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Saturday, March 15, 2008

ऑस्ट्रेलिया से भारत वाया अमेरिका

आज के नवभारत टाइम्स में छपे इस लेख को देखें।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का अलेख पढ़ा। हम वकील अदालतों में अपने मुवक्किल की ओर से अर्जी-दावे लिखते समय हमेशा ही इस बात का ध्यान रखते हैं कि उस में हम न बोलने लगें। आप के इस लेख में आप व्यक्तिगत रूप से बोल रहे हैं। दलित लेखक बोल रहा है। इस से लेख एक पक्षधर लेख बन जाता है। खास रुप से एक स्थान पर हम का प्रयोग भी कर गए हैं। यह उचित नहीं लगता।

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