमाग दोनों जगह करीब-करीब एक साथ पहुंचता है और पाठकों को किसी भी सूरत मे अछूता नही रहने देता.
'उन तमाशबीनों का जमीर उन्हें कभी-न-कभी इस बात के लिए जरूर कुरेदेगा भले ही इसके लिए उन्हें अपनी मां-बहन-बीवी के साथ यह होने तक इंतजार करना पड़े।'
और
'इस विश्वास को अपने तक सीमित रखने की बजाए, मैं तो कहती हूं, अब वक्त आ गया है, इसे बढ़ाने का, जोड़ने का, जुड़ने का। व्यक्ति के खिलाफ व्यक्ति अपनी लड़ाई चाहे लड़ और जीत पाए, संगठित हुए बिना व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई नहीं जीती जा सकती।'
तुम्हारे सटीक विश्लेषण ने इस पोस्ट को व्यापक दायरा प्रदान किया है. ह्रदय से आभार.

आनंद said...

बिलकुल ठीक कहा आपने, जीत उन लड़कियों की ही हुई है क्‍योंकि उन्‍होंने अन्‍याय का विरोध करने का साहस जुटाया। उनका यह कदम कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।

Ek ziddi dhun said...

ऐसे मसलों पर समाज का बर्ताव बहुत आपराधिक है और अख़बारों का भी. उनके लिए मसला उतना है, जितना मसाला. विरोध करने वालों के प्रति प्रतिहिंसा और उसे स्वीकृति बढ़ रही है. बस में देख सकते हैं. अब कोई कह रहे हैं, आप ऐसा लिखती हैं जो झकझोरता है..अब हर विमर्श को हम ही संभल लें के अंदाज वाले महापुरुष झाक्झोरेंगे क्या? विमर्श के नाम पर चिकनी बातें करनी वाली उन लेखिकाओं से भी सावधान रहना होगा जो पुरूष लेखकों को सुहाती बातें करती हैं.

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